कोई छींकता भी नहीँ मगध में।
(बात धनानंद के समय की नहीँ, मौर्यो के काल की हो रही है।)
अब खौफ़ मगध के शासकों से नहीँ,
शासकों को मगध की जनता से है।
कोई भी शासक,अब छींक भी नहीँ सकेगा,
क्यों कि जनता की शान्ति भंग हो सकती है।
जनता है तो मगध है।
मगध जीतना है तो राजधानी जीतो।
पाटलिपुत्र हथियाओ।
कैसी है,पाटलिपुत्र की जनता?
उसे अब फ्री चाहिए,सब कुछ।
भई इतने दिन बहुत अत्याचार सहा है!!
अब नहीँ सहेंगे।
खाएंगे,पिएंगे,मौज करेंगे।
पूरे मगध से कलेक्ट कर कर के लाओ।
राजधानी को खिलाओ।
अरे भई जलते क्यों हो?
राजधानी की पब्लिक हैं।
कोई यूँ ही नहीँ बसता राजधानी में?
बहुत सह लिया।
खूब लुटे,पिटे,जब जिसने चाहा रगड़ा है।
भाड़ में जाए,अर्थशास्त्र।
सेल्युकस आए या अलक्षेन्द्र।
हमें तो बस आराम चाहिए।
एक भी पण व्यय किये बिना।
सोन और गंगा का पानी।
गांधार का मेवा।
चीन की बरनी में,
मंगोलिया का आसव।
साथ में सुराही जैसी गर्दन वाली,
यूरोपीय नर्तकियाँ भी।
हम हैं तो मगध हैं।
दिन भर जानलेवा कैमरे के सामने
और हचकोले खाती ओबी वेन में,
बहुतथक जाते हैं।
दोगे क्यों नहीँ?
बाप का राज है क्या?
जख मार कर देना पड़ेगा।
न केवल देना,
व्यवस्था भी करनी पड़ेगी।
प्रत्येक घर के दीप की।
रेशमी वस्त्र और अन्न की।
हर घर के आगे स्वर्णखचित आसन स्थापित करना होगा।
जल का नित्य छिड़काव,सुगन्ध युक्त।
क्या कहा?????
नहीँ मिलेगा?
अरे ओ सेल्युकस!!
तू आजा।
बन जा सम्राट।
मगध की राजधानी तुझे
आमन्त्रित करती है।
इन मौर्यों के अब,वश की बात नहीँ।
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015
मगध
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें