वेदार्थ प्रकरण को थोड़ा आगे बढ़ाते है।
तीन त्रिलोकी व्यवस्था।
लोक 7हैं।
1भू 2भुवः 3स्वः
4महः 5जनः 6तपः 7सत्यम्।
इन सात लोकों से क्रमशः तीन त्रिलोकी का निर्माण हुआ है।
क्र स त्रिलोकी सम् लोक
1 रोदसी। 1भू 2भुवः 3स्वः
2 क्रन्दसी। 3स्वः 4महः 5जनः
3 संयती ।। 5जनः 6तपः 7सत्यम्
रोदसी त्रिलोकी का विभाजन करते हैं।
1भूलोक में पृथ्वी पिंड स्थित है।
2भुवः लोक ही अंतरिक्ष है।वहाँ चन्द्र स्थित है।
3स्वः लोक ही द्यु लोक है।इसमें सूर्य पिंड स्थित है।
ऐसा ही अन्य दोनों त्रिलोकियों में जानना चाहिए।
स्वः लोक हमारी त्रिलोकी का द्यु है किन्तु द्वितीय क्रंदसी का भूलोक ही है।वह हमें उस द्वितीय से जोड़े रखता है। महः उसका अंतरिक्ष और जनः द्यु है।
इसी प्रकार जनः तपः और सत्यम् तृतीय,संयती नामक त्रिलोकी के लोक है।जनः उसका भूलोक है।तपः अंतरिक्ष और सत्यम् ही द्यु लोक है।
आप एक रेखाचित्र बनाकर इसे समझ सकते हैं।
यहाँ से सत्यम् पर्यन्त प्रकृति है।
उससे आगे पुरुष है जिसके तीन भेद क्रमशः क्षर अक्षर और अव्यय है।यहाँ तक का वर्णन उपलब्ध है।
उससे आगे परात्पर ब्रह्म है।जो कि अवर्णनीय है।
इसी प्रकार की तीन त्रिलोकियां भू लोक की गहराई में जाने पर भी है।इनकी भिन्न संज्ञाएँ हैं।
सोमवार, 23 फ़रवरी 2015
त्रिलोकी
रविवार, 22 फ़रवरी 2015
वेदार्थ 2
वेद में सबकुछ है।
समस्त ज्ञान ही वेद है।
ऋषि प्रणीत समस्त आर्ष साहित्य ही वैदिक वाङ्गमय है।
पुराण भी आर्ष साहित्य हैं।पूर्वोक्त सांगोपांग वेद में पुरणोत्तर निबन्ध ग्रन्थ और तन्त्र साहित्य भी सम्मिलित है।अतः दयानंदजी की आर्ष परिभाषा से मै सहमत नहीँ।
जो भी सृष्टि में परा अपरा विद्या युक्त ज्ञान है वह वेद है।
वेद को केवल संहिता मानना या उपनिषद पर्यन्त मानना घोर आपत्तिजनक है।
यह फेसबुक तो संकेत मात्र कर सकती है।
क्यों कि प्रत्येक प्रश्न का उत्तर यहाँ सम्भव नहीं।
वेद के बारे में आ रही विवेचनाओं से मै नहीँ घबराता।
वेद को बाल बुद्धि का पश्चिम अभी नहीँ समझ सका है।जिस दिन समझ जायेगा उस दिन सर्वत्र भारत ही भारत होगा।
वेदार्थ हेतु अनुवाद या व्याकरण बहुत छोटी वस्तु है।
वेद जानने का क्रम जैसा कि माना जाता है
पहले संहिता फिर ब्राह्मण फिर आरण्यक.............वेदांग...........और अंत में इतिहास....ये गलत है।
वेदार्थ हेतु इसके विपरीत क्रम पर चलना होगा।
बालबुद्धि के लिए पुराण।
कवि हृदय के लिए रामायण आदि।
फिर दर्शन......उपवेद........वेदांग........उपनिषद और अंत में क्रमशः संहिता।
जिसकी जितनी उड़ान है वह उस अंश तक पहुंचेगा।
जैसे गन्धर्व वेद एक उपवेद है या योग एक दर्शन है।।कोई व्यक्ति जीवन भर प्रयत्न कर अच्छा संगीतवकार या योगी दार्शनिक बनता है,कोई बात नहीँ।उसकी प्रतिभा की उड़ान यहाँ तक पहुंची।
शेष यात्रा अगले जन्म मे।
इस क्षुद्र जीवन में आप विषय तक नहीँ पहुँच पाए इसमें वेद क्या करे?
कोई डॉक्टर बनना चाहता है।10वीं में फेल हो गया।तो चिकित्साविज्ञान की गलती नहीँ।
वेदार्थ 3
जो नित्य ज्ञान है वही वेद है।
यह काल और किसी सम्प्रदाय से बाधित नहीँ है।
गणित में जैसे सर्वसमिका होती है वैसे।
(a+b)^2=a^2+2ab+b^2
यह सर्वसमिका नित्य सत्य है।
इसका एक ही अर्थ है किन्तु कई समान युक्तियों को हल करने में यह अनेक अर्थों को खोलती है।
वेद को भी इस प्रकार के ज्ञान का सन्ग्रह जानना चाहिए।
सृष्टि निर्माण,सञ्चालन और लय के नित्य शास्वत नियम ही वेद है।
इसे हम विज्ञान भी कह सकते हैं।
ईश्वर रचित शास्वत विज्ञान।
आधुनिक विज्ञान विकासशील है पर वेद पूर्ण विकसित विज्ञान है।
अतः वेद अपौरुषेय है। वे साक्षात् ब्रह्म का उच्छ्वास है।
दिक्कत यह है कि हमने आधुनिक विज्ञान पहले पढ़ लिया है और उसकी छवि हमारे मस्तिष्क से जाती नहीँ।हमने और भी बहुत कुछ मिथ्या सीख रखा है।यह बाधा पहुँचाता है,यानि समस्या हमारी और हम दोष देते हैं वेद को।
क्या आपने नहीँ सुना "अनन्ता: वै वेदा:"
फिर क्यों उसे तौलना चाहते हो?
"साफ़ सफ़ाई से रहो और शुद्ध खाओ" उक्त वाक्य में क्या गलत हो सकता है? कौन मुर्ख होगा जो इस शिक्षा को अशुद्ध ठहराएगा।
बाइबिल और कुरान भी इस पर एकमत है।
पर चूँकि वेद उनसे प्राचीन है इसलिए सम्भावना है कि इतर ग्रन्थकारों ने यह बात वेद से प्राप्त की।और यह भी हो सकता है कि उन्हें सीधे ही साक्षात् हुआ हो।
तब भी कोई दिक्कत नहीँ।
उन्होंने सीधे ही कोई वेदाज्ञा प्राप्त कर ली, इससे भी वेद का गौरव कम नहीँ होता।
यद्यपि वेद के सम्मुख उक्त दोनों उदाहरण बहुत हल्के है.....फिर भी समझने में सहायक तो हैं ही।
शनिवार, 21 फ़रवरी 2015
क्या हम मोदी भक्त है?
अक्सर राष्ट्रवादियों को भक्त कह कर उनका अपमान किया जाता है।
उन्हें मोदी भक्त कह कर पल पल यह अहसास दिलाया जाता है कि जैसे हम चापलूस है वैसे ही आप भी हो........इत्यादि।
क्या हम भक्त हैं? जैसा कि वे हमारे बारे में सोचते है? सामान्यतया जो जैसा है वह दूसरों के बारे में भी वही सोचता है।
कहीँ न कहीँ इन आलोचकों के अवचेतन में वे गहरी कुंठाएँ विराजमान है जो वे दूसरों के बारे में कहते रहते हैं।
बात करें कांग्रेस की......तो सबको पता है उसका नेतृत्व कितना नाकारा और अयोग्य है? राहुल गाँधी का बयान किसी चौथी कक्षा के विद्यार्थी जैसे होते है और सोनिया को तो खेर हिन्दी आती ही नहीँ। अब तक मुस्लिम दलित और कुछ अवसरवादियो के भरोसे चवन्नी चल गई सो चल गई.....अभी उसके सारे अमात्य अंदर ही अंदर अमितशाह के सम्पर्क में है और हरी झण्डी की प्रतीक्षा में है।
पर क्या कोई भी कांग्रेसी कार्यकर्त्ता इनके विरुद्ध बोल सकता है?.....हरगिज नहीँ।
वहाँ हाथ हिलाने, दरी बिछाने , मुस्करा देने,ताली बजाने और नारे लगाने का रेट तय है।भीड़ इकट्ठी करने के लिए दिहाड़ी मजदूर और ठेकेदारों के साथ सौदेबाजी सामान्य बात है।
यदि कोई मिडिया या सोशल साईट पर इनके पक्ष में लिखता बोलता है तो हाथो हाथ मोटी फीश चुकाई जाती है....फिर भी उन्हें लेखक नहीँ मिलते।
सञ्जय झा इसके उदाहरण है।यह व्यक्ति बेरोजगार था और कोई गुमनाम पेज का adm था, आज प्रवक्ता की हैसियत रखता है।
बदले में ये लोग जब राष्ट्रवादियों के त्याग और पुरुषार्थ की तुलना स्वयम् से करते हैं तो सारे तर्क फैल हो जाते हैं।
इनकी कल्पना में भी यह बात नहीँ है कि क्या किसी के लिए इस हद तक भी जूनून हो सकता है कि सारे आलोचना सह कर भी कोई रात रात भर जागकर और स्वयम् का डेटा व्यय करके लिख सकता है?
अतः सारी सेकुलर बिरादरी स्वयम् को "निष्पक्ष" और राष्ट्रवादियों को भक्त बनाने पर तुली है।
हालात ये है कि आज वामपंथी,समाजवादी,जातिवादी,या अन्य छद्म सेकुलर बिरादरी को कोई नहीँ सुनना चाहता।
जैसे टीवी पर विज्ञापन कोई नहीँ देखना चाहता वैसे ही इनकी बातों का राष्ट्रिय बहिष्कार हो चुका है।फिर भी मिडिया और कूल डूड बिरादरी इनके झांसे में आ ही जाते है।
इसलिए इनको गरियाया लतियाया जाता है।
इससे बचने के लिए इन्होंने यह रणनीति चली है।
1.स्वयम् को निष्पक्ष बताना।
2.राष्ट्रवादियों को भक्त बताना।
3.हिंदुत्व को संकीर्ण सिद्ध करना।
4.चुप्पी साध लेना।
इनमें चुभने लायक बात भक्त शब्द ही है।
जैसे इन्होंने भगवा और राष्ट्र जैसे पवित्र शब्दों का अर्थापकर्ष किया वैसे ही ये भक्त शब्द का भी अर्थपकर्ष करने पर तुले है।
पर इन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ती है।हम भक्त तो है पर योगेश्वर के।
हम भक्त है हिंदुत्व के।
हम अनुचर है भारत माता के।
हमने भूखे पेट रहकर और अपने परिजनों
को रोता छोड़ भी राष्ट्रसेवा का व्रत लिया है।
हम अभी भी टीन टप्पर में रहकर मस्त जीवन जीते हैं।
हमें वामपंथियों की तरह टेंशन फ्री होने के लिये दारू नहीँ पीना पड़ता।
भक्त तो फिर भी अच्छा सम्बोधन है,
हम इंदिरा गांधी के दमन चक्र में भी नहीँ डिगे।
तुम फो%$याँ हमें क्या डिगाओगे??
#kss
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015
महानगर
महानगर या महापतित?
*****************
तुम योजना बनाते हो ग्राम के विकास की,पर वस्तुत: वो शोषण की एक मशीन होती है।
तुम खा गए कई गाँव,खेत,खलिहान,चारागाह और हरियाली।
ओरण और गोचर।
फिर भी तुम्हारा पेट नहीं भरा। तुम खाते ही जा रहे हो।
तुमने गाँव के कपास से बने वस्त्र के बदले प्लास्टिक दिया।
दूध के बदले मदिरा दी,लत सहित।
अन्न के बदले कचरे के ढेर दिए।
गाँव ने अपने हिस्से का जल दिया। बदले में तूने गाँव को गंदा नाला दिया।
तुझमें कहने को तो सभ्य बसते हैं।
पर
वास्तव में वहाँ बड़े से बड़े चोर,डाकू,लुटेरे और अपराधियों का अड्डा है।
तुझमें अच्छा भी कुछ है क्या?
इस चमचमाहट के पीछे भयंकर अँधेरा और बदबू छिपी है जो कभी भी चाँदनी नहीं बन सकती।
दुनिया भर की कुटिलताएँ और फरेब तुझसे निकलकर तेरे साथ गाँव को भी डस रही हैं,नागिन बनकर।
तू खुद को अजेय समझने के भ्रम में है।
पर मै बता दूँ,,,,,तेरी औकात क्या है?
तू तीन दिन बिना पानी के नहीं रह सकता। एक घंटा भी यदि बिजली चली जाये तो तुम्हारी हालत खराब हो जाती है।
जरा सी मंहगाई और थोड़ी भी असुविधा तुझे बर्दाश्त नहीं।
प्रकृति की थोड़ी भी मार तू सहन नहीं कर सकता।
तू इतना पंगु और परवश हो चूका है कि अपनी प्रत्येक गलती को बड़ी सफाई से छिपाकर दूसरे पर दोषारोपण करता है।
हर पल तुझे सरकार से सहायता चाहिए।
जैसे सरकार तेरी जेब में ही है।
तेरे महा विशेषण से मै नहीं डरता। सरकारें डरती है। मीडिया तेरी रखैल है मै जानता हूँ पर तुझमें इतना भी पौरुष नहीं कि तू उसका उपभोग कर सके।
सच्चाई ये है कि तू गाँव पर पलता है फिर भी उसे उजाड़ने के स्वप्न बुनता है।
तेरे अंदर दुनियाभर की बीमारियाँ घर करके बैठी है। वही बीमारी तू गाँव में भी संक्रमित करना चाहता है।
तुझमें आकर गाँव भी भ्रष्ट और विमुग्ध हो जाता है। तेरी बुद्धिवादिता पर तुझे घमण्ड है। जबकि वास्तव में तू कुछ नहीं जानता। तू एक अन्धी खाई में गिरने की तयारी कर रहा है।
गाँव को तुझपे दया आती है। स्वभाव वश।
पर वो बेचारा कर ही क्या सकता है। तूने उसकी शक्ति पहले ही छीन ली।
जो भी गाँव का बेटा तेरे पास गया,वापस नहीं लौटा। तूने यूज कर लिया।
तेरा केवल एक बेटा,मथुरा से गोकुल आया और गाँव ने उसे कृष्ण बनाकर विश्व को दिया।
तू नहीं जनता,गाँव की शक्ति।
ईश्वर तेरा कल्याण करे।
खंडवालिया
हाँ! मैं खण्डवालिया हूँ।
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मेरे हाथ में जो घन है न,वही इन्द्र का वज्र है।
मेरे पास जो सब्बल है न,शंकर का भाला है।
जिस स्थापत्य को आप निहारते हैं,वो पत्थर पहले मेरे पसीने से नहाया हुआ होता है।
जिस अट्टालिका में मुझे प्रवेश की भी अनुमति नहीं,उसके पत्थरों को मैं अनेक बार पददलित कर चूका होता हूँ।
जिस प्रतिमा को आप सिर झुकाते हैं,किसी समय वो मेरे वशीभूत होती है।
मैं पर्वत के कपाल को फोड़कर,वज्रशिला को भेदकर,अपने एक ही प्रहार से चट्टान को खण्ड खण्ड करके आपके लिए प्रस्तर खण्ड उपलब्ध करवाता हूँ। इसलिए मुझे लोग खण्डवालिया कहते हैं।
सुना है,आजकल सर्दी गर्मी और वर्षा के मौसम की पल पल की खबर रखी जाती है। मुझे आश्चर्य होता है,क्यों कि मेरे लिए एक ही मौसम होता है,,,,,चूल्हा जलाकर बच्चे पालने का मौसम।
यह भी सुना है कि अधिक भार उठाने वाले भारोत्तोलक को खूब इनाम मिलता है। कभी मेरे द्वारा उठाये भार को भी तोलो न!
