अक्सर राष्ट्रवादियों को भक्त कह कर उनका अपमान किया जाता है।
उन्हें मोदी भक्त कह कर पल पल यह अहसास दिलाया जाता है कि जैसे हम चापलूस है वैसे ही आप भी हो........इत्यादि।
क्या हम भक्त हैं? जैसा कि वे हमारे बारे में सोचते है? सामान्यतया जो जैसा है वह दूसरों के बारे में भी वही सोचता है।
कहीँ न कहीँ इन आलोचकों के अवचेतन में वे गहरी कुंठाएँ विराजमान है जो वे दूसरों के बारे में कहते रहते हैं।
बात करें कांग्रेस की......तो सबको पता है उसका नेतृत्व कितना नाकारा और अयोग्य है? राहुल गाँधी का बयान किसी चौथी कक्षा के विद्यार्थी जैसे होते है और सोनिया को तो खेर हिन्दी आती ही नहीँ। अब तक मुस्लिम दलित और कुछ अवसरवादियो के भरोसे चवन्नी चल गई सो चल गई.....अभी उसके सारे अमात्य अंदर ही अंदर अमितशाह के सम्पर्क में है और हरी झण्डी की प्रतीक्षा में है।
पर क्या कोई भी कांग्रेसी कार्यकर्त्ता इनके विरुद्ध बोल सकता है?.....हरगिज नहीँ।
वहाँ हाथ हिलाने, दरी बिछाने , मुस्करा देने,ताली बजाने और नारे लगाने का रेट तय है।भीड़ इकट्ठी करने के लिए दिहाड़ी मजदूर और ठेकेदारों के साथ सौदेबाजी सामान्य बात है।
यदि कोई मिडिया या सोशल साईट पर इनके पक्ष में लिखता बोलता है तो हाथो हाथ मोटी फीश चुकाई जाती है....फिर भी उन्हें लेखक नहीँ मिलते।
सञ्जय झा इसके उदाहरण है।यह व्यक्ति बेरोजगार था और कोई गुमनाम पेज का adm था, आज प्रवक्ता की हैसियत रखता है।
बदले में ये लोग जब राष्ट्रवादियों के त्याग और पुरुषार्थ की तुलना स्वयम् से करते हैं तो सारे तर्क फैल हो जाते हैं।
इनकी कल्पना में भी यह बात नहीँ है कि क्या किसी के लिए इस हद तक भी जूनून हो सकता है कि सारे आलोचना सह कर भी कोई रात रात भर जागकर और स्वयम् का डेटा व्यय करके लिख सकता है?
अतः सारी सेकुलर बिरादरी स्वयम् को "निष्पक्ष" और राष्ट्रवादियों को भक्त बनाने पर तुली है।
हालात ये है कि आज वामपंथी,समाजवादी,जातिवादी,या अन्य छद्म सेकुलर बिरादरी को कोई नहीँ सुनना चाहता।
जैसे टीवी पर विज्ञापन कोई नहीँ देखना चाहता वैसे ही इनकी बातों का राष्ट्रिय बहिष्कार हो चुका है।फिर भी मिडिया और कूल डूड बिरादरी इनके झांसे में आ ही जाते है।
इसलिए इनको गरियाया लतियाया जाता है।
इससे बचने के लिए इन्होंने यह रणनीति चली है।
1.स्वयम् को निष्पक्ष बताना।
2.राष्ट्रवादियों को भक्त बताना।
3.हिंदुत्व को संकीर्ण सिद्ध करना।
4.चुप्पी साध लेना।
इनमें चुभने लायक बात भक्त शब्द ही है।
जैसे इन्होंने भगवा और राष्ट्र जैसे पवित्र शब्दों का अर्थापकर्ष किया वैसे ही ये भक्त शब्द का भी अर्थपकर्ष करने पर तुले है।
पर इन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ती है।हम भक्त तो है पर योगेश्वर के।
हम भक्त है हिंदुत्व के।
हम अनुचर है भारत माता के।
हमने भूखे पेट रहकर और अपने परिजनों
को रोता छोड़ भी राष्ट्रसेवा का व्रत लिया है।
हम अभी भी टीन टप्पर में रहकर मस्त जीवन जीते हैं।
हमें वामपंथियों की तरह टेंशन फ्री होने के लिये दारू नहीँ पीना पड़ता।
भक्त तो फिर भी अच्छा सम्बोधन है,
हम इंदिरा गांधी के दमन चक्र में भी नहीँ डिगे।
तुम फो%$याँ हमें क्या डिगाओगे??
#kss
शनिवार, 21 फ़रवरी 2015
क्या हम मोदी भक्त है?
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