गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

वृद्ध मुंशी का उपदेश

#वृद्धमुंशी ने #बंशीधर को इस तरह दुनियादारी के उपदेश का दूसरा संस्करण सुनाया।
"हवा बदल रही है, सख्ती बढ़ रही है, ऊपरी आय के झरनों को सुखाने की प्रबल चेष्टा हो रही है।
नये नये उपकरण और विभाग आए हैं जो पल भर में वेतन के अतिरिक्त  आए किसी भी धन को पल भर में पकड़ लेते हैं,,,,,
सुना है नए मंत्री तन्त्री काफी सख्त हैं और न खाते हैं न खाने देते हैं,,,, पर तुम इन बातों से तनिक भी विचलित नहीं होना!
उन सख्त से दिखने वाले लोगों के आजू बाजू के लोगों को ध्यान से देखना,,, वे वही मेरे और अलोपीदीन के जमाने के शोहदे हैं जो भरपेट खाते भी हैं और तरीके से #मैनेज किये जायें तो खाने भी देते हैं।
उन आजू बाजू वाले लोगों से विशेष स्नेह बनाए रखना, उनके भी तुम्हारी ही तरह #शौकीन बीवियां हैं, तेजी से जवान होती बेटियाँ हैं, मंहगी फीस देकर मटरगश्ती करने वाले लौंडे हैं, एक महीने  के वेतन से भी ढाई गुना तो उनका एकदिन का व्यय है।
#परन्तु,,,,,, " वृद्ध मुंशी कुछ चिंतित हुए।
"परन्तु,,,,क्या,,,?" बंशीधर चौकन्ना हुआ।
"परन्तु  इन सबमें तुझसे संघी दिखने वाले लोगों से सावधान रहना होगा।"
वे कभी रिश्वत आदि नहीं देते, न लेते हैं। उनको कथमपि यह पता नहीं चलना चाहिए कि तुम तनख्वाह से इतर एक पाई भी इधर उधर करते हो।
ऐसा करने पर तुम्हें उनके कई काम भी रोकने होंगे, फाइलें गायब करनी होगी, ऊपर से दबाव भी आएगा पर इस निराले झरने का रहस्य कभी न खुलने देना।
यह नये प्रकार की चुनौती है, उन #आरएसएस वालों के काम कभी न करना, वे नियम के बड़े पक्के होते हैं, और अपने यहाँ हरेक काम को रोकने का एक एक नियम पहले से ही मौजूद हैं, तुम्हें बस वह पढ़कर सुना भर देना है, वे स्वतः मार्ग से हट जाएंगे और फिर कभी सामने नहीं आएंगे।

ध्यान रखना,,,, ये आरएसएस वाले संघी, बोलने और दिखने में बड़े खतरनाक और सख्त दिखते हैं, बड़े बड़े मंत्री भी इनसे संकोच करते हैं तो अपनी तो कोई हैसियत ही नहीं है इनसे अड़ने की,,,, इन्हें अड़कर कभी वश में नहीं किया जा सकता,,, और न ही कभी इनसे ऊंची वाज में बात करना,,, पूरी तरह से भीगी बिल्ली बन, मुँह नीचा कर हर कैफियत चुपचाप सुनते रहना, भूल कर भी बात को बीच में मत काटना और जब बात पूरी हो जाए तो शांत मन से #नियम का हवाला आगे कर देना।
वे नारायणास्त्र की तरह खुद ही ढीले पड़ जायेंगे।
जबकि,
घिघियाते हुए पुराने #असामी आएंगे, चाहो तो उनको एक थप्पड़ भी लगा देना, पर उनके काम न रोकना क्योंकि वे इतने व्यवहार कुशल होते हैं कि जो लाठी उनको फेंक कर मारी जाती है वही शाम को ऑफिस से घर लौटने के पहले ही तुम्हारा इंतजार करती मिलेगी, और वह सोने चांदी से मढ़ी भी होगी।
इसलिए, पुराने असामी, जो सेक्युलर तबके के वर्चस्व के समय से ही काम आते रहे है, अब भी तुम्हारे उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले थे,,,,!
संघी हनुमानजी हैं और हम ठहरे गिरस्थि वाले,,,, दूर से ही नमस्कार कर देना पर घर में तो कुबेरजी ही थापित करना।
संघी गंगाजल हैं, और हमें तो कीचड़ में लोटने की बीमारी है।
संघी पतिव्रता नारी है और अपुन ठहरे वे,,, जिनका धंधा ही नाचने वाली के पैरों के बीच से होकर निकलता है।
संघी मगिये के कड़ाह का दूध है पर अपुन को तो गोलगप्पे खाने की आदत है।
संघी सोजत वाली मीठी सौंफ है जबकि हम कलकते की खैनी के तलबगार हैं।
संघी प्रज्ञा पेय है, हमें डोडा पोस्त वाली चाय चाहिए,,,,,।
फिर ये,,,,, हिसाब,,, किताब,,,, सुबह योगा, शाम को शाखा, ये सब करने को पूरा बुढापा पड़ा ही है।
चार पैसे जेब में हुए,और किसी संघी को घर बुला, किसी दिन चुपड़ी खिला दी तो वह वैसे ही खुश हो जाता है,,, बेटा!!
घर चलता है धन से, ये EMI, ये बंगले, ये फार्महाउस, ये निछावर, नौकर नौकरानियों के नखरे, कोर्ट कचहरी, हॉस्पिटल के खर्चे, बच्चों की ट्यूशन, नाते रिश्तेदारों में धाक,,,, इन सबके लिए पैसे चाहिए। वो पैसे असामी ही देगा। तब देगा जब उसको टरकाओगे,,, फिर चुपके से कर भी दोगे।
हर गली के मोड़ पर एक संघी खड़ा है।
किस किस का करोगे।
करोगे तो खाओगे क्या?
थोड़ा कहा,,,, ज्यादा समझना।
#kss

वृद्ध मुंशी का उपदेश

#वृद्धमुंशी ने #बंशीधर को इस तरह दुनियादारी के उपदेश का दूसरा संस्करण सुनाया।
"हवा बदल रही है, सख्ती बढ़ रही है, ऊपरी आय के झरनों को सुखाने की प्रबल चेष्टा हो रही है।
नये नये उपकरण और विभाग आए हैं जो पल भर में वेतन के अतिरिक्त  आए किसी भी धन को पल भर में पकड़ लेते हैं,,,,,
सुना है नए मंत्री तन्त्री काफी सख्त हैं और न खाते हैं न खाने देते हैं,,,, पर तुम इन बातों से तनिक भी विचलित नहीं होना!
उन सख्त से दिखने वाले लोगों के आजू बाजू के लोगों को ध्यान से देखना,,, वे वही मेरे और अलोपीदीन के जमाने के शोहदे हैं जो भरपेट खाते भी हैं और तरीके से #मैनेज किये जायें तो खाने भी देते हैं।
उन आजू बाजू वाले लोगों से विशेष स्नेह बनाए रखना, उनके भी तुम्हारी ही तरह #शौकीन बीवियां हैं, तेजी से जवान होती बेटियाँ हैं, मंहगी फीस देकर मटरगश्ती करने वाले लौंडे हैं, एक महीने  के वेतन से भी ढाई गुना तो उनका एकदिन का व्यय है।
#परन्तु,,,,,, " वृद्ध मुंशी कुछ चिंतित हुए।
"परन्तु,,,,क्या,,,?" बंशीधर चौकन्ना हुआ।
"परन्तु  इन सबमें तुझसे संघी दिखने वाले लोगों से सावधान रहना होगा।"
वे कभी रिश्वत आदि नहीं देते, न लेते हैं। उनको कथमपि यह पता नहीं चलना चाहिए कि तुम तनख्वाह से इतर एक पाई भी इधर उधर करते हो।
ऐसा करने पर तुम्हें उनके कई काम भी रोकने होंगे, फाइलें गायब करनी होगी, ऊपर से दबाव भी आएगा पर इस निराले झरने का रहस्य कभी न खुलने देना।
यह नये प्रकार की चुनौती है, उन #आरएसएस वालों के काम कभी न करना, वे नियम के बड़े पक्के होते हैं, और अपने यहाँ हरेक काम को रोकने का एक एक नियम पहले से ही मौजूद हैं, तुम्हें बस वह पढ़कर सुना भर देना है, वे स्वतः मार्ग से हट जाएंगे और फिर कभी सामने नहीं आएंगे।

