स्वामी विवेकानंद जी के पास कुछ लोग आए और बताया "हम गायों की सेवा करते हैं, चन्दा इकट्ठा कर रहे हैं, आप भी सहयोग कीजिए और हमारे साथ चलिए!"
स्वामीजी क्षण भर मौन रहे, फिर बोले
"मैं खुद धन की तंगी से जूझ रहा हूँ, धन के अभाव में मुझे मेरी बहुत सारी योजनाएं स्थगित करनी पड़ी। मेरा मानना है कि गाय से पहले हिन्दुधर्म बचाना चाहिए, और मेरा आपसे भी यही आग्रह है कि कुछ करना ही चाहते हो तो हिन्दू धर्म के लिए करो!"
वे लोग चुपचाप उठकर चले गए।
बाद में स्वामीजी अपने शिष्य शरतचन्द्र से बोले (ये वही शरतचंद्र हैं जिन्होंने देवदास लिखा और इस घटना को भी उन्होंने अपनी पुस्तक "शिष्य सम्वाद" में लिखा।)
"ये भारत का महा पुरातन रोग है कि योग्य स्थान पर पहुंचते ही वह स्वयं का एक नया उपक्रम शुरू कर देता है जो कालांतर में हिन्दुधर्म के लिए एक और समस्या बनकर उभरता है। शोक का विषय है कि पूर्वी बंग में लोग अन्न के अभाव में भूख से मर रहे हैं और इन्हें पशु बचाने की चिंता है,,,,!"
फिर वे कुछ उद्विग्न हो कर बोले। "मेरे पास धन नहीं है, लेकिन यदि होता भी तो इनको कदापि न देता। मैंने हिंदुओं के उस रोग को पहचान लिया है, मेरा सारा सामर्थ्य और धन उस रोग के उन्मूलन के लिए लगाता।"
पुनःश्च,,,,
आज बीजेपी और नमो को सत्ता मिल चुकी है, वे नई नई बीमारियां पाल रहे हैं!
वे भूलते जा रहे हैं ,,,,,कि जब #वे सत्ता से बहुत दूर विवशता के आंसू बहाते थे तब क्या सोचते थे?
तुम स्वामीजी की आशंका को सच करने वाले दुर्भाग्य वाहक बनने जा रहे हो।
विगत ढाई हजार वर्षों से हम बार बार वही गलती करते जा रहे हैं जो हमारी दुर्भाग्य रेखा को और लम्बी खींचती है!!
भिक्षुक जब राजा बनता है तब भी रसीद बुकें लेकर चन्दा बटोरने निकल पड़ता है!
इतिहास का ताश वाला खेल,,,, एक पत्ते पर जाकर अटक जाता है।
वह कभी कभी जब खुलता है तो पूरी बाजी पलट कर रख देता है।
और जरूरी नहीं कि वह खुले।
साबित करो कि #तुम #वही हो!!!
#तत्त्वमसि,,,,,!
#kss
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