शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

दलित

मुझे जो नाम दिया गया उसका अर्थ है
"जिसका दलन किया गया हो।"
अर्थात दलित।
जैसे किसी की एक आंख फुट जाये और सब उसे कानिया कानिया कहते हैं,आरम्भ में बहुत बुरा लगता है,पर बाद में वो इसका अभ्यस्त हो जाता है वैसे ही आरम्भ में इस नाम से मुझे बहुत अपमान अनुभव होता था। पर अब कुछ भी बुरा नहीं लगता।
बल्कि कुछ लोग मुझे इसके लिए गर्व करने का भी आग्रह करते हैं।
मुझे सम्विधान में बहुत सी सुविधाएँ दी गई। कहा गया कि तुम पिछड़े हो। इस लिए स्टार्ट लाइन में तुम्हें आगे खड़ा किया जा रहा है।
मुझे दौड़ने को कहा गया।
मै दोड़ तो पहले से लगा रहा था।
पर पता नहीं मै कभी जीत नहीं पाया।
मुझे थोड़ा और आगे खड़ा किया गया। फिर भी मै हार गया।
अगली बार मुझे बिलकुल end लाइन के पास खड़ा किया गया, पीछे वालों ने खूब हूटिंग की।
लेकिन अफ़सोस इस बार भी हार।
मुझे बहुत झल्लाहट हुई। पीछे वाले कुछ मित्र मेरी हंसी उड़ा रहे थे।
मैंने अपील की।
जाँच कमेटी बैठी। मुझे बताया गया कि तुम्हारे पास पैर ही नहीं है।
मुकाबला बराबर करने के लिए पीछे वाले सब प्रतियोगीयों के पाँव भी हटा दिए।
इस बार मामला कुछ ठीक ठाक रहा। पर जिनके पैर कटे थे,वे मुझ पर बहुत गुस्सा हो रहे थे। मेरी इसमें कोई सहमती नहीं थी। पर फिर भी सारा दोष मुझ पर ही डाला गया। मेरा बहिष्कार कर लिया गया।
जो मुझे बार बार दौड़ा रहे थे, वे एक दिन घर आये। मुझे बताया गया कि तुम जीत गए हो। तुम्हारा विजय जुलुस निकाला जायेगा।
मेरे लिए एक कोट भी लाये थे।
पर जब पहना तो वो फिट नहीं हुआ। उसके बाजू छोटे थे। जुलुस जरूरी था। समय कम था। उन्होंने मेरे हाथ ही काट डाले।
किन्तु मेरा जुलुस और विजय का वो आनंद फीका रहा,क्यों कि एक भी दोस्त उसमें शामिल नहीं हुआ।
आयोजकों ने कहा,उन्हें भूल जाओ।
आयोजक चले गए। अकेलेपन में मै नशे की गोद में चला गया।
मेरे बच्चे गाली गलौज करते रहे। घर अस्वच्छ।
कचरे मे बसेरा।ऊपर से जो भी हितचिंतक आए वही अहसान जताए।
कभी एक योजना कभी दूसरी योजना।कभी ये फार्म भरो कभी दूसरा।
मेरे मित्र कुछ भी न करते हुए कुछ भी न पाते हुए भी खुश और मैं रोज कुछ न कुछ पाने का भरोसा लिए हुए भी दुःखी।
बिना कोई धर्म कर्म के भी उनको कोई बीमारी नहीं और इधर गला फाड़ फाड़ कर रात भर जाग जाग कर भी ईश्वर के गुण कीर्तन के बावजूद कभी भी पूरा परिवार स्वस्थ नहीं दिखा।

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