गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

वृद्ध मुंशी का उपदेश

#वृद्धमुंशी ने #बंशीधर को इस तरह दुनियादारी के उपदेश का दूसरा संस्करण सुनाया।
"हवा बदल रही है, सख्ती बढ़ रही है, ऊपरी आय के झरनों को सुखाने की प्रबल चेष्टा हो रही है।
नये नये उपकरण और विभाग आए हैं जो पल भर में वेतन के अतिरिक्त  आए किसी भी धन को पल भर में पकड़ लेते हैं,,,,,
सुना है नए मंत्री तन्त्री काफी सख्त हैं और न खाते हैं न खाने देते हैं,,,, पर तुम इन बातों से तनिक भी विचलित नहीं होना!
उन सख्त से दिखने वाले लोगों के आजू बाजू के लोगों को ध्यान से देखना,,, वे वही मेरे और अलोपीदीन के जमाने के शोहदे हैं जो भरपेट खाते भी हैं और तरीके से #मैनेज किये जायें तो खाने भी देते हैं।
उन आजू बाजू वाले लोगों से विशेष स्नेह बनाए रखना, उनके भी तुम्हारी ही तरह #शौकीन बीवियां हैं, तेजी से जवान होती बेटियाँ हैं, मंहगी फीस देकर मटरगश्ती करने वाले लौंडे हैं, एक महीने  के वेतन से भी ढाई गुना तो उनका एकदिन का व्यय है।
#परन्तु,,,,,, " वृद्ध मुंशी कुछ चिंतित हुए।
"परन्तु,,,,क्या,,,?" बंशीधर चौकन्ना हुआ।
"परन्तु  इन सबमें तुझसे संघी दिखने वाले लोगों से सावधान रहना होगा।"
वे कभी रिश्वत आदि नहीं देते, न लेते हैं। उनको कथमपि यह पता नहीं चलना चाहिए कि तुम तनख्वाह से इतर एक पाई भी इधर उधर करते हो।
ऐसा करने पर तुम्हें उनके कई काम भी रोकने होंगे, फाइलें गायब करनी होगी, ऊपर से दबाव भी आएगा पर इस निराले झरने का रहस्य कभी न खुलने देना।
यह नये प्रकार की चुनौती है, उन #आरएसएस वालों के काम कभी न करना, वे नियम के बड़े पक्के होते हैं, और अपने यहाँ हरेक काम को रोकने का एक एक नियम पहले से ही मौजूद हैं, तुम्हें बस वह पढ़कर सुना भर देना है, वे स्वतः मार्ग से हट जाएंगे और फिर कभी सामने नहीं आएंगे।

ध्यान रखना,,,, ये आरएसएस वाले संघी, बोलने और दिखने में बड़े खतरनाक और सख्त दिखते हैं, बड़े बड़े मंत्री भी इनसे संकोच करते हैं तो अपनी तो कोई हैसियत ही नहीं है इनसे अड़ने की,,,, इन्हें अड़कर कभी वश में नहीं किया जा सकता,,, और न ही कभी इनसे ऊंची वाज में बात करना,,, पूरी तरह से भीगी बिल्ली बन, मुँह नीचा कर हर कैफियत चुपचाप सुनते रहना, भूल कर भी बात को बीच में मत काटना और जब बात पूरी हो जाए तो शांत मन से #नियम का हवाला आगे कर देना।
वे नारायणास्त्र की तरह खुद ही ढीले पड़ जायेंगे।
जबकि,
घिघियाते हुए पुराने #असामी आएंगे, चाहो तो उनको एक थप्पड़ भी लगा देना, पर उनके काम न रोकना क्योंकि वे इतने व्यवहार कुशल होते हैं कि जो लाठी उनको फेंक कर मारी जाती है वही शाम को ऑफिस से घर लौटने के पहले ही तुम्हारा इंतजार करती मिलेगी, और वह सोने चांदी से मढ़ी भी होगी।
इसलिए, पुराने असामी, जो सेक्युलर तबके के वर्चस्व के समय से ही काम आते रहे है, अब भी तुम्हारे उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले थे,,,,!
संघी हनुमानजी हैं और हम ठहरे गिरस्थि वाले,,,, दूर से ही नमस्कार कर देना पर घर में तो कुबेरजी ही थापित करना।
संघी गंगाजल हैं, और हमें तो कीचड़ में लोटने की बीमारी है।
संघी पतिव्रता नारी है और अपुन ठहरे वे,,, जिनका धंधा ही नाचने वाली के पैरों के बीच से होकर निकलता है।
संघी मगिये के कड़ाह का दूध है पर अपुन को तो गोलगप्पे खाने की आदत है।
संघी सोजत वाली मीठी सौंफ है जबकि हम कलकते की खैनी के तलबगार हैं।
संघी प्रज्ञा पेय है, हमें डोडा पोस्त वाली चाय चाहिए,,,,,।
फिर ये,,,,, हिसाब,,, किताब,,,, सुबह योगा, शाम को शाखा, ये सब करने को पूरा बुढापा पड़ा ही है।
चार पैसे जेब में हुए,और किसी संघी को घर बुला, किसी दिन चुपड़ी खिला दी तो वह वैसे ही खुश हो जाता है,,, बेटा!!
घर चलता है धन से, ये EMI, ये बंगले, ये फार्महाउस, ये निछावर, नौकर नौकरानियों के नखरे, कोर्ट कचहरी, हॉस्पिटल के खर्चे, बच्चों की ट्यूशन, नाते रिश्तेदारों में धाक,,,, इन सबके लिए पैसे चाहिए। वो पैसे असामी ही देगा। तब देगा जब उसको टरकाओगे,,, फिर चुपके से कर भी दोगे।
हर गली के मोड़ पर एक संघी खड़ा है।
किस किस का करोगे।
करोगे तो खाओगे क्या?
थोड़ा कहा,,,, ज्यादा समझना।
#kss

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