बुधवार, 12 अप्रैल 2017

जाति ही जाति

कभी भारत विश्वगुरु था, जो ज्ञान परम्परा यहाँ शुरू हुई वह ब्राह्मणों के कारण हुई।
सदियों तक निर्धनता और विपन्नता सहकर भी ब्राह्मणों ने भारत को विश्वगुरु बनाये रखा।
आजादी के बाद ब्राह्मणों को क्या मिला?
थोथे हिंदुत्व ने हमें कुछ न दिया!!!
हम #हिन्दू नहीँ, ब्राह्मण हैं।
जिस हिन्दू से एक मीटर कोपीन और दो मुट्ठी चावल लेकर उसे अमृत के समान ज्ञान देते रहे उसने आज हमें भुला दिया!!
बोलिए ब्राह्मण एकता जिंदाबाद।
हम अखिल भारतीय ब्राह्मण महासम्मेलन बुलाएँगे।
हिंदुत्व की ईंट से ईंट बजाएंगे।
******
कभी भारत विदेशी दुर्दमनीय ताकतों से आक्रांत था।
जनता और संस्कृति के ऊपर खतरा था।
उस समय अपने घर परिवार लुटाकर, महिलाओं को जौहर की अग्नि में सौंप #राजपूतों ने अपना रक्त बहाया।
सदियों तक वे पीढ़ी दर पीढ़ी लड़ते रहे, मरते रहे। किसी की भी गाय, भैंस बहिन बेटी के लिये अपने मासूम बच्चों को अकेला छोड़ वे मर गए, उनकी पत्नियां सती हो गईं।
पर, आजाद भारत में राजपूतों को क्या मिला?
हिंदुत्व के ठेकेदारों ने हमें क्या दिया???
जिस देश भूमि और संस्कृति के लिये उन्होंने अपना रक्त बहाया वहाँ वे पानी और बिजली तक के लिये तरस रहे हैं,,,,,।
तो,,,, भाड़ में जाये देश, भाड़ में गया हिंदुत्त्व!!
हमारा तो क्षात्र धर्म है।
हम हिन्दू नहीँ हैं।
तो, बोलो जय क्षात्र धर्म। हम हिन्दू हैं ही नहीँ, हम क्षत्रिय हैं,,,, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा इस प्रस्ताव को ऊपर तक उठाएगी!!!
*****
हम बनियों ने अपने परिश्रम से देश को समृद्धि दी। उसे सोने की चिड़िया बनाया। मठ मंदिर, कुँए धर्मशाला को दान दिया। हारी बीमारी सहायता की और भूल गए।
आजादी के बाद हमें कुछ न मिला।
हमारे टैक्स से हमारी ही मौत का सामान बनता रहा।
काहे का धर्म,,,काहे का देश,,,, जो आया चार लातें मार कर गया।
अखिल भारतीय वैश्य महापरिषद इसका कठोरता से विरोध करती है।
हमें कुछ न दो, पर हमसे कुछ भी मत लो।
हम हिन्दू हैं ही नहीँ,
हम वैश्य हैं,,,, हैं हैं हैं हैं,,,,,
******
गर्व से नहीँ, गुस्से से कहो कि हम #दलित हैं।
मूलनिवासी होकर भी हमारा सब कुछ छिन गया। आर्यों ने हमें गुलाम बनाया, खेतों से लेकर शौचालयों तक केवल काम करवाया, समानता से वंचित रखा, जूतों वाली जगह बिठाया, हम कमाते रहे वे खाते रहे मुटियाते रहे,,,, जो मिला उन्हें मिला हमें क्या मिला???
आज भी सबसे ज्यादा गाली हमें मिलती है, भेदभाव होता है,,, पैर समझा जाता है,,,, जन्मना भेदभाव किया जाता है, हमारा आरक्षण छीनने का प्रयत्न हो रहा है,,,,?
हम कोई हिन्दू विन्दू नहीँ, हम मूलनिवासी हैं, हम दलित हैं,,,,,, सब जगह दलित है, वे सब हमारे भाई हैं,
बोलिये दलित एकता जिंदाबाद,,,,,।
*****
******
******
नीचे ये महाभारत चल रहा था।
शिखर की चोटी पर बैठा #बर्बरीक विवश भाव से यह सोच रहा है कि #सबके मन में एक सा भाव, एक सी शिकायत, एक सी जलन, एक सा डाह, एक सा विचार आखिर आया कहाँ से??????
अचानक उसको युद्ध भूमि में कुछ सूक्ष्म जीव तैरते दिखे।
उनके हाथ में कुछ इंजेक्शन थे।
वे ब्राह्मणों की चुटिया उखेड़कर वहाँ एक इंजेक्शन लगाते।
क्षत्रिय की छाती पर डॉट मारते,,,, बनिये की तोंद खोलकर उस में दवाई खोंसते और शूद्रों के पिछवाड़े में दवाई की बत्ती बना घुसेड़ रहे होते।
कहने की जरूरत नहीँ कि वे सूक्ष्म जीवी वामपंथी और चर्च थे।
वे हिंदुत्व, संविधान और भारत नामक तीन शानदार व्यंजनों को सड़ाने के लिये नियुक्त थे।
वे किण्वन क्रिया में रत थे।
एक दूसरे को ताली देते देते, परस्पर मुस्करा कर बड़ी सफाई से, व्यवस्थित तरीके से अपना काम कर रहे थे।
सेनाओं के मध्य मध्य कुछ छोटी टुकड़ियां भी जूझ रही थी।
किसी के रथ पर दर्जी लिखा था किसी के जाट, किसी के पाटीदार था किसी के अहीर, किसी के गुर्जर था किसी के जांगिड़, कोई साटिया था कोई कायस्थ कोई कालबेलिया कोई जोगी कोई वनवासी कोई आदिवासी,,,, 
और एक रथ ऐसा भी था जिसके हरे ध्वज पर चाँद तारा अंकित था।
वह उन व्यंजनों के ताजे ताजे हिस्सों को अपने भाले में लपेटकर रथ में खींचता और खाता जाता।
#kss

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें