एक बडी परीक्षा का प्रश्नपत्र बनाने की कार्यशाला थी।
मैं भी गया था।
हालांकि यह काफी गोपनीय और जिम्मेदारी का कार्य है और उसे सार्वजनिक नहीँ किया जा सकता।
कार्यशाला के संयोजक की बहुत सारी विशेषताएं थीं।
वे मंत्रीजी के खास थे। एक बड़े नेता के कुटुंब से भी थे। स्थापित बुद्धिजीवी, लेखक प्रोफेसर, शिक्षाविद वगैर वगैर तो थे ही,,,, कठोर अनुशासन के लिए भी प्रसिद्ध थे, सत्तापक्ष के चहेते भी थे!!
ज्यादातर सम्भागी भी नये थे। नई सत्ता के अनुरूप "कुछ कर गुजरने"की उमंग और आशा से भरे हुए।
"उन्होंने जैसी मनमानी की वैसी तो नहीं करेंगे पर जो #कानूनन सही है और सत्य है वह तो कर ही सकते हैं।" इस आशय की बातचीत हो रही थी।
कुछ प्रोफेशनल और #अनुभवी बुजुर्गों के चेहरे बता रहे थे कि वे रीत का रायता निपटाने आए हैं और जरूरत पड़ी तो विरोध भी करेंगे!!
एक प्रभाग का प्रभारी मुझे बनाया गया। दिन भर अपनी कमेटी के मेम्बर्स को समझने और समझाने में बीता!!
सभी जन इस बात पर सहमत थे कि हम ऐसा कुछ करें कि काम की प्रशंसा भी हो और हमें इस तरह बार बार बुलाया भी जाता रहे!!
मैंने उनकी समीक्षा बुद्धि की टोह ली। कुछ ट्रिक समझाए कि एक ही टॉपिक पर वामपंथियों और हमारे द्वारा बनाए प्रश्नों में किस प्रकार की भिन्नता होगी।
हमें उद्देश्यों की पूर्ति करने के साथ साथ यह भी ध्यान रखना है कि हम ऐसा पेपर सेट करें कि कम्पीटिशन में वामपंथी साहित्य को छात्र कम से कम पढें।
हमारे प्रश्नों की धार ऐसी हो कि विवश होकर प्रतियोगी वही पढें जो हम पढ़ाना चाहते हैं,,,, बिलकुल वास्तविक और भारतीयता के अनुकूल।
हमारे पेपर बनाने भर की देर है। बाद में प्रश्नों का #जायका समझकर ही सारे कोचिंग संस्थान, क्रोनोलॉजी, कम्पीटिशन साहित्य आदि अपनी दिशा बदल देंगे।
हमें अपनी तरफ से नया कुछ भी नहीं थोपना है, मौजूदा सिलेबस में ही वे सारे तत्व, तथ्य और परिभाषाएं विद्यमान है जिन्हें हम उभारना चाहते हैं। अभी इतना जिंदा तो है ही भारत!!
बस जरूरत है हमारे दृष्टिकोण की,,,, और #उनके छल,छद्म, टोटकों के पहचान की!!
इसके लिए हमें कॉपी पेस्ट से बचना होगा, परिश्रम करना होगा। अपने #ट्रिक्स एक दूसरे से साझा करने होंगे और तथ्यों को गहराई से समझने की दिशा में और आगे बढ़ना होगा।
ऐसा करके हम न केवल भारतीय मेधा का रुख मोड़ सकते हैं, बल्कि उन सभी देशद्रोही, jnu छाप लाल लँगूरों के मुँह पर तमाचा मार सकते हैं जो अपनी विकृत मानसिकता को देश की नौकरशाही में रोप कर खूब बड़ी गिरोहबंदी में लीन हैं।
पर सावधान,,,,, बहुत सूक्ष्मता से,,, बहुत ही महीन कारीगरी से,,,,, एक एक बात सोच समझकर,,,,, उनसे भी बड़ी समझ और रणनीति से हमें यह सब करना है, जिससे कल को कोई कोर्ट कचहरी या मिडियाबाजी का #झंझट नहीं रहे!!
हमारी योजना इतनी ठोस और निरापद थी कि इस कल्पना से ही हम रोमांचित हो गये।
हममें सपने सच करने की उमंग और उत्साह ऐसा था कि हमने आस पास वाले दूसरे ग्रुप्स में भी यह चर्चा चलाई। जिस जिस को यह समझ आया वह पूर्णतः हमसे सहमत था।
दो दिन इसमें बीत गए, तीसरे दिन कार्य आरम्भ करना था। इन दो दिन-रात्रियों में हमने पूरी लायब्रेरी छान डाली। नोट्स और सन्दर्भ से डायरियां भर गईं। पन्ने पर पन्ने लिखे जाने लगे। परस्पर सलाह कर प्रश्न की धार की तीक्ष्णता और दिशा के सारे जोड़ घटा माप लिए।
हर वह प्रश्न जो वामपंथी-विकृत सोच के निहित स्वार्थों का पोषक था, हमने चीर फाड़ कर उसकी चिन्दी चिन्दी की और उसी सामग्री से एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया।
जैसे,,,,
प्रश्न यदि वनवासियों के असंतोष का था तो हमने उसे उनकी प्रकृति पूजा की परम्परा में बदल दिया।
प्रश्न यदि हिंदी गद्य में उर्दू के योगदान का था तो हमने अदालती शब्दों में उर्दू के दुराग्रह के आंदोलन की बात छेड़ी।
प्रश्न यदि पंचशील के सिद्धांत का था तो हमने वहाँ चीन के विस्तारवाद को पूछा।
हम अब सिद्धहस्त हो चुके थे।
वामपंथ का एक किला जड़ से ढहने वाला था।
हमने अपनी कार्ययोजना और रूपरेखा "संयोजकमहोदय" को समझाई और उनसे हरी झंडी चाही।
प्रश्न पढ़ते ही वे #फक्क से अरुचि से भर उठे।
"इतनी जल्दी नहीं,,,,!" वे असहाय से घबराने लगे।
मैं उन्हें समझाने लगा कि "सर कुछ नहीं होगा,,,,!"
पर वे अत्यंत आतंकित दिखने लगे।
हवा का रुख देख कुछ बुजुर्ग भी आगे आये। वे आश्वस्त करने लगे कि बहुत पक्का काम हुआ है। जो वास्तविकता है, वैसा हुआ है और नये सदस्यों ने बहुत परिश्रम करके असत के विरुद्ध पहली बार कोई स्थाई कार्य किया है। कोर्ट इत्यादि के झंझट का सवाल ही नहीं!!
पर वे क्रमशः कठोर होते गए। रिस्क शब्द उनकी डिक्शनरी में ही नहीं था।
जो चल रहा है, चलने दो!!
मैं,,,,, जो अब तक उन्हें बहुत जिम्मेदार, ज्ञानी, कूटनीतिज्ञ और न जाने क्या क्या समझ रहा था,,,, कुछ क्षण के लिए सदमे में आ गया।
समझ गया कि यह लड़ाई इतनी #सरल नहीँ!!
फिर से कुंआ खोदूँगा।
ताजा पानी पीऊंगा।।
#kss
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