ध्यान रखना,,,, ये आरएसएस वाले संघी, बोलने और दिखने में बड़े खतरनाक और सख्त दिखते हैं, बड़े बड़े मंत्री भी इनसे संकोच करते हैं तो अपनी तो कोई हैसियत ही नहीं है इनसे अड़ने की,,,, इन्हें अड़कर कभी वश में नहीं किया जा सकता,,, और न ही कभी इनसे ऊंची वाज में बात करना,,, पूरी तरह से भीगी बिल्ली बन, मुँह नीचा कर हर कैफियत चुपचाप सुनते रहना, भूल कर भी बात को बीच में मत काटना और जब बात पूरी हो जाए तो शांत मन से #नियम का हवाला आगे कर देना।
वे नारायणास्त्र की तरह खुद ही ढीले पड़ जायेंगे।
जबकि,
घिघियाते हुए पुराने #असामी आएंगे, चाहो तो उनको एक थप्पड़ भी लगा देना, पर उनके काम न रोकना क्योंकि वे इतने व्यवहार कुशल होते हैं कि जो लाठी उनको फेंक कर मारी जाती है वही शाम को ऑफिस से घर लौटने के पहले ही तुम्हारा इंतजार करती मिलेगी, और वह सोने चांदी से मढ़ी भी होगी।
इसलिए, पुराने असामी, जो सेक्युलर तबके के वर्चस्व के समय से ही काम आते रहे है, अब भी तुम्हारे उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले थे,,,,!
संघी हनुमानजी हैं और हम ठहरे गिरस्थि वाले,,,, दूर से ही नमस्कार कर देना पर घर में तो कुबेरजी ही थापित करना।
संघी गंगाजल हैं, और हमें तो कीचड़ में लोटने की बीमारी है।
संघी पतिव्रता नारी है और अपुन ठहरे वे,,, जिनका धंधा ही नाचने वाली के पैरों के बीच से होकर निकलता है।
संघी मगिये के कड़ाह का दूध है पर अपुन को तो गोलगप्पे खाने की आदत है।
संघी सोजत वाली मीठी सौंफ है जबकि हम कलकते की खैनी के तलबगार हैं।
संघी प्रज्ञा पेय है, हमें डोडा पोस्त वाली चाय चाहिए,,,,,।
फिर ये,,,,, हिसाब,,, किताब,,,, सुबह योगा, शाम को शाखा, ये सब करने को पूरा बुढापा पड़ा ही है।
चार पैसे जेब में हुए,और किसी संघी को घर बुला, किसी दिन चुपड़ी खिला दी तो वह वैसे ही खुश हो जाता है,,, बेटा!!
घर चलता है धन से, ये EMI, ये बंगले, ये फार्महाउस, ये निछावर, नौकर नौकरानियों के नखरे, कोर्ट कचहरी, हॉस्पिटल के खर्चे, बच्चों की ट्यूशन, नाते रिश्तेदारों में धाक,,,, इन सबके लिए पैसे चाहिए। वो पैसे असामी ही देगा। तब देगा जब उसको टरकाओगे,,, फिर चुपके से कर भी दोगे।
हर गली के मोड़ पर एक संघी खड़ा है।
किस किस का करोगे।
करोगे तो खाओगे क्या?
थोड़ा कहा,,,, ज्यादा समझना।
#kss

वृद्ध मुंशी का उपदेश

#वृद्धमुंशी ने #बंशीधर को इस तरह दुनियादारी के उपदेश का दूसरा संस्करण सुनाया।
"हवा बदल रही है, सख्ती बढ़ रही है, ऊपरी आय के झरनों को सुखाने की प्रबल चेष्टा हो रही है।
नये नये उपकरण और विभाग आए हैं जो पल भर में वेतन के अतिरिक्त  आए किसी भी धन को पल भर में पकड़ लेते हैं,,,,,
सुना है नए मंत्री तन्त्री काफी सख्त हैं और न खाते हैं न खाने देते हैं,,,, पर तुम इन बातों से तनिक भी विचलित नहीं होना!
उन सख्त से दिखने वाले लोगों के आजू बाजू के लोगों को ध्यान से देखना,,, वे वही मेरे और अलोपीदीन के जमाने के शोहदे हैं जो भरपेट खाते भी हैं और तरीके से #मैनेज किये जायें तो खाने भी देते हैं।
उन आजू बाजू वाले लोगों से विशेष स्नेह बनाए रखना, उनके भी तुम्हारी ही तरह #शौकीन बीवियां हैं, तेजी से जवान होती बेटियाँ हैं, मंहगी फीस देकर मटरगश्ती करने वाले लौंडे हैं, एक महीने  के वेतन से भी ढाई गुना तो उनका एकदिन का व्यय है।
#परन्तु,,,,,, " वृद्ध मुंशी कुछ चिंतित हुए।
"परन्तु,,,,क्या,,,?" बंशीधर चौकन्ना हुआ।
"परन्तु  इन सबमें तुझसे संघी दिखने वाले लोगों से सावधान रहना होगा।"
वे कभी रिश्वत आदि नहीं देते, न लेते हैं। उनको कथमपि यह पता नहीं चलना चाहिए कि तुम तनख्वाह से इतर एक पाई भी इधर उधर करते हो।
ऐसा करने पर तुम्हें उनके कई काम भी रोकने होंगे, फाइलें गायब करनी होगी, ऊपर से दबाव भी आएगा पर इस निराले झरने का रहस्य कभी न खुलने देना।
यह नये प्रकार की चुनौती है, उन #आरएसएस वालों के काम कभी न करना, वे नियम के बड़े पक्के होते हैं, और अपने यहाँ हरेक काम को रोकने का एक एक नियम पहले से ही मौजूद हैं, तुम्हें बस वह पढ़कर सुना भर देना है, वे स्वतः मार्ग से हट जाएंगे और फिर कभी सामने नहीं आएंगे।