काली चाय और मिर्च नमक की सूखी रोटी खाकर भी मैं हर समय प्रसन्न रहता हूँ। मुझे बहुत आश्चर्य होता है जब पता चलता है कि नींद नहीं आना भी इस जगत में एक रोग है। क्यों कि मुझे तो जेठ के महीने में 50'c तापमान में, केवल सब्बल पर टंगे तौलिये की छाया में भी बड़ी जोर की नींद आती है।
आप जब मेरे खंडे खरीदने आते हो तो 20-25 खंडे ज्यादा डालकर और 500-1000रूपये कम दे जाते हो। जब मै आपकी दुकान में बच्चो के लिए एक किलो आटा खरीदने आता हूँ,तो मुझे कभी भी उधार नहीं मिलता।
चुनाव से पहले मुझे एक बोतल जरुर मिलती है। पर क्यों मिलती है,मै नहीं जानता?
मुझे कहा गया कि अब तुम्हें यह काम नहीं करना पड़ेगा,क्यों कि तुम्हारे मनरेगा के जॉब कार्ड बन रहे हैं। बाद में कहा गया कि बन चुके हैं। पर मै नहीं जानता कि वे कहाँ हैं?
सरकार ने मेरे लिए एक खनन विभाग बनाया है। जब उसके अधिकारी आये तो उलटे हमें हमारी ही भूमि से मार कर भगा दिया। बड़ी बड़ी मशीनें आयी हैं,ब्लोक निकल रहे हैं। अब हमारे पास कोई काम नहीं।
जमीन है नहीं। है भी तो वर्षा नहीं। भीख कोई देता नहीं। ढेर सारे अनपढ़ बच्चो को लेकर मै कहाँ जाऊ?
आप ही बताओ,खण्डवालिये कहाँ जाएँ?
मुफ्तखोरी
कई वर्ष पहले जब फ्री में अनाज वितरण शुरू हुआ था,लोगोँ ने लेने से इंकार कर दिया।
केवल भिखारी या भिखमंगी कुछ जातियों, जैसे जोगी आदि को छोड़कर कोई भी मुफ़्त का अन्न खाने की सोच भी नहीँ सकता था।
तब यदि कोई इस प्रकार की घोषणा करता तो प्रतिक्रिया होती "हमें भिखमंगा समझ रखा है क्या?"
प्राप्य वस्तु को फ्री में उपलब्ध करवाना स्वाभिमान पर हमला माना जाता था।
फिर कुछ NGO वादी आने शुरू हुए,गाँवों में।
बच्चों को इकट्ठा करके एक एक पारले जी बांटते।
और समझाते कि ये तुम्हारा "हक" है।
हक की लड़ाई के सेमिनार होने लगे।
जो फिसलते गए उन्हें जागरूक कह कर भुनाया गया।
सार्वजनिक अभिनन्दन होने लगे। हकवादी मजे करने लगे और स्वाभिमानी हाशिये पर।
पारले जी से जेबख़र्ची यानि छात्रवृत्ति।
फिर कभी पशु तो कभी टँकी।आवास भी मिलने लगे। लाखों की घोषणाएँ,हजारों का रजिस्ट्रीकरण,सेकड़ों को बुलावा और अंत में किसी एक को "हक"।
इसी को विकास माना गया।
एक बार आदत लगा दी तो हक का दायरा बढ़ता गया।
धीरे धीरे देश के महत्त्वपूर्ण सन्साधन भी हक की भेंट चढ़ने लगे।
कभी मिक्सी तो कभी कम्बल,कभी साड़ी तो कभी गहना,; यहाँ तक तो ठीक,
अब मनोरंजन और विलास की चीजें भी हक में शामिल हो गई।
आने वाले समय में बिजली पानी के साथ साथ कुछ समूहों को खुश करने के लिए देश के कुछ कुछ टुकड़े काटकर आराम से हक के लिए कुर्बान किए जाने वाले हैं।
खालिस्तान थोडा बड़ा और पुराना मामला था,
छोटे छोटे टुकड़ों के ऑफर।
आहिस्ता आहिस्ता,,,,,,,,,,देखें क्या होता है?
प्रहसन
गप्पाष्टकम्
अर्धरात्रौ एका सुकन्या
रेलयानात् अवतीर्य कुत्रापि
गच्छन्ती आसीत्।
अनेके युवकाः तम् अनुग्रहम् कुर्वन्ति
यत् मया सह चलतु।
किन्तु सा न अङ्गीकरोति।
सहसा एकः मोटर्सयकिलचालकः
तत्र आगच्छति।
तत्क्षणमेव सा कन्या
झटिति तस्य पृष्ठे आरोहति।
युवकः पृच्छति "भो कन्ये! भवती किमर्थं मयि विश्वसिति?" इति।
तत् श्रुत्वा सा कन्या वदति.....
"भवति मम दृढविश्वासः।यतो हि भवतः यानस्य पृष्ठे लिखितम् अस्ति............"
अत्र रिक्त स्थाने कुत्रचित् पाठभेद: उपलभ्यते।
यदा अहम् फेसबुकम् पश्यामि,
नैको शब्द: दृश्यते।
वो एक राजपूत था।
वो एक हिन्दू था।
वो एक मेघवाल था।
वो एक मुसलमान था।
वो एक रबारी था।
वो एक भील था।
वो एक क्षत्रिय था।
वो एक ब्राह्मण था।
वो एक वैश्यथा।
वो एक खत्री था।
वो एक दर्जी था।
वो एक नाईथा।
वो एक सोनी था।
अस्तु...........
इत्युक्ते अत्र रिक्त स्थाने सर्वे सन्ति।
अतः मम अभिप्रायमेष: यत्
"...................." से पंगा मत लेना क्योंकि
जिन्होंने "............."से पंगा लिया वो खुद मिट गए।
अहो!!बहु "खतरनाक" अस्ति ".............."
#kss
दलित
मुझे जो नाम दिया गया उसका अर्थ है
"जिसका दलन किया गया हो।"
अर्थात दलित।
जैसे किसी की एक आंख फुट जाये और सब उसे कानिया कानिया कहते हैं,आरम्भ में बहुत बुरा लगता है,पर बाद में वो इसका अभ्यस्त हो जाता है वैसे ही आरम्भ में इस नाम से मुझे बहुत अपमान अनुभव होता था। पर अब कुछ भी बुरा नहीं लगता।
बल्कि कुछ लोग मुझे इसके लिए गर्व करने का भी आग्रह करते हैं।
मुझे सम्विधान में बहुत सी सुविधाएँ दी गई। कहा गया कि तुम पिछड़े हो। इस लिए स्टार्ट लाइन में तुम्हें आगे खड़ा किया जा रहा है।
मुझे दौड़ने को कहा गया।
मै दोड़ तो पहले से लगा रहा था।
पर पता नहीं मै कभी जीत नहीं पाया।
मुझे थोड़ा और आगे खड़ा किया गया। फिर भी मै हार गया।
अगली बार मुझे बिलकुल end लाइन के पास खड़ा किया गया, पीछे वालों ने खूब हूटिंग की।
लेकिन अफ़सोस इस बार भी हार।
मुझे बहुत झल्लाहट हुई। पीछे वाले कुछ मित्र मेरी हंसी उड़ा रहे थे।
मैंने अपील की।
जाँच कमेटी बैठी। मुझे बताया गया कि तुम्हारे पास पैर ही नहीं है।
मुकाबला बराबर करने के लिए पीछे वाले सब प्रतियोगीयों के पाँव भी हटा दिए।
इस बार मामला कुछ ठीक ठाक रहा। पर जिनके पैर कटे थे,वे मुझ पर बहुत गुस्सा हो रहे थे। मेरी इसमें कोई सहमती नहीं थी। पर फिर भी सारा दोष मुझ पर ही डाला गया। मेरा बहिष्कार कर लिया गया।
जो मुझे बार बार दौड़ा रहे थे, वे एक दिन घर आये। मुझे बताया गया कि तुम जीत गए हो। तुम्हारा विजय जुलुस निकाला जायेगा।
मेरे लिए एक कोट भी लाये थे।
पर जब पहना तो वो फिट नहीं हुआ। उसके बाजू छोटे थे। जुलुस जरूरी था। समय कम था। उन्होंने मेरे हाथ ही काट डाले।
किन्तु मेरा जुलुस और विजय का वो आनंद फीका रहा,क्यों कि एक भी दोस्त उसमें शामिल नहीं हुआ।
आयोजकों ने कहा,उन्हें भूल जाओ।
आयोजक चले गए। अकेलेपन में मै नशे की गोद में चला गया।
मेरे बच्चे गाली गलौज करते रहे। घर अस्वच्छ।
कचरे मे बसेरा।ऊपर से जो भी हितचिंतक आए वही अहसान जताए।
कभी एक योजना कभी दूसरी योजना।कभी ये फार्म भरो कभी दूसरा।
मेरे मित्र कुछ भी न करते हुए कुछ भी न पाते हुए भी खुश और मैं रोज कुछ न कुछ पाने का भरोसा लिए हुए भी दुःखी।
बिना कोई धर्म कर्म के भी उनको कोई बीमारी नहीं और इधर गला फाड़ फाड़ कर रात भर जाग जाग कर भी ईश्वर के गुण कीर्तन के बावजूद कभी भी पूरा परिवार स्वस्थ नहीं दिखा।
खडाली
हाँ,!मैं खडाली हूँ!!
