शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

तुम नहीं समझोगी,,,,

कहानी का शीर्षक ऐसा है जैसे किसी स्त्री को सम्बोधित  किया जा रहा है,, परन्तु वास्तव में वह आधुनिक स्त्रैण पूर्वाग्रही विचारधाराओं के लिए है।

किसी घर में एक साधारण परिवार रहता था।
उस परिवार में साधारण मनुष्यों की तरह ही अनेक प्रकार की आधि व्याधियाँ चलती रहती थी।
वह इन सबसे दुःखी था और कोई ऐसी निरापद औषध चाहता था जो रोज रोज के इन्सुलिन, एस्प्रिन, क्लिनिकल ट्रीटमेंट, डॉक्टर के चक्कर और चिकित्सकीय तीमारदारी के भारी व्यय से बचा सके।
एक बार एक #ज्ञानी वहाँ आए!!
उन्होंने उस घर के गृहस्वामी को बताया कि वर्षा ऋतु के पश्चात भूमि पर उगी कई वनस्पतियाँ इतनी कीमती और उपयोगी हैं कि यदि उनका ठीक से सेवन किया जाए तो व्यक्ति, स्वस्थ तथा मौजूदा क्षमता से कई गुणा अधिक क्षमतावान बन सकता है।
गृहस्वामी ने पूछा "वे कौन सी औषधियां हैं और उनका कैसे उपयोग किया जा सकता है?"
तब ज्ञानी बोले "यह बहुत जटिल प्रक्रिया है। हजारों औषधीय पौधे और वनस्पति हैं, उनके गुण धर्म भी प्रति दिन, प्रति रात प्रत्येक अवस्था के अनुसार बदलते हैं। उन्हें सीधे ही नहीं खाया जा सकता। काफी प्रोसेसिंग करनी पड़ती है। पहले तो उन्हें फार्मूले के अनुसार ढूढों, फिर काटो, पीसो, धोओ, मिलाओ, और उसके बाद सेवन करना है।"
ज्ञानी बोले,,,, "यदि तुमने जन्म भर इसका सेवन किया तो तुम्हारी शारीरिक क्षमता बढ़ जाएगी,,,, यदि तुम्हारी अगली पीढ़ी ने भी उसे जारी रखा तो वह बौद्धिक क्षमता में बेजोड़ होगी और यदि तुम्हारी तीसरी पीढ़ी भी ऐसा करती रही तो वह अद्भुत लोकोत्तर प्रतिभाओं से युक्त होंगी।"
गृहस्वामी बोले "ऐसा तो सभी चाहते हैं पर यह बहुत और कष्टकारी है। इसके लिए बहुत सारे सेवक रखने पड़ेंगे, एक लैब भी स्थापित करनी पड़ेगी, कई फार्मासिस्ट भी चाहिए, उन सबका वेतन आदि,,,, यह तो बहुत मंहगा पड़ेगा।"

तब ज्ञानी बोले,,, "यदि मैं तुम्हें एक ऐसी वस्तु दूँ जो यह सब कार्य करेगी,,,, तुम्हारे हिसाब से वह कितने की होनी चाहिए,,,,!"

"क्या एक वस्तु,,, और इतना कार्य,,,? यह तो असम्भव लगता है।"

"हाँ,,, और इसका व्यय, तुम्हारे परिवार के एक सदस्य के ऊपर होने वाले व्यय से भी कम है।"

अवाक,,, और कृतज्ञ गृहस्वामी ने उस ज्ञानी को #भू देव मानकर प्रणाम किया और उस वस्तु को "गाय माता" मानकर धन्यता अनुभव की।

*********

ऐसे सरल सूत्र देने वाले ज्ञानियों को यदि किसी ने ब्राह्मण देव कह दिया तो गुनाह तो नहीं किया !!
ऐसी उपयोगी गाय को माँ कहकर सम्मान दिया तो कोई अपराध तो नहीं किया !!
और
यदि सहमत नहीं है तो ले आइये,,,,, दूसरा कोई इससे भी सस्ता वैकल्पिक सलाहकार,,,,!
ले आइये दूसरा वैकल्पिक सस्ता इलाज जो इतना उपकारी और उपयोगी हो।
कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों ने कहा कि दूध वह है जिसमें इतना फैट हो,,, वगैर वगैर,,,,!
क्या वास्तव में गौ दुग्ध की परिभाषा इतनी सी ही है?
वैज्ञानिकों के बस की बात नहीं कि वे #ब्राह्मण को परिभाषित कर सकें।
कि वे गाय की समग्र परिभाषा दे सकें,,, उसे समझ सकें,,,!
कि वे  #पद्मावती के जौहर को समझ सकें।
कुछ चीजें तुम्हें कभी समझ नहीं आएगी।
यूँ ही सर नहीं कटाते थे,,,, यूँ ही "पूजहिं बिप्र शील गुण हीना नहीं कहते थे,,, यूँ ही सतीत्व रक्षण के लिए अग्नि स्नान नहीं करते थे।
इनको समझने के लिए भारत में जन्म लेकर भी कुछ "अतिरिक्त योग्यता" चाहिए होती हैं।
मुझमें वह है, अतः मैं गर्व से इतराता हूँ।
क्या तुझमें है,,,?
#kss

शनिवार, 16 सितंबर 2017

उसकी जाति, उसकी दुकान

ब्राह्मण,,,,?
जो वास्तव में ब्राह्मण थे, वे तो कभी के आरएसएस जॉइन कर #राष्ट्रवादी बन चुके हैं। वे ब्राह्मणत्व से अधिक अपनी हिन्दू अस्मिता से जाने जाते हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं।
ब्राह्मण है और राष्ट्रवादी नहीं है तो फिर वह ब्राह्मण है ही नहीं।
फिर ये राष्ट्र और आरएसएस के विपरीत चलने वाले कौन है?
ये वही नकली ब्राह्मण हैं जो पण्डावाद फैलाकर पहले भी देश की दुर्गति करवाते रहे और आज भी उसी में लगे हुए हैं।

ये ब्राह्मणों के नाम पर दुकान चलाने वाले देशद्रोही #कलंक हैं।
इन्हें ब्राह्मण कहना ब्राह्मणत्व का अपमान है!!