ध्यान रखना,,,, ये आरएसएस वाले संघी, बोलने और दिखने में बड़े खतरनाक और सख्त दिखते हैं, बड़े बड़े मंत्री भी इनसे संकोच करते हैं तो अपनी तो कोई हैसियत ही नहीं है इनसे अड़ने की,,,, इन्हें अड़कर कभी वश में नहीं किया जा सकता,,, और न ही कभी इनसे ऊंची वाज में बात करना,,, पूरी तरह से भीगी बिल्ली बन, मुँह नीचा कर हर कैफियत चुपचाप सुनते रहना, भूल कर भी बात को बीच में मत काटना और जब बात पूरी हो जाए तो शांत मन से #नियम का हवाला आगे कर देना।
वे नारायणास्त्र की तरह खुद ही ढीले पड़ जायेंगे।
जबकि,
घिघियाते हुए पुराने #असामी आएंगे, चाहो तो उनको एक थप्पड़ भी लगा देना, पर उनके काम न रोकना क्योंकि वे इतने व्यवहार कुशल होते हैं कि जो लाठी उनको फेंक कर मारी जाती है वही शाम को ऑफिस से घर लौटने के पहले ही तुम्हारा इंतजार करती मिलेगी, और वह सोने चांदी से मढ़ी भी होगी।
इसलिए, पुराने असामी, जो सेक्युलर तबके के वर्चस्व के समय से ही काम आते रहे है, अब भी तुम्हारे उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले थे,,,,!
संघी हनुमानजी हैं और हम ठहरे गिरस्थि वाले,,,, दूर से ही नमस्कार कर देना पर घर में तो कुबेरजी ही थापित करना।
संघी गंगाजल हैं, और हमें तो कीचड़ में लोटने की बीमारी है।
संघी पतिव्रता नारी है और अपुन ठहरे वे,,, जिनका धंधा ही नाचने वाली के पैरों के बीच से होकर निकलता है।
संघी मगिये के कड़ाह का दूध है पर अपुन को तो गोलगप्पे खाने की आदत है।
संघी सोजत वाली मीठी सौंफ है जबकि हम कलकते की खैनी के तलबगार हैं।
संघी प्रज्ञा पेय है, हमें डोडा पोस्त वाली चाय चाहिए,,,,,।
फिर ये,,,,, हिसाब,,, किताब,,,, सुबह योगा, शाम को शाखा, ये सब करने को पूरा बुढापा पड़ा ही है।
चार पैसे जेब में हुए,और किसी संघी को घर बुला, किसी दिन चुपड़ी खिला दी तो वह वैसे ही खुश हो जाता है,,, बेटा!!
घर चलता है धन से, ये EMI, ये बंगले, ये फार्महाउस, ये निछावर, नौकर नौकरानियों के नखरे, कोर्ट कचहरी, हॉस्पिटल के खर्चे, बच्चों की ट्यूशन, नाते रिश्तेदारों में धाक,,,, इन सबके लिए पैसे चाहिए। वो पैसे असामी ही देगा। तब देगा जब उसको टरकाओगे,,, फिर चुपके से कर भी दोगे।
हर गली के मोड़ पर एक संघी खड़ा है।
किस किस का करोगे।
करोगे तो खाओगे क्या?
थोड़ा कहा,,,, ज्यादा समझना।
#kss

शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

तुम नहीं समझोगी,,,,

कहानी का शीर्षक ऐसा है जैसे किसी स्त्री को सम्बोधित  किया जा रहा है,, परन्तु वास्तव में वह आधुनिक स्त्रैण पूर्वाग्रही विचारधाराओं के लिए है।

