हाँ! मैं खण्डवालिया हूँ।
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मेरे हाथ में जो घन है न,वही इन्द्र का वज्र है।
मेरे पास जो सब्बल है न,शंकर का भाला है।
जिस स्थापत्य को आप निहारते हैं,वो पत्थर पहले मेरे पसीने से नहाया हुआ होता है।
जिस अट्टालिका में मुझे प्रवेश की भी अनुमति नहीं,उसके पत्थरों को मैं अनेक बार पददलित कर चूका होता हूँ।
जिस प्रतिमा को आप सिर झुकाते हैं,किसी समय वो मेरे वशीभूत होती है।
मैं पर्वत के कपाल को फोड़कर,वज्रशिला को भेदकर,अपने एक ही प्रहार से चट्टान को खण्ड खण्ड करके आपके लिए प्रस्तर खण्ड उपलब्ध करवाता हूँ। इसलिए मुझे लोग खण्डवालिया कहते हैं।
सुना है,आजकल सर्दी गर्मी और वर्षा के मौसम की पल पल की खबर रखी जाती है। मुझे आश्चर्य होता है,क्यों कि मेरे लिए एक ही मौसम होता है,,,,,चूल्हा जलाकर बच्चे पालने का मौसम।
यह भी सुना है कि अधिक भार उठाने वाले भारोत्तोलक को खूब इनाम मिलता है। कभी मेरे द्वारा उठाये भार को भी तोलो न!
काली चाय और मिर्च नमक की सूखी रोटी खाकर भी मैं हर समय प्रसन्न रहता हूँ। मुझे बहुत आश्चर्य होता है जब पता चलता है कि नींद नहीं आना भी इस जगत में एक रोग है। क्यों कि मुझे तो जेठ के महीने में 50'c तापमान में, केवल सब्बल पर टंगे तौलिये की छाया में भी बड़ी जोर की नींद आती है।
आप जब मेरे खंडे खरीदने आते हो तो 20-25 खंडे ज्यादा डालकर और 500-1000रूपये कम दे जाते हो। जब मै आपकी दुकान में बच्चो के लिए एक किलो आटा खरीदने आता हूँ,तो मुझे कभी भी उधार नहीं मिलता।
चुनाव से पहले मुझे एक बोतल जरुर मिलती है। पर क्यों मिलती है,मै नहीं जानता?
मुझे कहा गया कि अब तुम्हें यह काम नहीं करना पड़ेगा,क्यों कि तुम्हारे मनरेगा के जॉब कार्ड बन रहे हैं। बाद में कहा गया कि बन चुके हैं। पर मै नहीं जानता कि वे कहाँ हैं?
सरकार ने मेरे लिए एक खनन विभाग बनाया है। जब उसके अधिकारी आये तो उलटे हमें हमारी ही भूमि से मार कर भगा दिया। बड़ी बड़ी मशीनें आयी हैं,ब्लोक निकल रहे हैं। अब हमारे पास कोई काम नहीं।
जमीन है नहीं। है भी तो वर्षा नहीं। भीख कोई देता नहीं। ढेर सारे अनपढ़ बच्चो को लेकर मै कहाँ जाऊ?
आप ही बताओ,खण्डवालिये कहाँ जाएँ?
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015
खंडवालिया
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