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जी हाँ!
अच्छा मानो या बुरा। युग युग से इस किनारे पर कृषि और पशुपालन के सहारे अपनी आजीविका पालता। आपकी तरह हवेली तो खड़ी नहीं कर पाया,पर कहीं छीना झपट्टा या लूट मार करके भी गुजर नहीं की।
कमाया इतना कि देगड़ी भर रूपये लोमड़ियाँ बिखेर गई और मै हँसता रहा।
कच्चे झोंपे में इतनी चाँदी और सोना रहता कि कोई आया और ले गया। अँगोछे में नोटों की गड्डी की गठरी बांध कर साहूकार के पास जमा करा आता। और बदले में उलटे उसी को ब्याज भरता। पर थी सारी परिश्रम की कमाई।
हाँ,मैं ही हूँ वह। जो खुद तीन दिन बिना पानी और पाँच दिन बिना भोजन के रह सकता हूँ। मेरी गाय सात दिन में एक बार और बकरी चार दिन में एक बार पानी पीती है। और ऊंट,,,,,!उसको दो माह तक भी जरूरत नहीं।
दस किलो आटा खाना या पन्द्रह लीटर ऊँटनी का दूध पीना मेरे बाएँ हाथ का खेल है।
मैंने एक रात में सत्तर किलोमीटर की दुरी तय की है। एक हथेली पर ऊंट को उठाकर,कोठे सहित कुँए की परिक्रमा की है।बैल गाड़ी को उछाला तो 30 मीटर की खेजड़ी पर अटक गई।
हाँ,वो मै ही हूँ।
मेरे पुर्वजो का साम्राज्य और राजधानी दूर रह गई पर मै विचलित नहीं हुआ। मुझे राजघरानों ने अत्यंत बंजर रेगिस्तान में छोड़ दिया पर मैंने वहाँ भी 60पुरस के कुए से प्यास बुझाई। कहने को तो आप राजा थे पर यहाँ का नियंता तो मै ही था।
एक तरफ पूरा हिन्दुस्थान था और दूसरी तरफ समस्त बर्बर मध्य एशिया। मैं इस स्थान पर रहकर भी अपना डंका बजाता था। शत्रु रात भर नहीं सो पाते और मै तब भी खर्राटे भरता था।
मुझ पर मत हंसो। मत पूछो कि मैंने क्या किया और तुमने क्या?
आजादी का कोई उपहार मुझे न मिला। पर मैंने 1965 के युद्ध में सारे विधर्मी गाँव खाली करा दिए। आज जो विष बेल पनप रही है,मै तो उसके बीज भी यहाँ नहीं रखना चाहता था।
हंसो मत। मेरे रक्त में आज भी वही शुचिता और पवित्रता पनप रही है। जब बाहर आकर देखा तो सब कुछ नष्ट हो चूका था। और उसके जिम्मेदार भी तुम हो।
हाँ,भोला जरुर हूँ। यह कोई अवगुण नहीं। साक्षात् भोलेनाथ का प्रसाद है। माँ तनोत की गोद में पीढियों तक संघर्ष करते रहने से मुझमें इतनी प्रतिरोध क्षमता आ चुकी है कि मृत्यु को भी कुचलकर ,वैभव को भी ठोकर मारकर आगे बढ़ सकता हूँ।
यह जो नहरी भूमि है वो युगों तक संरक्षित रही,मेरे कारण। तारबंदी और bsf तो कल की बात है। हिन्दुस्थान की रखवाली मैंने की,और मुझे गर्व है कि कई पीढियों तक की। आगे भी करूंगा।
हाँ,मैं खडाली हूँ। मुझे इसका गर्व है।
#खडाल :- जैसलमेर का उत्तर पश्चिमी क्षेत्र जो पाक सीमा से लगता है। वहाँ के निवासी,खडाली।
शिव
हे शिव!!