किसी घर में एक साधारण परिवार रहता था।
उस परिवार में साधारण मनुष्यों की तरह ही अनेक प्रकार की आधि व्याधियाँ चलती रहती थी।
वह इन सबसे दुःखी था और कोई ऐसी निरापद औषध चाहता था जो रोज रोज के इन्सुलिन, एस्प्रिन, क्लिनिकल ट्रीटमेंट, डॉक्टर के चक्कर और चिकित्सकीय तीमारदारी के भारी व्यय से बचा सके।
एक बार एक #ज्ञानी वहाँ आए!!
उन्होंने उस घर के गृहस्वामी को बताया कि वर्षा ऋतु के पश्चात भूमि पर उगी कई वनस्पतियाँ इतनी कीमती और उपयोगी हैं कि यदि उनका ठीक से सेवन किया जाए तो व्यक्ति, स्वस्थ तथा मौजूदा क्षमता से कई गुणा अधिक क्षमतावान बन सकता है।
गृहस्वामी ने पूछा "वे कौन सी औषधियां हैं और उनका कैसे उपयोग किया जा सकता है?"
तब ज्ञानी बोले "यह बहुत जटिल प्रक्रिया है। हजारों औषधीय पौधे और वनस्पति हैं, उनके गुण धर्म भी प्रति दिन, प्रति रात प्रत्येक अवस्था के अनुसार बदलते हैं। उन्हें सीधे ही नहीं खाया जा सकता। काफी प्रोसेसिंग करनी पड़ती है। पहले तो उन्हें फार्मूले के अनुसार ढूढों, फिर काटो, पीसो, धोओ, मिलाओ, और उसके बाद सेवन करना है।"
ज्ञानी बोले,,,, "यदि तुमने जन्म भर इसका सेवन किया तो तुम्हारी शारीरिक क्षमता बढ़ जाएगी,,,, यदि तुम्हारी अगली पीढ़ी ने भी उसे जारी रखा तो वह बौद्धिक क्षमता में बेजोड़ होगी और यदि तुम्हारी तीसरी पीढ़ी भी ऐसा करती रही तो वह अद्भुत लोकोत्तर प्रतिभाओं से युक्त होंगी।"
गृहस्वामी बोले "ऐसा तो सभी चाहते हैं पर यह बहुत और कष्टकारी है। इसके लिए बहुत सारे सेवक रखने पड़ेंगे, एक लैब भी स्थापित करनी पड़ेगी, कई फार्मासिस्ट भी चाहिए, उन सबका वेतन आदि,,,, यह तो बहुत मंहगा पड़ेगा।"

तब ज्ञानी बोले,,, "यदि मैं तुम्हें एक ऐसी वस्तु दूँ जो यह सब कार्य करेगी,,,, तुम्हारे हिसाब से वह कितने की होनी चाहिए,,,,!"

"क्या एक वस्तु,,, और इतना कार्य,,,? यह तो असम्भव लगता है।"

"हाँ,,, और इसका व्यय, तुम्हारे परिवार के एक सदस्य के ऊपर होने वाले व्यय से भी कम है।"

अवाक,,, और कृतज्ञ गृहस्वामी ने उस ज्ञानी को #भू देव मानकर प्रणाम किया और उस वस्तु को "गाय माता" मानकर धन्यता अनुभव की।

*********

ऐसे सरल सूत्र देने वाले ज्ञानियों को यदि किसी ने ब्राह्मण देव कह दिया तो गुनाह तो नहीं किया !!
ऐसी उपयोगी गाय को माँ कहकर सम्मान दिया तो कोई अपराध तो नहीं किया !!
और
यदि सहमत नहीं है तो ले आइये,,,,, दूसरा कोई इससे भी सस्ता वैकल्पिक सलाहकार,,,,!
ले आइये दूसरा वैकल्पिक सस्ता इलाज जो इतना उपकारी और उपयोगी हो।
कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों ने कहा कि दूध वह है जिसमें इतना फैट हो,,, वगैर वगैर,,,,!
क्या वास्तव में गौ दुग्ध की परिभाषा इतनी सी ही है?
वैज्ञानिकों के बस की बात नहीं कि वे #ब्राह्मण को परिभाषित कर सकें।
कि वे गाय की समग्र परिभाषा दे सकें,,, उसे समझ सकें,,,!
कि वे  #पद्मावती के जौहर को समझ सकें।
कुछ चीजें तुम्हें कभी समझ नहीं आएगी।
यूँ ही सर नहीं कटाते थे,,,, यूँ ही "पूजहिं बिप्र शील गुण हीना नहीं कहते थे,,, यूँ ही सतीत्व रक्षण के लिए अग्नि स्नान नहीं करते थे।
इनको समझने के लिए भारत में जन्म लेकर भी कुछ "अतिरिक्त योग्यता" चाहिए होती हैं।
मुझमें वह है, अतः मैं गर्व से इतराता हूँ।
क्या तुझमें है,,,?
#kss

शनिवार, 16 सितंबर 2017

उसकी जाति, उसकी दुकान

ब्राह्मण,,,,?
जो वास्तव में ब्राह्मण थे, वे तो कभी के आरएसएस जॉइन कर #राष्ट्रवादी बन चुके हैं। वे ब्राह्मणत्व से अधिक अपनी हिन्दू अस्मिता से जाने जाते हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं।
ब्राह्मण है और राष्ट्रवादी नहीं है तो फिर वह ब्राह्मण है ही नहीं।
फिर ये राष्ट्र और आरएसएस के विपरीत चलने वाले कौन है?
ये वही नकली ब्राह्मण हैं जो पण्डावाद फैलाकर पहले भी देश की दुर्गति करवाते रहे और आज भी उसी में लगे हुए हैं।

ये ब्राह्मणों के नाम पर दुकान चलाने वाले देशद्रोही #कलंक हैं।
इन्हें ब्राह्मण कहना ब्राह्मणत्व का अपमान है!!

