समय है वेदार्थ पर कुछ बात करें।
आज तक उपलब्ध वेदार्थ के निम्न प्रकार है।
1सायण महीधर भाष्य_-ये सामान्य शब्दार्थ जैसे ही हैं।सायण स्वयम् योद्धा थे और उन्हें अधिक समय भी नहीँ मिला था।इनका योगदान संहिता पक्ष को सुरक्षित करना और विभाजन है।
किन्तु इनका वेदार्थ अपूर्ण और सतही है।
2मैक्स मूलर आदि विदेशी--इनके वेदार्थ का आधार तुलनात्मक भाषा विज्ञानं है।इनके अर्थ को भी पूर्ण नहीँ माना जा सकता।ये स्वयम भृमित थे और कई मामलों में दूसरों पर आश्रित थे।इन्होंने इलियड ओडेसी और टेस्टामेंट जैसे इतर साहित्य की संगति के आधार पर वेदार्थ के प्रयत्न किए।
3म दयानन्द सरस्वती--ये निश्चय ही उस समय केमहान वेद व्याकरणाचार्य थे।पर इनके वेदार्थ का आधार व्याकरण था।और व्याकरण केवल एक वेदांग है।शेष 5 वेदांग बिना वेदार्थ असम्भव है।सो इनके अर्थ में भी कमियाँ है।
तो अब प्रश्न उठता है वास्तविक वेदार्थ क्या है?
यह कैसे जानें?
उत्तर:-
वेद अध्ययन हेतु "सांगोपांग वेद" शब्द का प्रचलन है।अर्थात अंग उपांग सहित वेद।
यदि इस भारतीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर वेदार्थ किया गया है तो वही वास्तविक वेदार्थ है।
वेद4हैं।ऋक् यजु साम और अथर्व।
प्रत्येक वेद के 4 विभाग हैं।मन्त्र ब्राह्मण आरण्यक और उपनिषद।
वेदांग 6 है।शिक्षा कल्प निरुक्त छन्द व्याकरण और ज्योतिष।
उपांगों के भेद।
4उपवेद, स्मृतियां,दर्शन,इतिहास(रामायण और महाभारत),पुराण और निबन्ध ग्रन्थ।
इनके भी भेदोपभेद हैं।विस्तार भय से मैं उनके नाम नहीँ लिख रहा।परन्तु इस विषय के जानकारों को पता ही है।
यदि वेदार्थ जानना है तो "सांगोपांग वेद" समझना होगा।
उक्त सारे ग्रन्थ और उनके तज्ञ गुरु एकत्र करने होंगे।
फिर जो अर्थ निकलेगा वही वास्तविक वेदार्थ है।
जैसे ज्योतिष को वेद पुरुष का चक्षु माना गया है।चक्षु बिना मनुष्य अँधा होता है।
इसी प्रकार बिना ज्योतिष की जानकारी के किया गया वेदार्थ अंधे का वर्णन ही होगा।
क्या ऐसा किसी ने किया है?
क्या ऐसा सम्भव है?
क्या उक्तानुसार किया गया वेदार्थ कहीँ उपलब्ध है~?
क्या सांगोपांग वेद का निर्विवाद और विज्ञान सम्मत अर्थ उपलब्ध है?
उत्तर है हाँ।
जी हाँ।
हम आगे इसी पर बात करेंगे।
#kss
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015
वेद
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