क्षत्रिय,,,?
जो वास्तव में क्षत्रिय हैं वे राष्ट्रवादी बन आरएसएस जॉइन कर चुके हैं। वे क्षत्रिय से अधिक, स्वयं की हिन्दू पहचान से गौरवान्वित होते हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं।
क्षत्रिय है और राष्ट्रवादी नहीं है,,, ऐसा हो ही नहीं सकता!!
फिर ये कौन है जो राष्ट्र और संघ से विपरीत चल रहे हैं,,,?
ये वही कुलकलंक हैं जिनके कारण देश माता एक सहस्र वर्ष वैधव्य के कलंक को  ढोती रही!
ये पहले भी संदिग्ध थे, ये आज भी संदिग्ध हैं।
ये क्षत्रिय नहीं, नकली क्षत्रिय हैं जो क्षत्रिय के नाम की दुकान चला क्षत्रियों को बदनाम कर रहे हैं!!
इन्हें क्षत्रिय कहना, क्षत्रियत्व का अपमान है!!

वैश्य,,,,?
कहाँ है वैश्य,,,?
जो असली महाजन थे वे तो कब  के राष्ट्रवादी बन चुके हैं। उन्होंने अपनी वैश्य पहचान को त्याग कर हिंदुत्व को स्वीकारा है।
उन्होंने आरएसएस जॉइन कर ली है।
वे वैश्य से अधिक, स्वयं की हिन्दू पहचान से गौरवान्वित होते हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं!!
फिर ये वैश्य के नाम पर पूंगी बजाने वाले कौन हैं?
ये वही परजीवी हैं जो देश संकट के समय भी अपनी तिजोरी भरने में व्यस्त रहे और अपने ही देशवासियों के जख्म में कुलबिलाते कीड़े जिन्हें दिखाई नहीं दिए।
ये वैश्य नहीं, नकली वैश्य हैं जो वैश्यों के नाम पर अलग दुकान चला, वास्तविक वैश्यों को बदनाम कर रहे हैं!!

शूद्र,,,,?
कहाँ है शूद्र,,,,?
जो वास्तविक शुद्र थे वे कब के इस अपमानजनक सम्बोधन वाले आवरण को तोड़, हिन्दू बन चुके हैं। उन्होंने आरएसएस जॉइन कर लिया है। वे स्वयं को शूद्र कहलाना भी पसंद नहीं करते, वे अपनी पहचान हिन्दू के रूप में करवाते हैं।
बल्कि, वे ही वास्तविक हिन्दू हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं !!
फिर ये शूद्रत्व के नाम पर रोज होंगे वाली हाय तौबा कौन कर रहे हैं?
ये वही नकली शूद्र हैं जो पहले भी राष्ट्रसंकट के समय उत्सव मनाते थे, आज भी मनाते हैं।
इन्हें शूद्र कहना, शूद्रत्व का अपमान है। ये तो #शूद्र नाम वाली किसी दुकान के दुकानदार हैं जो खुलकर माल कूट रहे हैं!!
#हिन्दू है और #संघठित नहीं है, उसे हिन्दू मानो ही मत।
वे हिंदुत्व की अच्छाई और बुराई पर दुकान चलाने वाले ढोंगी व्यापारी हैं।
हिन्दू  शरीर से उत्सर्जित कालबाह्य परम्पराओं से उर्वरक बना अपनी अलग फसल काटने वाले इन हिन्दू द्वेषियों को पहचानना ही होगा।
यतो संघस्ततो हिन्दु: ,,,,  हिन्दू धर्मो विजयते !!
#kss

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

पत्र

माननीया,,,,
            वसुंधरा राजे जी,(मु म, राजस्थान) !!
             नमस्ते!
मैं एक नौ वर्ष का #बालक हूँ, और आज आपको यह पत्र लिख रहा हूँ।
       मैं एक सरकारी विद्यालय में चौथी कक्षा में पढ़ता हूँ और छोटे से गाँव में रहता हूँ। आपकी सरकार द्वारा पढ़ाई किताबों में एक जगह लिखा है कि छोटे बच्चों को दूध पीना चाहिए, इसलिए मेरे और दीदी के लिए पिताजी एक गाय लेकर आए! मैंने आज तक चाय को हाथ नहीं लगाया और रोज दूध पीता हूँ।
अभी हमारी गायों की संख्या पाँच हो गई है और वे भादो के महीने में भी घर के बाड़े में दिन भर बन्द रहती है।  कारण,,,,  चारों ओर की सरकारी भूमि और गोचर पर लोगों ने तारबन्दी कर अवैध खेती कर रखी है।
महोदया!!
          ये अवैध खेती वाले रात को तारबन्दी में करंट छोड़ते हैं, दिन को लट्ठ लेकर गायों को भगाते हैं, ट्रैक्टर पीछे दौड़ाते हैं, कई पशुओं को पकड़ कर धातु की तार से मुँह बाँध देते हैं।इससे प्रतिदिन कई गाय, बैल, बछड़े, ऊंट, उंटनियाँ, आदि मर रहे हैं, अपँग हो रहे हैं और सड़कों पर आकर जम जाते हैं।
महोदया,,,!!
स्थिति यह है कि उल्टे ये लोग आकर हमें धमकाते हैं और कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं।
अब मेरे पिताजी इन सब गायों को बेचना चाहते हैं किंतु कोई भी लेने को तैयार नहीं। गौशाला वालों ने भी मना कर दिया, हमारे पुष्तैनी पण्डित जी, रिश्तेदार और निकट सम्बन्धियों को फ्री में देनी चाही पर सबने मना कर दिया!!
पहले हमारी गायों में एक ग्वाला होता था जो कुछ चराई के बदले गायें चरा लाता था, किन्तु इस वर्ष ग्वाला कोई तैयार ही नहीं हो रहा है, क्योंकि जब खुली जमीन ही नहीं है तो वह कहाँ लेकर जाए?
आज जिनके पास गाय नहीं, वे बड़े खुश हैं और हमारी मजाक भी उड़ाते हैं, हमारी दुर्गति देखकर!!
महोदया!!
आप धार्मिक हैं और मंदिरों में जाती हैं, ऐसा हमने सुना है। ये देवी देवता आपकी सुनते भी होंगे।
महोदया,,,!
उन देवताओं से कहना कि हमारी गायों को अपने पास ले जाएं क्योंकि यहाँ अब उनके रहने, चरने, फिरने की जगह ही नहीं बची। हम बिना दूध के रह लेंगे। हम उस पाठ को पढेंगे ही नहीं, जिसमें दूध पीने का लिखा है। हम अपनी टीचर को भी मना लेंगे कि वह हमें #गाय पर लेख रटाना बन्द करे। मैं अपने पिताजी की अलमारी में रखी #गौदान पुस्तक को भी चुपके से जला दूँगा।
महोदया,,,!
मैंने पढ़ा है कि #राजस्थान का क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है। यहाँ भी जब भूमि की यह स्थिति है तो दूसरी जगह तो और भी बुरी स्थिति होगी, और वहाँ जब गायें हैं ही नहीं तो ये,,,,,, शहर में दूध कहाँ से आता है ,,,?,,,,,यह मेरे लिए अभी भी रहस्य है ।
मैंने सुना है कि गायों के लिए लड़ते हुए कई लोगों ने अपना बलिदान दे दिया।
मैं 9 साल का बालक अभी तो नहीं लड़ सकता, पर जब देखता हूँ कि बड़े भी नहीं लड़ रहे, तो समझ नहीं पाता कि उनकी क्या मजबूरी है?
मेरा वोट भी नहीं है। मेरी गायें भी वोट नहीं दे सकती।
आप तक बात पहुंचाने का यह आइडिया मेरा ही है और पिताजी ने वही लिखा है जो मैं उन्हें कह रहा हूँ।
महोदया,,,!
हो सके तो कुछ कीजिए। अवसर सबको नहीं मिलता!!
आपका
#हर्षवर्धन

पूजा

पूजा का अर्थ केवल गन्ध फूल चढ़ाना ही नहीं है,,,,, पूजनीय गुरुजी की इस पंक्ति को आगे बढ़ाते हैं।
किं पूजनम् ??
क्या सामीप्य?
या फिर सायुज्य?
अथवा कृतज्ञता ज्ञापन,,,???
कर्मकाण्ड का जो वैदिक स्वरूप था उसमें समय समय पर बहुत परिवर्तन हुए हैं।
वर्तमान षोडश उपचारादि बहुत बाद के हैं और क्षेत्र, सम्प्रदाय, काल के अनुसार बहुत भिन्नता वाले हैं।
आचमन, आह्वान, प्राणायाम, करन्यास, आदि कई कार्य बिलकुल उसी रूप में हो रहे हैं, जैसी शास्त्राज्ञा है,,,?
बिल्कुल नहीं।
ये सब और विधियां भी, सब परिवर्तनीय है।
परिवर्तन होते आये हैं।
उत्तर और दक्षिण की विधियों में भी अंतर है।
नवति प्रतिशत लोग कर्मकाण्ड का मर्म ही नहीं जानते।
विधि, उच्चारण, प्रसंगानुसार मन्त्र और पद्धति से अनभिज्ञ लोग आखिर करें तो क्या करें?
मेरा मन्तव्य अश्रद्धा निर्माण नहीं,
दृढ़ विश्वास निर्माण है।
यादृशी भावना यस्य,,, सिद्धि भवति तादृशी,,,,
विश्वासी बनो।
प्रचण्ड आत्मविश्वास से सम्पन्न पराक्रमी पुरूष सिंहों के उद्योग ही विधि बन जाते हैं।
कबड्डी अधिक प्रभावी है, घण्टा बजाने से।
क्रियाशील सात्विक और जितेंद्रिय नास्तिक भी हजार आस्तिकों पर भारी पड़ता है।
जड़वादी आस्तिकता, नास्तिकता ही है।
संकल्पित नास्तिकता भी आस्तिकता है।
प्रातः सन्ध्या में नियत तीन प्राणायामों की अपेक्षा, स्वामी रामदेव निर्दिष्ट पंच प्राणायाम कीजिए।
कोई आवश्यकता नहीं ताम्रपत्र और पवित्री की।
व्यावहारिक लाभ ही लाभ है।
शास्त्रोक्त अदृष्ट से अभी तुम कई योजन दूर हो!!
पहले उपयुक्त वातावरण की सृष्टि तो कर दो!!
तब तुम्हें तपोवन में बिखरे नीवार के बारे में सोचना चाहिए।
#kss