क्षत्रिय,,,?
जो वास्तव में क्षत्रिय हैं वे राष्ट्रवादी बन आरएसएस जॉइन कर चुके हैं। वे क्षत्रिय से अधिक, स्वयं की हिन्दू पहचान से गौरवान्वित होते हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं।
क्षत्रिय है और राष्ट्रवादी नहीं है,,, ऐसा हो ही नहीं सकता!!
फिर ये कौन है जो राष्ट्र और संघ से विपरीत चल रहे हैं,,,?
ये वही कुलकलंक हैं जिनके कारण देश माता एक सहस्र वर्ष वैधव्य के कलंक को  ढोती रही!
ये पहले भी संदिग्ध थे, ये आज भी संदिग्ध हैं।
ये क्षत्रिय नहीं, नकली क्षत्रिय हैं जो क्षत्रिय के नाम की दुकान चला क्षत्रियों को बदनाम कर रहे हैं!!
इन्हें क्षत्रिय कहना, क्षत्रियत्व का अपमान है!!

वैश्य,,,,?
कहाँ है वैश्य,,,?
जो असली महाजन थे वे तो कब  के राष्ट्रवादी बन चुके हैं। उन्होंने अपनी वैश्य पहचान को त्याग कर हिंदुत्व को स्वीकारा है।
उन्होंने आरएसएस जॉइन कर ली है।
वे वैश्य से अधिक, स्वयं की हिन्दू पहचान से गौरवान्वित होते हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं!!
फिर ये वैश्य के नाम पर पूंगी बजाने वाले कौन हैं?
ये वही परजीवी हैं जो देश संकट के समय भी अपनी तिजोरी भरने में व्यस्त रहे और अपने ही देशवासियों के जख्म में कुलबिलाते कीड़े जिन्हें दिखाई नहीं दिए।
ये वैश्य नहीं, नकली वैश्य हैं जो वैश्यों के नाम पर अलग दुकान चला, वास्तविक वैश्यों को बदनाम कर रहे हैं!!

शूद्र,,,,?
कहाँ है शूद्र,,,,?
जो वास्तविक शुद्र थे वे कब के इस अपमानजनक सम्बोधन वाले आवरण को तोड़, हिन्दू बन चुके हैं। उन्होंने आरएसएस जॉइन कर लिया है। वे स्वयं को शूद्र कहलाना भी पसंद नहीं करते, वे अपनी पहचान हिन्दू के रूप में करवाते हैं।
बल्कि, वे ही वास्तविक हिन्दू हैं। ये नाम गोत्र तो उनकी परम्परा के वाहक हैं !!
फिर ये शूद्रत्व के नाम पर रोज होंगे वाली हाय तौबा कौन कर रहे हैं?
ये वही नकली शूद्र हैं जो पहले भी राष्ट्रसंकट के समय उत्सव मनाते थे, आज भी मनाते हैं।
इन्हें शूद्र कहना, शूद्रत्व का अपमान है। ये तो #शूद्र नाम वाली किसी दुकान के दुकानदार हैं जो खुलकर माल कूट रहे हैं!!
#हिन्दू है और #संघठित नहीं है, उसे हिन्दू मानो ही मत।
वे हिंदुत्व की अच्छाई और बुराई पर दुकान चलाने वाले ढोंगी व्यापारी हैं।
हिन्दू  शरीर से उत्सर्जित कालबाह्य परम्पराओं से उर्वरक बना अपनी अलग फसल काटने वाले इन हिन्दू द्वेषियों को पहचानना ही होगा।
यतो संघस्ततो हिन्दु: ,,,,  हिन्दू धर्मो विजयते !!
#kss

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

पत्र

माननीया,,,,
            वसुंधरा राजे जी,(मु म, राजस्थान) !!
             नमस्ते!
मैं एक नौ वर्ष का #बालक हूँ, और आज आपको यह पत्र लिख रहा हूँ।
       मैं एक सरकारी विद्यालय में चौथी कक्षा में पढ़ता हूँ और छोटे से गाँव में रहता हूँ। आपकी सरकार द्वारा पढ़ाई किताबों में एक जगह लिखा है कि छोटे बच्चों को दूध पीना चाहिए, इसलिए मेरे और दीदी के लिए पिताजी एक गाय लेकर आए! मैंने आज तक चाय को हाथ नहीं लगाया और रोज दूध पीता हूँ।
अभी हमारी गायों की संख्या पाँच हो गई है और वे भादो के महीने में भी घर के बाड़े में दिन भर बन्द रहती है।  कारण,,,,  चारों ओर की सरकारी भूमि और गोचर पर लोगों ने तारबन्दी कर अवैध खेती कर रखी है।
महोदया!!
          ये अवैध खेती वाले रात को तारबन्दी में करंट छोड़ते हैं, दिन को लट्ठ लेकर गायों को भगाते हैं, ट्रैक्टर पीछे दौड़ाते हैं, कई पशुओं को पकड़ कर धातु की तार से मुँह बाँध देते हैं।इससे प्रतिदिन कई गाय, बैल, बछड़े, ऊंट, उंटनियाँ, आदि मर रहे हैं, अपँग हो रहे हैं और सड़कों पर आकर जम जाते हैं।
महोदया,,,!!
स्थिति यह है कि उल्टे ये लोग आकर हमें धमकाते हैं और कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं।
अब मेरे पिताजी इन सब गायों को बेचना चाहते हैं किंतु कोई भी लेने को तैयार नहीं। गौशाला वालों ने भी मना कर दिया, हमारे पुष्तैनी पण्डित जी, रिश्तेदार और निकट सम्बन्धियों को फ्री में देनी चाही पर सबने मना कर दिया!!
पहले हमारी गायों में एक ग्वाला होता था जो कुछ चराई के बदले गायें चरा लाता था, किन्तु इस वर्ष ग्वाला कोई तैयार ही नहीं हो रहा है, क्योंकि जब खुली जमीन ही नहीं है तो वह कहाँ लेकर जाए?
आज जिनके पास गाय नहीं, वे बड़े खुश हैं और हमारी मजाक भी उड़ाते हैं, हमारी दुर्गति देखकर!!
महोदया!!
आप धार्मिक हैं और मंदिरों में जाती हैं, ऐसा हमने सुना है। ये देवी देवता आपकी सुनते भी होंगे।
महोदया,,,!
उन देवताओं से कहना कि हमारी गायों को अपने पास ले जाएं क्योंकि यहाँ अब उनके रहने, चरने, फिरने की जगह ही नहीं बची। हम बिना दूध के रह लेंगे। हम उस पाठ को पढेंगे ही नहीं, जिसमें दूध पीने का लिखा है। हम अपनी टीचर को भी मना लेंगे कि वह हमें #गाय पर लेख रटाना बन्द करे। मैं अपने पिताजी की अलमारी में रखी #गौदान पुस्तक को भी चुपके से जला दूँगा।
महोदया,,,!
मैंने पढ़ा है कि #राजस्थान का क्षेत्रफल सबसे ज्यादा है। यहाँ भी जब भूमि की यह स्थिति है तो दूसरी जगह तो और भी बुरी स्थिति होगी, और वहाँ जब गायें हैं ही नहीं तो ये,,,,,, शहर में दूध कहाँ से आता है ,,,?,,,,,यह मेरे लिए अभी भी रहस्य है ।
मैंने सुना है कि गायों के लिए लड़ते हुए कई लोगों ने अपना बलिदान दे दिया।
मैं 9 साल का बालक अभी तो नहीं लड़ सकता, पर जब देखता हूँ कि बड़े भी नहीं लड़ रहे, तो समझ नहीं पाता कि उनकी क्या मजबूरी है?
मेरा वोट भी नहीं है। मेरी गायें भी वोट नहीं दे सकती।
आप तक बात पहुंचाने का यह आइडिया मेरा ही है और पिताजी ने वही लिखा है जो मैं उन्हें कह रहा हूँ।
महोदया,,,!
हो सके तो कुछ कीजिए। अवसर सबको नहीं मिलता!!
आपका
#हर्षवर्धन

