गुरुवार, 2 मार्च 2017

बाहुबलि और नाट्यशास्त्र भाग 2

बाहुबलि और नाट्यशास्त्र भाग 2
क्रमशः अगले सन्ध्यंगों का वर्णन करते है।
गत अंक में प्रतिमुख नामक दूसरी नाट्य सन्धि के 6 अंगों के निरूपण के बाद सातवें अंग से आरम्भ करते है।
7.प्रगमन- बीज के सम्बन्ध में उत्तरोत्तर वचन ही प्रगमन है।
जैसे अवन्तिका का यह कथन कि मेरा शिवा देवसेना को जरूर छुड़ा लाएगा,,,,, यहाँ से लेकर  बाहुबलि शिवा के नगर प्रवेश तक प्रगमन सन्धि अंग है।

8.निरोधन-हित का रुक जाना ही निरोधन है। जैसे भारी सुरक्षा कवच में शिवा का फंस जाना ही निरोधन है।

9.पर्युपासन-क्रुद्ध व्यक्ति को मनाना ही पर्युपासन है।
जैसे भल्लाल देव की प्रतिमा स्थापना में बाहुबलि के जयकारे सुन कर भल्लाल देव अपना आपा खो देता है। तब भद्रा द्वारा आश्वस्ति वचन कि पहरेदारों को बुलाकर पूछते है कि सबसे पहले बाहुबलि का नाम किसने लिया,,,,, यहाँ पर्युपासन है।

10.पुष्प-बीजोद्घाटन में विशेषता युक्त कथन ही #पुष्प है।
देवसेना का यह कथन कि महिष्मति,,,!! मेरा बेटा आ गया है,,,,,, यहाँ पुष्प नामक सन्धि अंग है।

11.उपन्यास- उपाय सहित हेतु प्रदर्शक कथन ही उपन्यास है।
देवसेना से कटप्पा का यह आग्रह कि "राजमाता जल्दी कीजिए, मै आपको छुड़ाने आया हूँ, इससे पहले कि पहरेदार आ जाएं आपको यहाँ से मुक्त करता हूँ,,,," यहाँ उपन्यास नामक सन्धि अंग है।

12.वज्र-प्रत्यक्ष रूप से निष्ठुर कथन ही वज्र कहलाता है।
देवसेना-"मेरा लकड़ियाँ बटोरना तुम्हें पागलपन लगता है,,, कटप्पा,,,,!!!" इस प्रकार निष्ठुर वचन कहने से यहाँ वज्र नामक सन्ध्यंग है।

13.वर्णसंहार- ब्राह्मण आदि चारों वर्णों का एकत्रित होना ही वर्णसंहार है।
भल्लाल देव की प्रतिमा स्थापना समारोह में यह दिखती है।

इसके बाद तीसरी, गर्भ सन्धि के 12अंगोंका वर्णन करते है। #गर्भ में बीज अर्थात् चरम लक्ष्य की प्राप्ति और अप्राप्ति की ऊहापोह होती है। संघर्ष तेज हो जाता है। कार्य जल्दी जल्दी होने लगते है। इसमें कभी कभी पताका नामक छोटी उपकथा जुड़ भी जाती है कहीं कहीं नहीं भी जुड़ती। इसके क्रमशः अंग

1.अभूताहरण-प्रासंगिक विषय से सम्बंधित छलपूर्ण कार्य ही अभूताहरण है।
जैसे बाहुबलि शिवा का नगर में वेश बदल कर प्रवेश और वंचना देना।

2.मार्ग-प्राकृत बात के सन्दर्भ में यथार्थ बात का कथन ही मार्ग कहलाता है।
जैसे भल्लाल के वृद्ध पिता का यह कथन कि लोगों के मन में दबी बात बाहर आई या फिर उन्होंने कुछ देखा?,,,,असम्भव,,,,",,,,इत्यादि।

3.प्राप्ति की आशा में वितर्क से युक्त कथन को रूप कहते है।
जैसे भल्लाल "वे आँखें,,,,, मुझे वह जीवित चाहिए,,,," इत्यादि सम्वाद।

4.उदाहरण-प्राप्त्याशा से सम्बंधित उत्कर्षयुक्त कथन उदाहृति है।

5.क्रम-सोची हुई वस्तु की प्राप्ति क्रम कहलाती है। देवसेना को ले जाने के क्रम में रथ प्रस्तुत करके इसकी योजना की गई है।

6.संग्रह-प्राप्त्याशा से सम्बंध साम और दान से युक्त कथन ही संग्रह है।जैसे "तुममें से सबसे पहले उसका नाम लेते किसने देखा?"
"मैने देखा महाराज!"
स्वयं नायक द्वारा कहे इस कथन में ।

7.अनुमान-किसी चिह्न से किसी बात का निश्चय करना अनुमान कहलाता है।
बेड़ियों में जकड़ी देवसेना की पहचान अनुमान से ही होती है।

8.अधिबल- वंचना या अभिसन्धि, अधिबल कहलाता है। एक सैनिक के वस्त्र पहन अन्तःपुर में घुसना अधिबल है।

9.तोटक-आवेगपूर्ण वचन ही तोटक है।
भल्लाल देव के पुत्र भद्रा द्वारा देवसेना को दुर्वचन कहे जाते है, फलस्वरूप घायल नायक में स्फूर्ति आ जाती है।

10.उद्वेग-शत्रु से उत्पन्न भय उद्वेग कहलाता है। "कटप्पा मुझे बचा लो,,,, यह मुझे मार ही डालेगा " इत्यादि भद्रा की युद्ध प्रसंग में उक्ति।

11.सम्भ्रम-शंका और त्रास को सम्भ्रम कहा गया है। नायक से कटप्पा की लड़ाई में कटप्पा के साथ ऐसा ही होता है।

12.आक्षेप-गर्भ के बीज का प्रकटन ही आक्षेप है। विद्रोही सरदार की यह उक्ति "वे देवसेना के लिए आ रहे है,,,,, रोको उन्हें,,,,!"
इस प्रकार गर्भ नामक तृतीय सन्धि के अंग पूरे होते है।
क्रमशः शेष दो सन्धियों पर आगे लिखेंगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें