विनोद जैसे नितान्त लापरवाह और प्रतिगामी के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था।
शादी के दूसरे ही वर्ष पुत्र हुआ और छठे ही महीने बीमार भी।शहर के हॉस्पिटल ने यहां महानगर के एक नामी सरकारी हॉस्पिटल को केश रैफर किया है।दोपहर तक वी सेट लग गया।जाँच के समय जब खून निकाला जा रहा था तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।
पुत्र के इलाज में उसे स्वयम् नहीँ आना था।
आज पहली बार उसे लगा कि वह कितना कच्चे दिल का है।
खेर ,,,,,,अब बच्चे ने रोना बन्द कर दिया था।पत्नी को बेड के पास वार्ड में ही छोड़ वह बच्चे को उठाकर इधर उधर घूमने लगा।
घूमते घूमते वह नीचे आउटडोर में आ गया।बड़े से कक्ष में काफी भीड़ और चिल्ल पों मची थी।
दो तीन जूनियर डॉक्टर गले में ss लटकाए मरीजों को जाँच रहे थे।
अभी ये डॉक्टर कम और ट्रैफिक पुलिस के सिपाही ज्यादा लग रहे थे।.....बेहद चिड़चिड़े,,,,,और मरीजों के परिजन कोई अपराधी की तरह उनकी बातें सुन रहे थे।
विनोद की दृष्टी कोने में बैंच पर बैठी एक महिला पर जा पड़ी।.....शायद कहीँ देखा है.....साँवली सी....पतली से,,,,,दिखने में तमिल लगती है।
अरे हाँ,,,,,अपने शहर में व्यासजी की प्रोल पर इडली बेचने वाले की बीवी है।वही जिसको जब भी देखता, प्रभुदेवा याद आता था।यह उसी की पत्नी है।पास में जो बैठी है वह कोई उत्तर भारतीय पड़ोसन है।
तमिल महिला की गोद में भी एक बच्चा है।
अपने मोंटू जितना ही......6माह का।
"56 नम्बर.......!"
डॉक्टर की तेज आवाज गूंजी।
साथ वाली महिला ने तमिल महिला को इशारा किया।वह झट से खड़ी हो गई।
दोनों डॉक्टर की ओर बढ़ी।बच्चा पड़ोसन ने अपनी गोद में ले लिया।
अब बच्चा धीरे धीरे रोने लगा।
"प्रभुदेवा" को वह भी जानता है।काफी वर्ष हो गए शादी किये।कोई दसेक वर्ष बाद हुआ है बच्चा।
वो तो तमिल महिला के चेहरे से ही लग रहा था कि बच्चा उसे कितना प्रिय है।जब वह उसे पड़ोसन को सम्भला रही थी तब ऐसा लग रहा था जैसे तीसरी का कोई बच्चा अपनी ज्यामेट्रि सहपाठी को सौंप रहा हो......कि अभी ज्यों ही वापस माँगूँ,तुरन्त लौटानी होगी।
बच्चे के रोने के साथ ही साथ माँ भी उचक उचक कर हिचकी ले रही थी।मानो रुदन इसके अंतर्मन में है और बच्चा केवल स्पीकर है।
"जल्दी,,,,जल्दी,,,!"
डॉक्टर की इस धमकाने वाली आवाज के साथ ही दोनों ने अपनी गति बढ़ा दी।
जाँच चालू हुई।
विनोद भी जिज्ञासावश सरक कर पास में खड़ा हो गया।
बच्चे को टेबल पर लिटाया गया।
अब बच्चा जोर जोर से रोने लगा।
विनोद ने देखा।बच्चा क्या था, एक एक पसली सामने दिख रही थी।
डॉक्टर ने कमीज ऊपर सरकाया।
बिलकुल कमजोर।किताबों में भ्रूण के चित्र जैसा।
मानो कुछ अंतड़ियाँ और अंग किसी पीले प्लास्टिक में डाल कर रखे हों।
डॉक्टर अपने कठोर हाथ से उसे दबाए हुए कुछ पूर्व निश्चित प्रश्न पूछे जा रहा था।
माँ को तो हिंदी आती नहीँ।
पड़ोसन उत्तर दिए जा रही थी।
।लेकिन डॉक्टर न तो ऊपर देख रहा था और न ही उसे उन जवाबों से कोई मतलब था।वह तो पूछे जा रहा था।उत्तर समाप्ति से पूर्व ही दूसरा प्रश्न,,,,,,फिर प्रश्न......कर्कश और ऊँचे स्वर में.....दृष्टि बच्चे के पेट पर......विनोद को याद आया , वह कॉलेज में रैंगिंग के समय इस स्टाइल से प्रश्न पूछा करता था;नए लड़कों को।
बच्चे ने रोना बन्द किया।
माँ उसे निहारे जा रही थी।मुग्ध भाव से।
पीठ के बल लेटा बच्चा जो जो हरकत कर रहा था उसका स्पंदन इस माँ के चेहरे पर साफ पढ़ा जा रहा था। विनोद ने कनखियों से देखा, माँ बहुत प्रगल्भ भाव से बच्चे को निहारे जा रही थी।एक तृप्ति थी उसके चेहरे पर......माँ बनने की......मानो वहाँ मौजूद अन्य माँओं को कह रही है.....देखो मेरे भी बच्चा है।मैं भी माँ हूँ।
..........
