माननीया,,,,
वसुंधरा राजे जी,(मु म, राजस्थान) !!
नमस्ते!
मैं एक नौ वर्ष का #बालक हूँ, और आज आपको यह पत्र लिख रहा हूँ।
मैं एक सरकारी विद्यालय में चौथी कक्षा में पढ़ता हूँ और छोटे से गाँव में रहता हूँ। आपकी सरकार द्वारा पढ़ाई किताबों में एक जगह लिखा है कि छोटे बच्चों को दूध पीना चाहिए, इसलिए मेरे और दीदी के लिए पिताजी एक गाय लेकर आए! मैंने आज तक चाय को हाथ नहीं लगाया और रोज दूध पीता हूँ।
अभी हमारी गायों की संख्या पाँच हो गई है और वे भादो के महीने में भी घर के बाड़े में दिन भर बन्द रहती है। कारण,,,, चारों ओर की सरकारी भूमि और गोचर पर लोगों ने तारबन्दी कर अवैध खेती कर रखी है।
महोदया!!
ये अवैध खेती वाले रात को तारबन्दी में करंट छोड़ते हैं, दिन को लट्ठ लेकर गायों को भगाते हैं, ट्रैक्टर पीछे दौड़ाते हैं, कई पशुओं को पकड़ कर धातु की तार से मुँह बाँध देते हैं।इससे प्रतिदिन कई गाय, बैल, बछड़े, ऊंट, उंटनियाँ, आदि मर रहे हैं, अपँग हो रहे हैं और सड़कों पर आकर जम जाते हैं।
महोदया,,,!!
स्थिति यह है कि उल्टे ये लोग आकर हमें धमकाते हैं और कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं।
अब मेरे पिताजी इन सब गायों को बेचना चाहते हैं किंतु कोई भी लेने को तैयार नहीं। गौशाला वालों ने भी मना कर दिया, हमारे पुष्तैनी पण्डित जी, रिश्तेदार और निकट सम्बन्धियों को फ्री में देनी चाही पर सबने मना कर दिया!!
पहले हमारी गायों में एक ग्वाला होता था जो कुछ चराई के बदले गायें चरा लाता था, किन्तु इस वर्ष ग्वाला कोई तैयार ही नहीं हो रहा है, क्योंकि जब खुली जमीन ही नहीं है तो वह कहाँ लेकर जाए?
आज जिनके पास गाय नहीं, वे बड़े खुश हैं और हमारी मजाक भी उड़ाते हैं, हमारी दुर्गति देखकर!!
महोदया!!
आप धार्मिक हैं और मंदिरों में जाती हैं, ऐसा हमने सुना है। ये देवी देवता आपकी सुनते भी होंगे।
महोदया,,,!
उन देवताओं से कहना कि हमारी गायों को अपने पास ले जाएं क्योंकि यहाँ अब उनके रहने, चरने, फिरने की जगह ही नहीं बची। हम बिना दूध के रह लेंगे। हम उस पाठ को पढेंगे ही नहीं, जिसमें दूध पीने का लिखा है। हम अपनी टीचर को भी मना लेंगे कि वह हमें #गाय पर लेख रटाना बन्द करे। मैं अपने पिताजी की अलमारी में रखी #गौदान पुस्तक को भी चुपके से जला दूँगा।
महोदया,,,!
मैंने पढ़ा है कि #राजस्थान का क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है। यहाँ भी जब भूमि की यह स्थिति है तो दूसरी जगह तो और भी बुरी स्थिति होगी, और वहाँ जब गायें हैं ही नहीं तो ये,,,,,, शहर में दूध कहाँ से आता है ,,,?,,,,,यह मेरे लिए अभी भी रहस्य है ।
मैंने सुना है कि गायों के लिए लड़ते हुए कई लोगों ने अपना बलिदान दे दिया।
मैं 9 साल का बालक अभी तो नहीं लड़ सकता, पर जब देखता हूँ कि बड़े भी नहीं लड़ रहे, तो समझ नहीं पाता कि उनकी क्या मजबूरी है?
मेरा वोट भी नहीं है। मेरी गायें भी वोट नहीं दे सकती।
आप तक बात पहुंचाने का यह आइडिया मेरा ही है और पिताजी ने वही लिखा है जो मैं उन्हें कह रहा हूँ।
महोदया,,,!
हो सके तो कुछ कीजिए। अवसर सबको नहीं मिलता!!
आपका
#हर्षवर्धन
शुक्रवार, 8 सितंबर 2017
पत्र
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें