व्यक्ति निर्माण ही सर्वोत्तम रचनात्मक कार्य है।
स्वामी विवेकानंद अपने मनपसंद 30 व्यक्तियों के लिए तरसते हुए इस संसार से चले गए।
वीर #सावरकर भी अपने अंतिम दिनों में इस सत्य को पहचान कर जूझते रहे।
योग्य व्यक्तियों के अभाव से त्रस्त रहा है सारा भारतीय #इतिहास।
आज वही समस्या मोदी मंत्रिमंडल के पुनर्गठन पर सामने आई।
अपनी मान्यताओं, पूर्वाग्रहों, दुर्बलताओं से ऊपर उठे एकलक्षयी व्यक्तियों का नितांत अभाव है।
विगत 70 वर्ष का शैक्षिक सिस्टम भी योग्य जन देने में विफल रहा है।
आरएसएस की एक घण्टे की शाखाओं ने योग्य व्यक्तियों की कुछ आपूर्ति अवश्य की पर वह ऊंट के मुँह में जीरा है, 131 करोड़ वासियों के देश के लिए।
इसके अतिरिक्त जो भी व्यवस्थाएं थीं वे सब छिन्न भिन्न, हतप्रभ, पाखण्डी और स्वार्थी धूर्तों की रखैल बनीं, प्रतिक्षण इस देश के सामान्य जन को चिढ़ाती रहती है।
विश्वविद्यालय, और शिक्षण केंद्र अभी भी वामपंथियों के लल्ला लल्ली क्रीड़ा स्थल हैं, धार्मिक संस्थान बाबागिरी के अड्डे मात्र बन कर रह गए हैं, सामाजिक दबाव समूह #जातीय पूंगी बजाने की मजारें मात्र हैं, मीडिया नामक चौथा खम्भा मैकालेवादियों का रंडीखाना है, ब्यूरोक्रेसी में पालतू जमाई राजा जमे हैं, व्यापार जगत में गला काटकर धन उगाही सिस्टम बन गया है, ,,,, और पीछे कोलाहल है,,,, स्त्रैण रुदन मण्डली का जो करना कुछ नहीं चाहती, थके हारे गृहस्वामी के सामने कभी न समाप्त होने वाली शिकायतों का पुलिंदा पटक "हाय हाय" नामक उच्चाटन मात्र जानती है।
ऐसे घोर संकट में भी एक "जर्जर,बूढा, घायल" सिपाही अपने कुछ दुर्बल साथियों सहित मौन भाव से सांत्वना वचन कहता, एक एक अवयव की आहुति देता उसी दुर्भाग्य को उलाहना दे रहा है जो कभी विवेकानंद और सावरकर ने भी भुगता था!!
आग लगाने वालों ने अपने उपक्रम और तेज कर दिये हैं, रंडीखाने की ख़बरण्डियाँ हंसी उड़ा रही हैं, देश को धर्मशाला समझने वालों ने चादर तान ली है, पूंगी बजाते जायरीनों ने कव्वाली का स्वर ऊँचा कर दिया है, दूर शिखर पर बैठे गिद्ध इंतजार कर रहे हैं, ,,,, प्रश्न वहीं अटका है,,,, ,,, "व्यक्ति कहाँ से आएंगे,,,?"
इतिहास जरूर कहेगा कि किसने क्या किया,,,?
#kss
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