सेक्युलर भक्ति

सेक्युलर भक्ति , #भक्ति न भवति।
उपासना पध्दतियों का घालमेल सबसे बड़ा पाखण्ड है।
यह एकं सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति ,,,, वेदवाक्य का सबसे बड़ा मजाक है। यह उसी श्रृंखला का एक षड्यंत्र है,,, जिसमें भारतीय मूल्यों की चाशनी में जहर घोल कर भारत को पिलाया।
गांधी बाबा ने ईश्वर अल्ला तेरो नाम,,,,, गाया।
वर्षों तक सर्वोदयी लोग "सर्वधर्म प्रार्थना" का राग गाते थे,,, गाते रहे। #गांधी गान का परिणाम यह हुआ कि लगभग सभी भारतीय मन्दिरों में, भरी भीड़ के सामने यीशु, श्रीकृष्ण, मोहम्मद, ईश्वर, अल्ला, देवी आदि को #एक बताने के नारे लगाए जाते रहे हैं।
कबीर और गाँधी लाख एका रटते रहें,,,, पर क्या वे अपने इस नारे को किसी मस्जिद या चर्च में लगवा सके?
क्या पाकिस्तान में कोई एक भी जिंदा सर्वोदयी उस एका गान को गाता है? गाना तो क्या,,, कोई सहमत भी है?
मुस्लिम गुंडागर्दी से त्रस्त गाँधी और कबीर ने सेक्युलर भक्ति की खोज की जिसे मुस्लिम ईसाइयों ने ठुकरा दिया पर हिन्दू तीर्थ अवश्य प्रदूषित हो गए!!
जैसी कि परम्परा रही है, सभी दुर्भाग्य के #भूत हिंदुओं के ही पीछे लगाए जाते हैं।
उपासना नितांत व्यक्तिगत विषय है, इसमें सामुहिक घालमेल राजनीति और षडयंत्र वश किया जाता है। जो कि नहीं होना चाहिए।
वह सबसे बड़ा ढोंगी है जो सभी मजहबों को समान बताता है।
वे सबसे बड़े पाखण्डी हैं जो ईश्वर अल्ला एक होने और भजने की बात करते हैं।
जब कोई ऐसा कह रहा है, उसका यह अर्थ है कि वह मात्र हिंदुओं पर चोट करने का एक नया उपाय मात्र कर रहा है।
कबीर के समय युग की मांग थी, हालांकि बाद में स्वयं कबीर ने इसके रहस्य को खोला जिसे जानने की जरूरत है। गाँधी तो नाम ही मजबूरी का है।
वर्तमान मजबूत हिंदुत्व की ऐसी कोई मजबूरी नहीं।
सेक्युलर भक्ति, भक्ति नहीं जाल है, तुम्हें #फांसने का।
#kss

बंटवारा

बंटवारा

"कोई फालतू बहस नहीं,,,,,, हमेशा करते हैं वही होगा,,,, और चूंकि मैं सबसे #सीनियर हूँ तो किडनियां मैं लूँगा,,,!" बड़े डॉक्टर बोले।

"सर,,, आप लीवर रख लीजिए न! हम दो हैं और किडनी भी दो हैं तो बंटवारा सही सही होगा" एक कनिष्ठ शल्यचिकित्सक बोला।

"नो,,, नो,,,, रूल इज रूल,,,! लीवर और दूसरे इंटरनल ऑर्गन पर हॉस्पिटल अथॉरिटी का हक है। आखिर यह थियेटर,,, ये टेबल और ये सारे टूल्स इसी के तो हैं।"

"सर मैं बताता हूँ,,, क्या करें,, ,, !" एक फीमेल नर्स, जो कि फीमेल अधिक और नर्स कम लगती थी, बीच में बोली। बोलते समय उसने अपना हरा मास्क नीचे खिसकाया ताकि "रंगीन होठ" ठीक से सबको दिख जाएं।
"क्या,,, !" दूसरे युवा सर्जन तपाक से बोले।
"इनको आंखें दे देते हैं। एक आंख लाखेक की तो होगी ही।"
"लाख,,, और आंख के,,,, भंसाली ट्रस्ट फ्री देता है फिर भी कोई नहीं ले जाता,,,!" इस बार मेल नर्स बोला।
वह कहीं से भी न मेल लगता था और न ही नर्स।

"वह सब बाद में देखेंगे,,,, काटो तो सरी,,,!" बड़े डॉक्टर बोले। #काटो शब्द सुनकर  दो पियोन पास सरक आये और एक पेटी से धड़ाधड़ छोटी बड़ी कई छुरियां, चिमटे वगैरह निकाल कर मरीज के आस पास सजाने लगे।
उधर ऑपरेशन टेबल पर लेटा मरीज आतंक से हिलने लगा। वह वध होती गाय की तरह कातर नजरों से इधर उधर देखने लगा।
पर दोनों सर्जन थे कि अभी भी भुनभुना रहे थे।

"सर,,, ये नहीं काटें तो हम काट दें,,,, !" चपरासी बोला।
"वैसे भी वर्मा सर के समय हम ही काटते थे। ये लोग तो केवल बंटवारे का हिस्सा भर लेकर चलते बनते थे।"
चपरासी ने सीधे सीधे दोनों #सर्जन के अहम को चोट पहुंचाई थी। नतीजा,,,, दोनों सर्जन कैंची लिए उसके पीछे भागे।
डरा हुआ पियोंन टेबल के चक्कर काटने लगा।

फीमेल बड़े डॉक्टर के पीछे छिप गई।
मेल अब भी मरीज के पैर दबाकर एकदम #अनुशासित खड़ा था।

चार पांच बोतलें फूटीं। कुछ नलियां और शीशियां इधर उधर बिखर गईं थीं।

अचानक मरीज उछलकर बाहर की ओर भागा।
बड़े डॉक्टर चिल्लाए,,,,
"अरे बॉडी जा रही है,,, पकड़ो उसे,,,,सत्यानाश हो,,,!"
फीमेल नर्स और दूसरा पियोन  उधर लपके ,,, पर तब तक देर हो चुकी थी।
और,,,,
तभी लड़ाई रुक गई।
"ये साला,,,, एनैस्थीजिया भी नकली आने लगा,,,, हद है,,,, हरामजादों और कितना खाओगे,,,,,, हर चीज नकली।"
बड़े डॉक्टर चिल्लाते जा रहे थे।
तभी एक और दुर्घटना हो गई,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,,,,,  ,,,,,
आधे घण्टे बाद,
दोनों सर्जन, नर्सेज और पियोन, अपने अपने लंचबॉक्स में खूब सारे #अंग भर कर घर जाने लगे।
अथॉरिटी को सूचना दे दी गई कि 342 नम्बर वाला पेशेंट बड़े डॉक्टर को मार कर फरार हो गया।
#kss

पाखण्ड

कहानी एक
त"तुम अपने आप को भगवान के चरणों में समर्पित कर दो,,,!"
और वह समर्पण के लिए पास सरक आई।
"ध्यान रहे,,,, समर्पण में प्रश्न नहीं होता,,,, कोई शंका है तो गुफा से बाहर छोड़ आओ,,,!"
उसने शंका और प्रश्न बाहर छोड़ दिए।
"यह शरीर तुम नहीं हो,,,, तुम नित्य शुद्ध चैतन्य आत्मा हो,,,, आत्मा मलिन नहीं होती। इस मल मूत्र से भरे शरीर की चिंता न करो,,,,!"

वह शरीर भूलती जा रही थी।
अंधेरे का तिलिस्म बढ़ता जा रहा था।
फिर भी उसने आंखें बंद कर रखी थी।

"अब जो तुमको स्पर्श होगा न वह आद्यात्मिक मिलन की प्रथम सीढ़ी है। यह केवल सूक्ष्म शरीर को स्थूल शरीर से अलग करने का अनुष्ठान मात्र है।,,,,, डरना नहीं,,,, बिल्कुल मत घबराना। इसके बाद तुम्हारा ब्रह्मरन्ध्र खुल जायेगा।,,,, तुम समाधि अवस्था में पहुंचने वाली हो,,,, तुम्हारा परलोक सुधर जाएगा,,,,,"
ओके,,,,, अंधेरा,,,,,, चीख,,,,,, समाप्त।

कहानी 2
"जब तक तुम अपने दिमाग को खोलोगी नहीं, दकियानूसी चीजें तुम्हें परेशान करती रहेंगी। मैं नहीं चाहता कि कोई  नैरो माइंड लड़की अपने अधकचरे नॉलेज से मार्क्स को बदनाम करे,,,,"

और वह खुलने लगी।उसने पैग खत्म किया और सर का मुँह देखने लगी।
"जब तक इस खूबसूरत बदन को पोगापंथी चीथड़ों में लपेट के रहोगी,,, समाजवाद की abcd भी नहीं समझोगी।"
उसके वस्त्र अब अस्तव्यस्त होने लगे।

"जब तक सतीत्व,,,, वर्जिनिटी,,,, जैसी थोथी बातों में उलझी रहोगी,,,, तुम्हारे रिसर्च में पैनापन नहीं आ पाएगा। देखो,,,, मैं हरेक को कहता हूँ,,,, चीजों को खुलकर करो,,,,, एन्जॉय इट,,,!"

उसने उठकर लाइट बन्द कर दी।

"अब जो होगा वह बिल्कुल नैचुरल घटना है,,,, डरने की कोई बात नहीं,  इसके बाद तुम एन्जॉय करने वाली सच्ची कामरेड बन जाओगी।  यह तुम्हारे भावी प्रोफेसर बनने का मार्ग खोल देगा,,,,, take इट इजी,,,,!"
ओके,,,, अंधेरा,,,, चीख,,,,,,समाप्त।

सर्वोत्तम रचनात्मक कार्य

व्यक्ति निर्माण ही सर्वोत्तम रचनात्मक कार्य है।
स्वामी विवेकानंद अपने मनपसंद 30 व्यक्तियों के लिए तरसते हुए इस संसार से चले गए।
वीर #सावरकर भी अपने अंतिम दिनों में इस सत्य को पहचान कर जूझते रहे।
योग्य व्यक्तियों के अभाव से त्रस्त रहा है सारा भारतीय #इतिहास।
आज वही समस्या मोदी मंत्रिमंडल के पुनर्गठन पर सामने आई।
अपनी मान्यताओं, पूर्वाग्रहों, दुर्बलताओं से ऊपर उठे एकलक्षयी व्यक्तियों का नितांत अभाव है।
विगत 70 वर्ष का शैक्षिक सिस्टम भी योग्य जन देने में विफल रहा है।

आरएसएस की एक घण्टे की शाखाओं ने योग्य व्यक्तियों की कुछ आपूर्ति अवश्य की पर वह ऊंट के मुँह में जीरा है, 131 करोड़ वासियों के देश के लिए।

इसके अतिरिक्त जो भी व्यवस्थाएं थीं वे सब छिन्न भिन्न, हतप्रभ, पाखण्डी और स्वार्थी धूर्तों की रखैल बनीं, प्रतिक्षण इस देश के सामान्य जन को चिढ़ाती रहती है।

विश्वविद्यालय, और शिक्षण केंद्र अभी भी वामपंथियों के लल्ला लल्ली क्रीड़ा स्थल हैं, धार्मिक संस्थान बाबागिरी के अड्डे मात्र बन कर रह गए हैं, सामाजिक दबाव समूह #जातीय पूंगी बजाने की मजारें मात्र हैं, मीडिया नामक चौथा खम्भा मैकालेवादियों का रंडीखाना है, ब्यूरोक्रेसी में पालतू जमाई राजा जमे हैं, व्यापार जगत में गला काटकर धन उगाही सिस्टम बन गया है, ,,,, और पीछे कोलाहल है,,,, स्त्रैण रुदन मण्डली का जो करना कुछ नहीं चाहती, थके हारे गृहस्वामी के सामने कभी न समाप्त होने वाली शिकायतों का पुलिंदा पटक "हाय हाय" नामक उच्चाटन मात्र जानती है।
ऐसे घोर संकट में भी एक "जर्जर,बूढा, घायल" सिपाही अपने कुछ दुर्बल साथियों सहित मौन भाव से सांत्वना वचन कहता, एक एक अवयव की आहुति देता उसी दुर्भाग्य को उलाहना दे रहा है जो कभी विवेकानंद और सावरकर ने भी भुगता था!!
आग लगाने वालों ने अपने उपक्रम और तेज कर दिये हैं, रंडीखाने की ख़बरण्डियाँ हंसी उड़ा रही हैं, देश को धर्मशाला समझने वालों ने चादर तान ली है, पूंगी बजाते जायरीनों ने कव्वाली का स्वर ऊँचा कर दिया है, दूर शिखर पर बैठे गिद्ध इंतजार कर रहे हैं, ,,,, प्रश्न वहीं अटका है,,,, ,,,  "व्यक्ति कहाँ से आएंगे,,,?"
इतिहास जरूर कहेगा कि किसने क्या किया,,,?
#kss

रोहिंग्या मुसलमान

देश बड़ा या इस्लाम,,,,?
इसका उत्तर रोहिंग्या मुसलमानों को समझ आ गया होगा।
दुनिया के 40 इस्लामिक देशों के होते हुए भी #फुटबॉल बने ठोकरें खा रहे हैं।
जो मौलवी बार बार देश से बड़ा इस्लाम होने की डींगें हाँकते थे, और रसूल के बनाए एकमात्र मजहब से ऊपर कुछ नहीं का उद्घोष करते थे उन्हें भी समझ जाना चाहिए कि आगे क्या होने वाला है?
देश तुम्हारे घर जैसा होता है।
वह कोई पब्लिक पार्क या धर्मशाला नहीं।
#रोहिंग्या लोगों ने बर्मा को कभी अपना घर नहीं माना।
वे अरब साम्राज्य की खलीफाई के गुलाम सपनों में जीते रहे और मनमाने तरीके से #म्यांमार में उत्पात मचाने लगे।
बाप का माल समझ सुख सुविधाएं लूटते रहे।
शांतिप्रिय बौद्धों की संपत्ति, बेटियों, अन्न धन को भोगते रहे।
और खा पीकर उसी घर के सभी कक्षों को शौचालय, वैश्यालय, के रूप में उपयोग करके गन्दगी बिखेरते रहे।
शुरू शुरू में बौद्ध भी #बुद्ध के बताए मार्ग पर चलते, मुस्कुराते,,,,, शान्ति छांटी रटते रहे,,,, पर जब उन्हें अपना ही देश छिनते हुए लगा,,,,,! ,,,,,, बुद्ध को किनारे रख पुष्यमित्र शुंग को पकड़ लिया।

रोहिंज्ञों!!
तुमने सोने की मुर्गी को #हलाल करना चाहा,,,, उस मुर्गी ने ड्रैगन का रूप धर तुम्हें ही भगा दिया।
स्वीकार करो कि देश बड़ा है और मजहब उसके बाद,,,,,,!
#kss

ब्रह्मांड भाग 2

..............ब्रह्माण्ड: अंत से आरम्भ तक............
●THE BEGINNING OF EVERYTHING●

लगभग 13.7 अरब वर्ष पूर्व:
ब्रह्माण्ड में समय और काल की अवधारणा शून्य थी
भौतिकी के नियम अस्तित्व में नहीं थे
दृश्य ब्रह्माण्ड का समस्त पदार्थ अपने फंडामेंटल स्वरुप (क्वार्क-ग्लुआन प्लाज़्मा) के रूप में एक पिन पॉइंट के आकार के द्रव्यमान (10^-26 मीटर) में सिमटा हुआ था
और एक विस्फोट हुआ
ब्रह्माण्ड फैलने लगा
विस्फोट के 0.00000000000000000000000000000000000000000001 (10^-43) सेकंड के बाद
ये ब्रह्माण्ड एक क्षण के खरबवे हिस्से में अरबो खरबो गुणा फ़ैल चुका था
क्वार्क ग्लुआन प्लाज़्मा ने मिल कर प्रोटान न्युट्रान बनाने शुरू किये...
अगले कुछ लाख वर्ष में ब्रह्माण्ड धीरे धीरे इतना शीतल होता गया की ब्रह्माण्ड का "सुपर फ़ोर्स फील्ड" इलेक्ट्रो फ़ोर्स और स्ट्रांग तथा वीक फ़ोर्स में विभक्त होता गया
धीरे धीरे प्रोटान न्युट्रान ने इधर उधर मंडराते लेप्टान कणो (इलेक्ट्रोन) को कैप्चर कर के परमाणुओ का निर्माण किया
फिर हाइड्रोजन बनी
फिर हीलियम
सितारे...सौरमंडल...पृथ्वी...प्रथम कोशिका
All the way through evolution.... "US"
Humans!!!
.
बिगबैंग थ्योरी को मैं फिर से कभी एक्सप्लेन करूँगा.. जो मित्र फंडामेंटल पार्टिकल्स के व्यवहार की सबसे सफल व्याख्या करने वाले "स्टैण्डर्ड मॉडल" को समझते है
.......उनके लिए इस "एटॉमिक एवोल्युशन"को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं
और देखा जाए तो पिछली एक शताब्दी में हमें ऐसे अनगिनत सबूत मिले है जो "बिगबैंग थ्योरी" को सही साबित करते है
"बिगबैंग थ्योरी निर्विवाद रूप से सत्य है"
.
लेकिन...
आज मेरा सवाल ये है कि
चूँकि हमारे द्वारा नापी जा सकने वाली समय की सबसे छोटी इकाई (10^-43 सेकंड) है...
इस कारण...
आज से 13.7 अरब वर्ष पूर्व शुरू हुए ब्रह्माण्ड के निर्माण के क्षण के 10^-43 सेकंड के बाद हमें मालुम है कि क्या हुआ था
लेकिन...उस विस्फोट से पहले क्या था?
विस्फोट हुआ ही क्यों?
विस्फोट के आस पास क्या था?
मै जानता हूँ कि...ये सवाल अक्सर आपको परेशान करते होंगे
.
हम समय के चक्र में पीछे जा कर उस विस्फोट को नहीं देख सकते
चूँकि हमें कुछ भी देखने के लिए "फोटान" की जरूरत होती है
और चूँकि बिगबैंग के 380000 साल तक पदार्थ इतनी dense अवस्था में था की फोटान का उस "उच्चतम घनत्व की बाल"को चीर कर निकल पाना संभव नहीं था
.
अब चूँकि मैंने "Telescopes" नामक टॉपिक में कहा था कि हम टेलिस्कोप की सहायता से भूतकाल में झाँक सकते है
So all we have... is a faint picture of microwave radiation 380000 years afterwards "Big Bang".... and few wild guesses!!!
(ब्रह्माण्ड निर्माण के 380000 साल बाद कैसा दिखता था... जानने के लिए प्रथम कमेंट में फ़ोटो देखे)
.
तो सवाल ये है कि
"ब्रह्माण्ड के आरंभ से पहले...क्या था?"
और जवाब है
कि...
"सही जवाब के लिए शायद हमें ब्रह्माण्ड की शुरुआत नहीं...बल्कि अंत को जानने की जरुरत है"
क्योंकि ब्रह्माण्ड का अंत ही हमें समझा सकता है
"The Beginning Of Universe"

