मंगलवार, 23 मई 2017

हिब्रू कथा

2300 वर्षों से हम दुनिया में भटक रहे हैं, अपनी भूमि से निर्वासित, दर दर की ठोकरें खाते, धन तो बहुत कमाया पर यूरोप के #नवराष्ट्रवाद में कहीं भी हमारी इज्जत नहीं। जिसे जब इच्छा होती है, किसी भी यहूदी को पीट कर चल देता है. सबसे पहले हमें अपनी हिब्रू भाषा को पुनरुज्जीवित करना होगा, जिसे भाषावैज्ञानिकों ने #मृत घोषित कर दिया है! "यह असंभव है!" "प्रकृति विरोधी है!" "कोई साथ नहीं देगा, अकेले मरते रहो!" "तुम 2300वर्षों से बह रही धारा को मोड़ना चाहते हो जो कि एक महानद का रूप ले चुकी है।" किन्तु जगत ने देखा...... थियोडोर हर्ज्ल विचलित नहीं हुआ। #हिब्रूभाषा के पुनरुद्धार में स्वयं को झौंक दिया! 1860 में जन्मे इस युवा आस्ट्रियन हंगेरियन पत्रकार ने 1880 में एक लेख द्वारा इजरायल की स्थापना की प्राकल्पना लिख दी,,, पर धन पशु यहूदियों ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया!! राष्ट्र मरा नहीं करते वे अपनी भाषा में बीज रूप में सुप्त रहते हैं। "मेरा बालक प्रथम हिब्रू भाषी बच्चा होगा!" इस भीषण प्रतिज्ञा के साथ वह सिंह की भाँति कार्यक्षेत्र में उतर गया!! पहला सहयोग अपनी पत्नी से मिला, गर्भकाल से ही उन्होंने घर पर हिब्रू के अतिरिक्त अन्य कोई भाषा का शब्द न बोलने का निर्णय लिया। उन्होंने दुनिया को बताया "देखना, हमारा बच्चा अपना प्रथम शब्द हिब्रू ही बोलेगा, हम तब तक अन्य शब्द की छाया भी नहीं पड़ने देंगे!" परन्तु समस्यायें इतनी ही नहीं थीं!! हिब्रू सम्बन्धी पूर्वधारणाओं का अम्बार था वहाँ। प्रबुद्ध लोग खिल्ली उड़ा रहे थे। यह सब हो गया तो भी तुम कब तक जीवित रहोगे? जब अन्य भाषा से काम चल रहा है तो हिब्रू ही क्यों? हिब्रू तो पवित्र भाषा है, कर्मकाण्ड तक ही ठीक है। ऐसी पवित्र भाषा का लौकिक प्रयोग कर तुम #पाप कर रहे हो!! तुम्हें अपनी सनक के लिये पत्नी और बच्चे की बलि चढाने का कोई अधिकार नहीं!! यह तो देवदूत भाषा (tongue of the prophets) है, हम मनुष्यों के बस की नहीं। तुम धर्म कर्म पौरोहित्य और ओल्ड टेस्टामेंट के बारे में जानते ही क्या हो?? आखिर बच्चा जन्मा। दोनों पति पत्नी वहां घण्टों हिब्रू में ही बात करते। अन्य लोगों को वहाँ आने की अनुमति ही नहीं थी। सामान्य बच्चा 18 माह बाद ही बोलना शुरू कर देता है, पर यहाँ 20 महीने बीत गये!! सभी परिणाम जानने को उतावले थे। पत्नी का धैर्य चुकने लगा!! 24 और फिर 30 माह बीतने को आए!! बच्चे ने एक शब्द नहीं बोला!!!!!! कहीं वह गूंगा तो नहीं????? थियोडोर सैकडों लेख और हजारों भाषणों में यह दावा कर चुका था "कोई भाषा कैसे मृत हो सकती है यदि उसे बोलने वाले विद्यमान हो तो???? यदि कोई पति पत्नी घर में नई भाषा बोलें तो उनकी सन्तति भी जन्मजात वही भाषा बोलेगी और वह उसकी मातृभाषा होगी, और इस तरह से देखना हिब्रू भी जीवित होगी!" तो क्या इस बच्चे को मार दूँ?? वह भीतर तक कांप गया!!!! विगत 20वर्ष से वह हिब्रू का अभ्यास कर रहा था! उसकी पत्नी और मित्रमण्डली ने उस पर विश्वास किया। इन सभी ने खुद की बोली त्याग हिब्रू बोलनी शुरू की। घर घर, गाँव गाँव गए! भूख प्यास, अभाव उपेक्षा सह लोगों को हिब्रू सिखाते रहे। हिब्रू कक्षाएँ चलाईं। शिशुकेन्द्र खोले। शब्दभण्डार रचे। विद्यालयों में हिब्रूमाध्यम लागू करने के आन्दोलन चलाए! गत 45वर्षों की थकान उसे बेहोश करने लगी। तीस महीने से अपने शिशु को सीने से चिपका, उसकी एक एक सांस को महसूस करता मन डोलने लगा! वह रो भी नहीं सकता...... कयों कि रोना तो उसने क्षेत्रीय बोली में सीखा है, न जाने 23 सौ बरस पहले हिब्रू में कैसे #रोते होंगे?? अन्दर का बाँध टूट गया! आंखों से गंगा जमना बहने लगीं। विश्वास की नींव दरकने लगी!! दिशाएँ शून्य होने लगीं। सहसा बालक के गले में कंपन हुआ!! वह बोलने लगा!!! वह बोल रहा था! वह हिब्रू बोल रहा था। थियोडोर की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने बच्चे को छाती से भींच लिया!!!!!! 2300वर्ष बाद हिब्रूभाषी इजराइल राष्ट्र का जन्म हो चुका था । यहूदियों के टोले दुनिया भर से फिलीस्तीन की तरफ बढने लगे!! जरूशलम फिर से आबाद हुआ!! 45वर्ष की साधना करते हुए 1925 में अशक्तता, क्षय रोग, लकवे के बावजूद निरन्तर सक्रिय थियोडोर ने हस्त लिखित आधुनिक हिब्रू साहित्य के कागजों के पहाड़ पर सन्तोष की अन्तिम सांस ली!! भुवमानीताभगवद्भाषा!! उसी का परिणाम है आधुनिक इज़रायल स्वाभिमानी राष्ट्र!!!!! #kss (23.5.2017)

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