रविवार, 26 फ़रवरी 2017

बाहुबलि और नाट्यशास्त्र

बाहुबलि और नाट्यशास्त्र
धनञ्जय ने #दशरूपक में नाटक के जिन तत्वों का निरूपण किया है उन्हें #bahubali फ़िल्म के सन्दर्भ में  समझते है।
इसके निर्देशक श्री #s.rajamauli की यह अद्भुत कृति है जो लगभग पचास वर्ष तक उनके भाव जगत में उमड़ती रही।
दस प्रकार के रूपकों में यह #नाटक श्रेणी का रूपक है।
इसका नायक प्रख्यात और क्षत्रिय वंशोत्पन्न दिव्य गुणों से युक्त है।
कथावस्तु इतिहास प्रसिद्ध इसलिए है कि #दशकुमारचरित(दण्डी विरचित) में महिष्मति नगरी का वर्णन है।यह अलग बात है कि हम लोग उससे परिचित नहीं है, वृहत् कथा मञ्जरी में इसके कथानक उपस्थित होने से और महाभारत की उपजीव्यता के कारण इसे प्रसिद्ध कहना युक्तियुक्त है।
बाहुबलि के प्रथम भाग में शिवा की कथा आधिकारिक है जबकि अवन्तिका की कथा #पताका श्रेणी की है।
कालिकेय की कथा #प्रकरी श्रेणी की है क्यों कि वह बीच में ही समाप्त हो जाती है।
बीज, बिन्दु, पताका,प्रकरी और कार्य नामक पांच अर्थप्रकृतियां कही गई है।
देवसेना की मुक्ति कार्य है।
इस हेतु अवन्तिका के समूह के प्रथम वार्तालाप में बीज के दर्शन होते है।
फल की इच्छा वाले व्यक्ति के द्वारा आरम्भ किये गये कार्य की पांच अवस्थाएं होती है।
1,आरम्भ
2,यत्न,
3प्राप्त्याशा,
4,नियताप्ति,
5,फलागम
पांच अवस्थाओं से समन्वित होकर पांच अर्थप्रकृतियां ही क्रम से मुख इत्यादि पांच सन्धियां बन जाती है।
वे क्रमशः मुख, प्रतिमुख, गर्भ, अवमर्श और उपसंहृति हैं।
इनके क्रमशः 12, 13, 12, 13, और 14 भाग होते है।
इस प्रकार पांचों सन्धियों के कुल 64 भाग होते है, जिनका पालन करने से कोई भी नाटक, महानाटक बन जाता है।
इनके क्रमशः नाम है,,,,
1.उपक्षेप-बीज को शब्दों में रखना ही उपक्षेप है।जैसे बाहुबलि में विद्रोही सरदार जब कहता है, "उन्होंने महिष्मति की मर्यादा महारानी देवसेना को बेड़ियों में जकड़ कर चौराहे पर रखा है।"

2.परिकर-उस बीज की वृद्धि ही परिकर है।
सरदार का यह कथन कि "उस देवसेना की मुक्ति ही हमारा लक्ष्य है।" परिकर नामक सन्ध्यंग है।

3.परिन्यास-उस बीज का अंकुरण ही परिन्यास है। जब अवन्तिका कहती है "सरदार! क्या महाबलि कटप्पा हमारा सहयोग नहीं कर सकते?"

4.विलोभन- गुणों का वर्णन ही विलोभन है। जैसे सरदार कटप्पा की स्वामिभक्ति और निष्ठा की प्रशंसा करता है।

5.युक्ति-प्रयोजनों का निर्णय ही युक्ति है।
जैसे अवन्तिका को सौंपे गये लक्ष्य को शिवा अपना ही प्रयोजन बना लेता है।

6.प्राप्ति-बीज के सम्बन्ध से सुख का प्राप्त होना ही प्राप्ति है।एक लक्षयी, अवन्तिका और शिवा दोनों सुख अनुभव करते हैं।

7.समाधान-बीज का आगमन ही समाधान है।
जब अवन्तिका सरदार को शिवा के बारे में आश्वस्त करती है तो यही समाधान है।

8.विधान-सुख और दुःख दोनों को उत्प्नन करने वाला विधान कहलाता है। जब देवसेना को बेड़ियों में जकड़ा दिखाकर भी उसके रौद्र रूप का दर्शन करवाया जाता है।

9.परिभावना- अद्भुत भाव का समावेश होना ही परिभावना है।
महिष्मति नगर के वर्णन क्रम में इसे समझना चाहिए।

10.उद्भेद- किसी गूढ़ बात को प्रकट करना ही उद्भेद है। जैसे यह कहना कि कटप्पा सहृदय है और देवसेना को मुक्त करवाना चाहता है।

11.करण-प्रस्तुत कार्य का आरम्भ करना करण कहलाता है। शिवा का नगर प्रवेश और उद्योग ही करण है।

12.भेद- प्रोत्साहन को भेद माना गया है। भल्लाल देव की प्रतिमा खड़ी करने में शिवा का प्रोत्साहन ही भेद है।

ये 12 भेद मुख नामक सन्धि के है।
अब प्रतिमुख सन्धि के 13 अंगों का वर्णन करते है।
1.विलास- रति की इच्छा ही विलास है। देवसेना और भल्लाल के वार्तालाप में इसे समझना चाहिए।
2.परिसर्प- पहले देखे गये और फिर नष्ट हुए बीज का अन्वेषण परिसर्प कहलाता है।
अचानक बहल्लाल का तेज बल सामने आने पर ऐसा होता है। बैल के घुटने टेकने के क्रम में।

3.विधूत-बीज की चिन्ता में सुखप्रद पदार्थों के प्रति अरुचि ही विधूत है।
4शम- उस अरति की शांति ही शम है।

5नर्म-परिहास युक्त वचन ही नर्म है।
6.नर्मद्युति-उस परिहास से उत्प्नन धृति ही नर्म द्युति है।
(क्रमशः)

1 टिप्पणी:

  1. दशरूपक के आधार पर महानाट्य बाहुबलि का विवेचन प्रशंसनीय है।

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