वेदार्थ प्रकरण को थोड़ा आगे बढ़ाते है।
तीन त्रिलोकी व्यवस्था।
लोक 7हैं।
1भू 2भुवः 3स्वः
4महः 5जनः 6तपः 7सत्यम्।
इन सात लोकों से क्रमशः तीन त्रिलोकी का निर्माण हुआ है।
क्र स त्रिलोकी सम् लोक
1 रोदसी। 1भू 2भुवः 3स्वः
2 क्रन्दसी। 3स्वः 4महः 5जनः
3 संयती ।। 5जनः 6तपः 7सत्यम्
रोदसी त्रिलोकी का विभाजन करते हैं।
1भूलोक में पृथ्वी पिंड स्थित है।
2भुवः लोक ही अंतरिक्ष है।वहाँ चन्द्र स्थित है।
3स्वः लोक ही द्यु लोक है।इसमें सूर्य पिंड स्थित है।
ऐसा ही अन्य दोनों त्रिलोकियों में जानना चाहिए।
स्वः लोक हमारी त्रिलोकी का द्यु है किन्तु द्वितीय क्रंदसी का भूलोक ही है।वह हमें उस द्वितीय से जोड़े रखता है। महः उसका अंतरिक्ष और जनः द्यु है।
इसी प्रकार जनः तपः और सत्यम् तृतीय,संयती नामक त्रिलोकी के लोक है।जनः उसका भूलोक है।तपः अंतरिक्ष और सत्यम् ही द्यु लोक है।
आप एक रेखाचित्र बनाकर इसे समझ सकते हैं।
यहाँ से सत्यम् पर्यन्त प्रकृति है।
उससे आगे पुरुष है जिसके तीन भेद क्रमशः क्षर अक्षर और अव्यय है।यहाँ तक का वर्णन उपलब्ध है।
उससे आगे परात्पर ब्रह्म है।जो कि अवर्णनीय है।
इसी प्रकार की तीन त्रिलोकियां भू लोक की गहराई में जाने पर भी है।इनकी भिन्न संज्ञाएँ हैं।
सोमवार, 23 फ़रवरी 2015
त्रिलोकी
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