(आगे के कंटेंट बहुत जटिल होने के कारण मैं अत्यंत सरल भाषा में लिखने की कोशिश करूँगा..किसी भी जिज्ञासा के निवारण के लिए कमेंट बॉक्स में संपर्क करें)
और जिन लोगो ने इस लेख श्रृंखला का प्रथम भाग नहीं पढ़ा है...वे timeline पर जा कर "The End Of Everything" पढ़ लें
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हम और आप... तथा ब्रह्माण्ड की हर चीज फंडामेंटल लेवल पर ऊर्जा के तंतुओ (स्ट्रिंग्स) के वाइब्रेशन मात्र है
ऊर्जा का एक ख़ास गुण होता है
कि... ये उच्च स्थिति से निम्न स्थिति की ओर बहती है
अर्थात.. अगर एक कमरे में अगर आपने आइस क्रीम का एक कप रखा है
तो...आइस क्रीम पिघल के रूप टेम्परेचर पर आ ही जायेगी
हवा में छोड़े गए गुब्बारे पिचक के जमीन पर आ ही गिरेंगे
सितारे अपना ईंधन जला के एक ना एक दिन ठन्डे हो ही जायेगे
.
ऊर्जा के वितरण को "एन्ट्रापी"में नापते हैं
और ऊर्जा के समान वितरण साधने की इस प्रक्रिया में ब्रह्माण्ड एक ना एक दिन "परम संतुलन" अर्थात मैक्सिमम एन्ट्रापी की स्थिति प्राप्त कर लेगा
अर्थात
हर जगह ऊर्जा का समान लेवल होगा
हर जगह एक समान तापमान होगा
और तब कुछ भी होना संभव नहीं होगा
क्योंकि.. कुछ होने के लिए असंतुलन आवश्यक है...
ऊर्जा का आदान प्रदान आवश्यक है
"लहरो का लहरो से टकराना आवश्यक है"
.
इस परम संतुलन की स्थिति में
ब्रहमाण्ड एक लहरो से विहीन सागर की शांत सतह के समान होगा
Universe Will Be Dead !!!
.
ना दिन होगा
........ना रात
ना सत होगा
.....ना असत
ना मृत्यु होगी
...ना अमरता
.
पर तभी...
.
इस लहरो से विहीन ब्रह्माण्ड में
.
..................एक लहर उठती है !!!!!
.
......अर्थात.....
"इच्छा" होती है
.
जिसे हमारे पूर्वजो ने अपनी सीमित शब्दावलीे में "प्रथम विक्षोभ" अथवा "इच्छा" की संज्ञा दी
.
तो ये ऊर्जा की लहर उठी कहा से?
Well...Fortunately
Science has an answer!!!
.
ये इच्छा और कुछ नहीं
"Quantum Fluctuations" कहलाती है
अर्थात
पूर्ण रूप से निर्वात/Vacuum में भी "हाईजेनबर्ग के अनिश्चिन्ता सिद्धांत" के कारण ऊर्जा की लहरे उठती है और गायब होती है
जिन्हें "वर्चुअल पार्टिकल्स" कहते है
(ये प्रायोगिक सत्य है)
दूसरे शब्दों में
"शून्य" अर्थात ऊर्जा का पूर्ण रूपेण लोप हो जाना हमारे ब्रह्माण्ड में संभव नहीं है
और वो शायद इसलिए क्योंकि...
.
"हम और हमारा ब्रह्माण्ड शुन्य आयाम से बहुत दूर है"

शुन्य आयाम... जहा से ये ब्रह्माण्ड संचलित है !!!!
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अब चलते है...सर्न में मौजूद "लार्ज हेड्रान कोलाइडर" की तरफ
वही...जहा पिछले दिनों "ईश्वरीय कण" हिग्स बोसान की खोज चल रही थी
और गुड न्यूज़ ये है कि
"हिग्स बोसान" जो कणो को उनका द्रव्यमान प्रदान करता है...मिल गया है
और बुरी खबर है..
"हिग्स बोसान का खुद का द्रव्यमान"
जो साफ़ साफ़ कहता है कि...
"हम जिस ब्रह्माण्ड के टुकड़े में रहते है...वो वास्तविक शुन्य आयाम नहीं"
बल्कि... क्षद्म आयाम है
अर्थात...
"False Vacuum"
.
इसे आप इस तरह समझ सकते है कि....
मान लीजिये
आप अपने कमरे में फर्श से थोड़ी ऊंचाई पर एक कपडे के चारो कोनो को दीवार में कील की सहायता से बाँध दीजिये
अब कमरे का फर्श तो हुआ "शुन्य आयाम"
अर्थात
.
Zero Energy Ground State !!!
.
और कपडे के ऊपर हमारा ब्रह्माण्ड तैर रहा है
और
ये ब्रह्माण्ड "स्टेबल" नहीं है
कभी ना कभी.... कील उखड के वो ब्रह्माण्ड नीचे जरूर गिरेगा
जिसे "False Vacuum Decay" कहते है
.
अब चूंकि थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी के कारण हम जानते है कि...
कमरे में मौजूद उस कपडे के ऊपर "जितने द्रव्यमान का पिंड होगा"
वो ब्र्रह्मांड के फैब्रिक को उतना ही bent करेगा
और अक्सर कपडे का ये झुकाव
"निचले आयाम में मौजूद ब्रह्माण्ड को touch कर जाता है"
और
निचले ऊर्जा स्तर के ब्रह्माण्ड से.... हमारे ब्रह्माण्ड में "lower energy" के बुलबुले आते रहते है
जो कि हमारे ब्रह्माण्ड के उच्च ऊर्जा स्तर होने के कारण कोई असर नहीं दिखा पाते
पर
अब वापस आते हैं....
मैक्सिमम एन्ट्रापी की अवस्था में
जब ब्रह्माण्ड लहर विहीन...शांत और "lower energy state" में है
तो...
एक छोटी से लहर...
"One small fluctuation.... can do A LOT"
.
ब्रह्माण्ड की ऊर्जा का स्तर नगण्य होने के कारण..
उस लहर से हमारे ब्रह्माण्ड का फैब्रिक नीचे झुकेगा
और... समानांतर ब्रह्माण्ड से...
"एक "निम्न ऊर्जा का हिग्स वैक्यूम" का बुलबुला निकल कर हमारे ब्रह्माण्ड से आएगा
और
हमारे ब्रह्माण्ड से...निकटवर्ती ब्रह्माण्ड में बीच एक "लिंग नुमा सुरंग" बन जायेगी
(इसी लिए...सीमित शब्दावली के कारण हमारे पूर्वजो द्वारा लिखित ब्रह्माण्ड विज्ञान में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति "लिंग नुमा आकृति" से मिलती है)
.
हमारे ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तब निम्न होने के कारण.... प्रतिरोध के अभाव में....
बाजू वाले ब्रह्माण्ड से आया वो बुलबुला प्रकाश गति से हर तरफ फैलता चला जाएगा
और....
हमारा ब्रह्माण्ड उस सुरंग में धंसता हुआ.... नीचे मौजूद ब्रह्माण्ड के आयाम में जा कर.... एक जगह पर इकट्ठा होना शुरू हो जाएगा
और अति उच्च घनत्व पर ग्रेविटी प्रति कर्षण (Repulsion) उत्पन्न करती है
इसलिए..
एक सीमा के पश्चात...
विस्फोट होगा !!!!
.
And That's Called BIG BANG !!!
.
(Check a photo drawn by me in comments to understand process)
.
और निचले आयाम में निम्न ऊर्जास्तर पर..
फिजिक्स के नए नियमो के साथ...
"ब्रह्माण्ड खुद को दोहराता है"
नयी कहानियो की नयी इबारते लिखी जाती है
जिनमे से किसी कहानी का हिस्सा शायद...
......... हम है !!!
.
Remember The Black Holes From My Last Topic???
मेरे लास्ट टॉपिक में मेंशन ब्रह्माण्ड के अंत में बचेे "ब्लैक होल्स" के द्वारा भी ये प्रक्रिया संपन्न हो सकती है
लास्ट मोमेंट...जब वे ब्लैक होल अपनी आयु पूरी कर रेडिएट होने के अंतिम चरण में होते है
उस वक़्त.....
ब्रह्माण्ड के "फैब्रिक" पर उनके द्वारा उत्पन्न झोल अथवा "curve" सबसे ज्यादा होता है
तो संभव है...
कि अंतिम क्षणों में वे ब्लैक होल्स उस कमरे में मौजूद कपडे पर इतना दबाब डाल दें
कि...कपड़ा कील सहित नीचे आ गिरे....
और ऊपर लिखी प्रक्रिया दोहराई जाए
But...
However... Through Black holes or Fluctuation
ऐसा होगा जरूर...
और नए ब्रह्माण्ड में कहानी उसी पन्ने पर ख़त्म होगी
जो हमारे लिए वर्तमान में..
हमारी कहानी का पहला पन्ना है
.
और ये कहानी..
युगों युगों से अनवरत चलती आ रही है
हमारा ब्रह्माण्ड
हमारा "बबल यूनिवर्स"...इस कहानी का एक अकेला पन्ना है
.
उस शुन्य आयाम से...
हर क्षण...
ना जाने कितने ब्रह्माण्ड रुपी बुलबुले जन्म लेते है
और
ना जाने कितने ब्रह्मांड हर पल एक नयी कहानी का साक्षात्कार करते है !!!
.
So.... That's All It Is !!!
"Programming Of Nature"
ब्रह्माण्ड के अंत और आरम्भ की प्रक्रिया को समझ लीजिये
जल्द आपको "शुन्य आयाम" जहा से ये प्रक्रिया संचलित है
वहा भी ले चलेगे
:-)
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So Coming To The End
इस सब में हिग्स बोसान कहा है?
Well... हमारा ब्रह्माण्ड हिग्स फील्ड से निर्मित है
और हिग्स बोसाेन की "प्रॉपर्टीज" में बदलाव के कारण ही ब्रह्माण्ड "वैक्यूम फेज ट्रांजीशन" की प्रक्रिया से गुजर कर... एक नयी शुरुआत करता है
.
तो इसे "ईश्वरीय कण" कहना उचित है??
शायद नहीं...

Indeed
Its A Match... Spark... Fuse
Which Caused The Big Bang
.
IT IS THE BANG...
..... IN BIG BANG !!!

.................Call It..................
TRIGGER OF BIG BANG !!!
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........And As Always
Thanks For Reading !!!
(विजय सिंह झकझकिया)