शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

सेक्युलर भक्ति

सेक्युलर भक्ति , #भक्ति न भवति।
उपासना पध्दतियों का घालमेल सबसे बड़ा पाखण्ड है।
यह एकं सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति ,,,, वेदवाक्य का सबसे बड़ा मजाक है। यह उसी श्रृंखला का एक षड्यंत्र है,,, जिसमें भारतीय मूल्यों की चाशनी में जहर घोल कर भारत को पिलाया।
गांधी बाबा ने ईश्वर अल्ला तेरो नाम,,,,, गाया।
वर्षों तक सर्वोदयी लोग "सर्वधर्म प्रार्थना" का राग गाते थे,,, गाते रहे। #गांधी गान का परिणाम यह हुआ कि लगभग सभी भारतीय मन्दिरों में, भरी भीड़ के सामने यीशु, श्रीकृष्ण, मोहम्मद, ईश्वर, अल्ला, देवी आदि को #एक बताने के नारे लगाए जाते रहे हैं।
कबीर और गाँधी लाख एका रटते रहें,,,, पर क्या वे अपने इस नारे को किसी मस्जिद या चर्च में लगवा सके?
क्या पाकिस्तान में कोई एक भी जिंदा सर्वोदयी उस एका गान को गाता है? गाना तो क्या,,, कोई सहमत भी है?
मुस्लिम गुंडागर्दी से त्रस्त गाँधी और कबीर ने सेक्युलर भक्ति की खोज की जिसे मुस्लिम ईसाइयों ने ठुकरा दिया पर हिन्दू तीर्थ अवश्य प्रदूषित हो गए!!
जैसी कि परम्परा रही है, सभी दुर्भाग्य के #भूत हिंदुओं के ही पीछे लगाए जाते हैं।
उपासना नितांत व्यक्तिगत विषय है, इसमें सामुहिक घालमेल राजनीति और षडयंत्र वश किया जाता है। जो कि नहीं होना चाहिए।
वह सबसे बड़ा ढोंगी है जो सभी मजहबों को समान बताता है।
वे सबसे बड़े पाखण्डी हैं जो ईश्वर अल्ला एक होने और भजने की बात करते हैं।
जब कोई ऐसा कह रहा है, उसका यह अर्थ है कि वह मात्र हिंदुओं पर चोट करने का एक नया उपाय मात्र कर रहा है।
कबीर के समय युग की मांग थी, हालांकि बाद में स्वयं कबीर ने इसके रहस्य को खोला जिसे जानने की जरूरत है। गाँधी तो नाम ही मजबूरी का है।
वर्तमान मजबूत हिंदुत्व की ऐसी कोई मजबूरी नहीं।
सेक्युलर भक्ति, भक्ति नहीं जाल है, तुम्हें #फांसने का।
#kss

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