शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

शिव

हे शिव!!
नमस्कार।
यह जानते हुए भी कि
बिना "शिवो भूत्वा शिवम् यजेत्"
तुम्हें नहीँपूजा जा सकता।
फिर भी तुम्हें नमस्कार।
हे नीलकण्ठ!
यह जानता हूँ कि मेरा वर्ण तुझसे
उजला है।
केवल इस एक गुण के आलावा मुझमें
अवगुण ही अवगुण है।
तुम्हारा भोलापन तुम्हें विषपान करा गया।
हे भूतनाथ!!
समस्त शिल्प के जनक हो कर भी
तुम्हें भग्न मन्दिर मिला,
अखाद्य खिलाया ।
लोक विरुद्ध अलंकरण,
तुम्हारे उत्सव में मजाकिया लोग,
गालियों से स्वागत,
नगर से दूर एक बंजर कोने में
स्थापना,की अविधिपूर्वक।
तुम ही हमारे प्रथम पितर हो,
फिर भी सर्वाधिक उपेक्षित भी।
हे प्रलयंकर!!
मत खोलना तीसरा नेत्र!
यद्यपि "अपराध सहस्राणि क्रियते अहर्निशं मया"
पर इस विराट से पृथक हो कर
मिटजाएगा मेरा भी अस्तित्व।
तुम्हारे भोलेपन से ही मै "सेफ" हूँ।
मेरे द्वारा की गई "आरक्षित"टिप्पणियों के
लिए...................!
हे समस्त विद्याओं के अधिपति!!
क्षमस्व परमेश्वर!!_/\_

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें