रविवार, 22 फ़रवरी 2015

वेदार्थ 3

जो नित्य ज्ञान है वही वेद है।
यह काल और किसी सम्प्रदाय से बाधित नहीँ है।
गणित में जैसे सर्वसमिका होती है वैसे।
(a+b)^2=a^2+2ab+b^2
यह सर्वसमिका नित्य सत्य है।
इसका एक ही अर्थ है किन्तु कई समान युक्तियों को हल करने में यह अनेक अर्थों को खोलती है।
वेद को भी इस प्रकार के ज्ञान का सन्ग्रह जानना चाहिए।
सृष्टि निर्माण,सञ्चालन और लय के नित्य शास्वत नियम ही वेद है।
इसे हम विज्ञान भी कह सकते हैं।
ईश्वर रचित शास्वत विज्ञान।
आधुनिक विज्ञान विकासशील है पर वेद पूर्ण विकसित विज्ञान है।
अतः वेद अपौरुषेय है। वे साक्षात् ब्रह्म का उच्छ्वास है।
दिक्कत यह है कि हमने आधुनिक विज्ञान पहले पढ़ लिया है और उसकी छवि हमारे मस्तिष्क से जाती नहीँ।हमने और भी बहुत कुछ मिथ्या सीख रखा है।यह बाधा पहुँचाता है,यानि समस्या हमारी और हम दोष देते हैं वेद को।
क्या आपने नहीँ सुना "अनन्ता: वै वेदा:"
फिर क्यों उसे तौलना चाहते हो?
"साफ़ सफ़ाई से रहो और शुद्ध खाओ" उक्त वाक्य में क्या गलत हो सकता है? कौन मुर्ख होगा जो इस शिक्षा को अशुद्ध ठहराएगा।
बाइबिल और कुरान भी इस पर एकमत है।
पर चूँकि वेद उनसे प्राचीन है इसलिए सम्भावना है कि इतर ग्रन्थकारों ने यह बात वेद से प्राप्त की।और यह भी हो सकता है कि उन्हें सीधे ही साक्षात् हुआ हो।
तब भी कोई दिक्कत नहीँ।
उन्होंने सीधे ही कोई वेदाज्ञा प्राप्त कर ली, इससे भी वेद का गौरव कम नहीँ होता।
यद्यपि वेद के सम्मुख उक्त दोनों उदाहरण बहुत हल्के है.....फिर भी समझने में सहायक तो हैं ही।

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