पूजा

पूजा का अर्थ केवल गन्ध फूल चढ़ाना ही नहीं है,,,,, पूजनीय गुरुजी की इस पंक्ति को आगे बढ़ाते हैं।
किं पूजनम् ??
क्या सामीप्य?
या फिर सायुज्य?
अथवा कृतज्ञता ज्ञापन,,,???
कर्मकाण्ड का जो वैदिक स्वरूप था उसमें समय समय पर बहुत परिवर्तन हुए हैं।
वर्तमान षोडश उपचारादि बहुत बाद के हैं और क्षेत्र, सम्प्रदाय, काल के अनुसार बहुत भिन्नता वाले हैं।
आचमन, आह्वान, प्राणायाम, करन्यास, आदि कई कार्य बिलकुल उसी रूप में हो रहे हैं, जैसी शास्त्राज्ञा है,,,?
बिल्कुल नहीं।
ये सब और विधियां भी, सब परिवर्तनीय है।
परिवर्तन होते आये हैं।
उत्तर और दक्षिण की विधियों में भी अंतर है।
नवति प्रतिशत लोग कर्मकाण्ड का मर्म ही नहीं जानते।
विधि, उच्चारण, प्रसंगानुसार मन्त्र और पद्धति से अनभिज्ञ लोग आखिर करें तो क्या करें?
मेरा मन्तव्य अश्रद्धा निर्माण नहीं,
दृढ़ विश्वास निर्माण है।
यादृशी भावना यस्य,,, सिद्धि भवति तादृशी,,,,
विश्वासी बनो।
प्रचण्ड आत्मविश्वास से सम्पन्न पराक्रमी पुरूष सिंहों के उद्योग ही विधि बन जाते हैं।
कबड्डी अधिक प्रभावी है, घण्टा बजाने से।
क्रियाशील सात्विक और जितेंद्रिय नास्तिक भी हजार आस्तिकों पर भारी पड़ता है।
जड़वादी आस्तिकता, नास्तिकता ही है।
संकल्पित नास्तिकता भी आस्तिकता है।
प्रातः सन्ध्या में नियत तीन प्राणायामों की अपेक्षा, स्वामी रामदेव निर्दिष्ट पंच प्राणायाम कीजिए।
कोई आवश्यकता नहीं ताम्रपत्र और पवित्री की।
व्यावहारिक लाभ ही लाभ है।
शास्त्रोक्त अदृष्ट से अभी तुम कई योजन दूर हो!!
पहले उपयुक्त वातावरण की सृष्टि तो कर दो!!
तब तुम्हें तपोवन में बिखरे नीवार के बारे में सोचना चाहिए।
#kss

सेक्युलर भक्ति

सेक्युलर भक्ति , #भक्ति न भवति।
उपासना पध्दतियों का घालमेल सबसे बड़ा पाखण्ड है।
यह एकं सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति ,,,, वेदवाक्य का सबसे बड़ा मजाक है। यह उसी श्रृंखला का एक षड्यंत्र है,,, जिसमें भारतीय मूल्यों की चाशनी में जहर घोल कर भारत को पिलाया।
गांधी बाबा ने ईश्वर अल्ला तेरो नाम,,,,, गाया।
वर्षों तक सर्वोदयी लोग "सर्वधर्म प्रार्थना" का राग गाते थे,,, गाते रहे। #गांधी गान का परिणाम यह हुआ कि लगभग सभी भारतीय मन्दिरों में, भरी भीड़ के सामने यीशु, श्रीकृष्ण, मोहम्मद, ईश्वर, अल्ला, देवी आदि को #एक बताने के नारे लगाए जाते रहे हैं।
कबीर और गाँधी लाख एका रटते रहें,,,, पर क्या वे अपने इस नारे को किसी मस्जिद या चर्च में लगवा सके?
क्या पाकिस्तान में कोई एक भी जिंदा सर्वोदयी उस एका गान को गाता है? गाना तो क्या,,, कोई सहमत भी है?
मुस्लिम गुंडागर्दी से त्रस्त गाँधी और कबीर ने सेक्युलर भक्ति की खोज की जिसे मुस्लिम ईसाइयों ने ठुकरा दिया पर हिन्दू तीर्थ अवश्य प्रदूषित हो गए!!
जैसी कि परम्परा रही है, सभी दुर्भाग्य के #भूत हिंदुओं के ही पीछे लगाए जाते हैं।
उपासना नितांत व्यक्तिगत विषय है, इसमें सामुहिक घालमेल राजनीति और षडयंत्र वश किया जाता है। जो कि नहीं होना चाहिए।
वह सबसे बड़ा ढोंगी है जो सभी मजहबों को समान बताता है।
वे सबसे बड़े पाखण्डी हैं जो ईश्वर अल्ला एक होने और भजने की बात करते हैं।
जब कोई ऐसा कह रहा है, उसका यह अर्थ है कि वह मात्र हिंदुओं पर चोट करने का एक नया उपाय मात्र कर रहा है।
कबीर के समय युग की मांग थी, हालांकि बाद में स्वयं कबीर ने इसके रहस्य को खोला जिसे जानने की जरूरत है। गाँधी तो नाम ही मजबूरी का है।
वर्तमान मजबूत हिंदुत्व की ऐसी कोई मजबूरी नहीं।
सेक्युलर भक्ति, भक्ति नहीं जाल है, तुम्हें #फांसने का।
#kss