आखिर कोई व्यक्ति यह सब क्यों करता है?
मनुष्यों के क्रियाकलापों का कारण क्या है?
वे कौनसी प्रेरणाएं हैं जो मानव को विभिन्न व्यवहार करते हुए सक्रिय रहने को मजबूर करती है?
भूख, प्यास और पेट भरने से इतर भी, मानव के ऐसे अनेक व्यवहार हैं जिनकी प्रेरणाएं समझ से परे हैं।
जैसे किसी गरीब की सहायता,,,,
या नवरात्रि में व्रत रखकर भूखा रहना,,,,,
अथवा कोई किसी राह चलते को मार देता है,,,?
पश्चिम के एक दार्शनिक हुए,,,, #कार्ल_मार्क्स।
मार्क्स के अनुसार सभी व्यवहार धन केंद्रित ही हैं। धन को केंद्र में रखकर प्रत्येक घटना की व्याख्या सम्भव है।
वे मानव व्यवहार की समस्त अभिप्रेरणाओं के मूल में अर्थ को ही देखते हैं। उनका चिंतन मार्क्सवाद कहलाया।
उनके अनुसार बिना अर्थ प्रयोजन के कोई मानव कुछ भी नहीं कर सकता। वास्तव में धर्म कर्म वगैरह कुछ नहीं है, पुरोहितों के धन कमाने के टोटके भर हैं। दुनिया में सारे रिश्ते, नाते, व्यवहार, खुले में या परोक्ष रूप में, धन केंद्रित ही है।
एक दूसरे दार्शनिक हुए,,,, फ्रायड। ये मनोवैज्ञानिक थे। इन्होंने #काम की व्याख्या की। इनके अनुसार समस्त व्यवहार का आधार सेक्स है। बिना कामवासना के व्यवहार की व्याख्या सम्भव ही नहीं। उनके अनुसार संसार की सभी प्रेरणाओं के मूल में काम ही है।
हर घटना को सैक्स केंद्रित चिंतन से समझा जा सकता है।
एक तीसरे हुए, युंग। ये भी जर्मन थे। इनका दर्शन फ्रायड का प्रतिक्रिया में था, उनके अनुसार व्यक्ति अपनी सामाजिक स्वीकृति चाहता है। वह क्रमशः अपनी पहचान बनाना चाहता है। उसे अपनी उपस्थिति जतानी होती है। मानव व्यवहार की विभिन्न प्रेरणाओं की व्यख्या का आधार आत्म स्वीकृति है, या इसे यूँ कहें कि वह समाज मे अपनी पहचान बनाना चाहता है।
इस प्रकार अभिप्रेरणाओं के तीन पश्चिमी सिद्धांत हैं जो अलग अलग लोगों ने अलग अलग समय पर प्रचलित हुए।
1, मार्क्स का अर्थवाद
2,फ्रायड का कामवासना वाद,
3, युंग का यशप्राप्ति की इच्छा वाद।
और आपको आश्चर्य होगा कि ये तीनों सिद्धांत भारतीय दर्शनों में उससे सैकड़ों वर्ष् पूर्व कहे जा चुके हैं।
वेदांत दर्शन में मानव व्यवहार की प्रेरणाओं को इस प्रकार से बताया गया है।
1,वित्तैषणा
2,पुत्रैषणा
3,लोकेषणा
क्रमशः,,,, धन, सेक्स और यश से सम्बद्ध ही हैं।
और यह सिद्धांत पूर्ण
भी लगता है।
इतना ही नहीं, भारतीय दर्शन में इन तीनों से ही ऊपर उठकर, इससे भी आगे जाने की बात कही है।
वास्तव में, योग, संन्यास, वैराग्य, मुमुक्षुत्व, इन सबकी अवस्थिति इन तीन एषणाओं से बहुत आगे की यात्रा का वृतांत है।
आप ही तय कीजिए कि परिपूर्णता कहाँ है???
#kss
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