वेद में सबकुछ है।
समस्त ज्ञान ही वेद है।
ऋषि प्रणीत समस्त आर्ष साहित्य ही वैदिक वाङ्गमय है।
पुराण भी आर्ष साहित्य हैं।पूर्वोक्त सांगोपांग वेद में पुरणोत्तर निबन्ध ग्रन्थ और तन्त्र साहित्य भी सम्मिलित है।अतः दयानंदजी की आर्ष परिभाषा से मै सहमत नहीँ।
जो भी सृष्टि में परा अपरा विद्या युक्त ज्ञान है वह वेद है।
वेद को केवल संहिता मानना या उपनिषद पर्यन्त मानना घोर आपत्तिजनक है।
यह फेसबुक तो संकेत मात्र कर सकती है।
क्यों कि प्रत्येक प्रश्न का उत्तर यहाँ सम्भव नहीं।
वेद के बारे में आ रही विवेचनाओं से मै नहीँ घबराता।
वेद को बाल बुद्धि का पश्चिम अभी नहीँ समझ सका है।जिस दिन समझ जायेगा उस दिन सर्वत्र भारत ही भारत होगा।
वेदार्थ हेतु अनुवाद या व्याकरण बहुत छोटी वस्तु है।
वेद जानने का क्रम जैसा कि माना जाता है
पहले संहिता फिर ब्राह्मण फिर आरण्यक.............वेदांग...........और अंत में इतिहास....ये गलत है।
वेदार्थ हेतु इसके विपरीत क्रम पर चलना होगा।
बालबुद्धि के लिए पुराण।
कवि हृदय के लिए रामायण आदि।
फिर दर्शन......उपवेद........वेदांग........उपनिषद और अंत में क्रमशः संहिता।
जिसकी जितनी उड़ान है वह उस अंश तक पहुंचेगा।
जैसे गन्धर्व वेद एक उपवेद है या योग एक दर्शन है।।कोई व्यक्ति जीवन भर प्रयत्न कर अच्छा संगीतवकार या योगी दार्शनिक बनता है,कोई बात नहीँ।उसकी प्रतिभा की उड़ान यहाँ तक पहुंची।
शेष यात्रा अगले जन्म मे।
इस क्षुद्र जीवन में आप विषय तक नहीँ पहुँच पाए इसमें वेद क्या करे?
कोई डॉक्टर बनना चाहता है।10वीं में फेल हो गया।तो चिकित्साविज्ञान की गलती नहीँ।
रविवार, 22 फ़रवरी 2015
वेदार्थ 2
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