अचानक डॉक्टर ने बच्चे को कठोर उँगलियों से जोर से दबाया.....बच्चे के चीख निकल गई,,,,,और माँ के भी। शायद जाँच के लिए बच्चे को एक बार और रुलाना आवशयक था।
"अरे .... पकड़ के रखो न इसे!!"
डॉक्टर चिल्लाया।
पड़ोसन ने उसे आहिस्ता से पकड़ा।पर बच्चे ने स्टेथोस्कोप की नली ही पकड़ ली।
पकड़ मजबूत थी।डॉक्टर ऊपर को हुआ......नली तो नहीँ छूटी....झटका डॉक्टर के कानों को लगा!!
डॉक्टर गुस्से से काम्पने लगा।
झल्लाकर फिर कोशिश की तो बच्चा खिलखिलाने लगा।
बच्चे की मुस्कान के साथ ही माँ की जान में जान आई। एक विशेष प्रकार के आनन्द के फोटोन फूट फूट कर बाहर आते देखे जा सकते थे।
"अरे....ऐसे पकड़ते हैं क्या?,,,,ठीक से पकड़ो.......साथ में कौन है?"
डॉक्टर इतनी जोर से चीखा कि पूरा आउटडोर हॉल में भयानक सन्नाटा छा गया।
अगले ही पल पूरा हॉल दर्द भरे क्रंदन से गूंजने लगा।
डॉक्टर ने दोनों हाथों से उसे झिंझोड़ते हुए उल्टा पटक दिया।कच्चे कच्चे हाथ और पैरों को दोनों औरतो ने पकड़ रखा था।
पीठ पर फिरता स्टेथोस्कोप और डॉक्टर के पंजे में जकड़ा बालक.......ऐसा लग रहा था मानो कोई प्यारा सा पक्षी किसी विशाल अजगर के जबड़ों में फ़ड़फ़ड़ा रहा हो।
विनोद भीतर तक हिल गया।
जाँच पूरी हुई।
माँ ने अपनी "प्यारी ज्योमेट्री" सीधे ही उठा कर छाती से चिपका ली थी।
पड़ोसन ने डरते हुए पूछा "क्या बीमारी है?"
डॉक्टर ने ss उतारकर ऊपर देखे बिना सहज भाव से कहा "दिल में छेद है।"
तमिल महिला तो हिंदी जानती नहीँ थी।उसे तो अपना बच्चा मिल गया था।वह उसे छाती से लगाए कृतज्ञ भाव से डॉक्टर को देखे जा रही थी।
बच्चे को मन ही मन सांत्वना दिए जा रही थी.......मेरे लाल!....जितनी तकलीफ भुगतनी थी भुगत चुका तू.......अब बस डॉक्टर साहब दवाई लिखें और सब कुछ ठीक.....!
पर पड़ोसन समझ गई कि इस एक वाक्य का क्या अर्थ है.......दिल में छेद.......!
"क्या ss?"उसने फिर से पूछा।मानो अपराध कर रही है।
"दिल में छेद है।तीन माह में ऑपरेशन न किया तो खतम।""
विनोद को आश्चर्य हुआ कि स्टेथोस्कोप से भी दिल के छेद का पता चल सकता है।
उसने खुद के बच्चे को बहुत जोर से भींच लिया।
तमिल महिला अभी भी मुग्ध भाव से संकट टल जाने की ख़ुशी मना रही थी।
#kss
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शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015
दिल में छेद
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