नमस्कार।
यह जानते हुए भी कि
बिना "शिवो भूत्वा शिवम् यजेत्"
तुम्हें नहीँपूजा जा सकता।
फिर भी तुम्हें नमस्कार।
हे नीलकण्ठ!
यह जानता हूँ कि मेरा वर्ण तुझसे
उजला है।
केवल इस एक गुण के आलावा मुझमें
अवगुण ही अवगुण है।
तुम्हारा भोलापन तुम्हें विषपान करा गया।
हे भूतनाथ!!
समस्त शिल्प के जनक हो कर भी
तुम्हें भग्न मन्दिर मिला,
अखाद्य खिलाया ।
लोक विरुद्ध अलंकरण,
तुम्हारे उत्सव में मजाकिया लोग,
गालियों से स्वागत,
नगर से दूर एक बंजर कोने में
स्थापना,की अविधिपूर्वक।
तुम ही हमारे प्रथम पितर हो,
फिर भी सर्वाधिक उपेक्षित भी।
हे प्रलयंकर!!
मत खोलना तीसरा नेत्र!
यद्यपि "अपराध सहस्राणि क्रियते अहर्निशं मया"
पर इस विराट से पृथक हो कर
मिटजाएगा मेरा भी अस्तित्व।
तुम्हारे भोलेपन से ही मै "सेफ" हूँ।
मेरे द्वारा की गई "आरक्षित"टिप्पणियों के
लिए...................!
हे समस्त विद्याओं के अधिपति!!
क्षमस्व परमेश्वर!!_/\_
मगध
कोई छींकता भी नहीँ मगध में।
(बात धनानंद के समय की नहीँ, मौर्यो के काल की हो रही है।)
अब खौफ़ मगध के शासकों से नहीँ,
शासकों को मगध की जनता से है।
कोई भी शासक,अब छींक भी नहीँ सकेगा,
क्यों कि जनता की शान्ति भंग हो सकती है।
जनता है तो मगध है।
मगध जीतना है तो राजधानी जीतो।
पाटलिपुत्र हथियाओ।
कैसी है,पाटलिपुत्र की जनता?
उसे अब फ्री चाहिए,सब कुछ।
भई इतने दिन बहुत अत्याचार सहा है!!
अब नहीँ सहेंगे।
खाएंगे,पिएंगे,मौज करेंगे।
पूरे मगध से कलेक्ट कर कर के लाओ।
राजधानी को खिलाओ।
अरे भई जलते क्यों हो?
राजधानी की पब्लिक हैं।
कोई यूँ ही नहीँ बसता राजधानी में?
बहुत सह लिया।
खूब लुटे,पिटे,जब जिसने चाहा रगड़ा है।
भाड़ में जाए,अर्थशास्त्र।
सेल्युकस आए या अलक्षेन्द्र।
हमें तो बस आराम चाहिए।
एक भी पण व्यय किये बिना।
सोन और गंगा का पानी।
गांधार का मेवा।
चीन की बरनी में,
मंगोलिया का आसव।
साथ में सुराही जैसी गर्दन वाली,
यूरोपीय नर्तकियाँ भी।
हम हैं तो मगध हैं।
दिन भर जानलेवा कैमरे के सामने
और हचकोले खाती ओबी वेन में,
बहुतथक जाते हैं।
दोगे क्यों नहीँ?
बाप का राज है क्या?
जख मार कर देना पड़ेगा।
न केवल देना,
व्यवस्था भी करनी पड़ेगी।
प्रत्येक घर के दीप की।
रेशमी वस्त्र और अन्न की।
हर घर के आगे स्वर्णखचित आसन स्थापित करना होगा।
जल का नित्य छिड़काव,सुगन्ध युक्त।
क्या कहा?????
नहीँ मिलेगा?
अरे ओ सेल्युकस!!
तू आजा।
बन जा सम्राट।
मगध की राजधानी तुझे
आमन्त्रित करती है।
इन मौर्यों के अब,वश की बात नहीँ।