रविवार, 26 जुलाई 2015

मिडिया अजगर

स्तरहीन, घटिया मानसिकता वाले गिरे हुए लोगों को देखना है है तो भारतीय मिडिया में बैठे लोगों से बढ़कर आपको कोई न मिलेगा।
न जाने, अपने को किस लोक का प्राणी मान ये लोग जी रहे है?
जी क्या रहे है...लगभग रेंग रहे है। अपने ही माँस को उधेड़ कर बेच रहे है। अपनीबुद्धि के दिवालिये  का डिंडिम घोष कर रहे है।
लगभग एक हजार शब्दों की डिक्शनरी को ही बार बार पारायण कर तज्ञ विज्ञ होने की नोटँकी कर रहे है।
जैसे किसी बदनाम बस्ती की औरतेँ दिन को मिलने के समय शराफत का आवरण पहन कुछ भारी शब्दों की परस्पर जुगाली करती है ताकि रात्रि जनित पापकर्म की कुंठा कुन्द हो सके, वैसे ही ये भारतीय जनता के एक बड़े वर्ग की नजर में स्वयम् को जैसे तैसे निर्दोष होने की स्थापना की स्थापना में है।
जैसे किसी कुटिल मदारी के सामने पालतू बन्दरिया, कुछ रूटीन के करतब निपटाती है वैसे ही ये अपने चैनल मालिकों के हन्टर से त्रस्त, दिन भर कुछ न कुछ निरर्थक में व्यस्त रहते है।
जैसे कोई नोसिखिये गायक, कहीं से भी दाद न मिलने पर परस्पर अहो रूपम् अहो ध्वनि का मुशायरा सजाते है वैसे ही ये लोग एक दूसरे की बासी उल्टी को परम् ज्ञानामृतं मान अवलेह करते रहते है।
जैसे कुछ टपोरी नित्य पिटने के बाद भी आपस में डींगें हाँकते है वैसे ही ये हर समय सशंकित हो भीत हिरणी बने अपनी ही बड़ाई में व्यस्त रहते है।
जैसे कुछ अंधे, किसी नव पाखण्डी के धूर्त प्रलाप को ब्रह्मज्ञान समझ, निरन्तर उससे बलात्कार को आतुर रहते है वैसे ही ये राष्ट्रद्रोह को ही राजनीति मान उनके गुणगान में रत रहते है।
जैसे तड़पते जीव की अंतिम श्वांस के प्रेक्षक गिद्ध की दृष्टि चमक जाती है, वैसे ही किसी भी दुर्घटना पर इनके कैमरे एक्स रे में बदल जाते है।
प्रस्तुत है इसका अंतिम समाधान
जैसे कोई विशाल अजगर, नाना जीवों के भक्षण से अपने ही स्थूल आकार से श्लथ हो, वार्धक्य जनित मांसपेशी बल से वियुक्त, तंद्रिल हो मृत्यु की प्रतीक्षा में रहता है और किसी दिन पेट में मौजूद आंतरिक परजीवियों के सबलन से रुग्ण होने पर जंगली चींटियों के अचानक आक्रमण से एक एक अंग के छिलते जाने से क्रमशः मृत्यु का इंतजार करता है और अत्यंत दैन्यवस्था को प्राप्त हो शनेः शनेः इस संसार को उसी सन्सरण अवस्था में छोड़ प्रयाण कर जाता है वैसे ही शोशल मीडिया के उदीयमान होने पर घर के तपड़ बेच, समापन की ओर बढ़ रहा है।
#kss

सोमवार, 20 जुलाई 2015

लवस्टोरी

एक नामी होटल का रूम बॉय, ट्रैन से अपने घर को जा रहा था। कुछ तेज तो था ही, अभिजात्य वर्ग की निकटता से कई टोटके भी सीख गया था। लम्बा और उबाऊ सफर कैसे कटे इसका उपक्रम कर रहा था।
उसी कम्पार्ट में एक कॉलेज की महिला प्रोफेसर भी सफर कर रही थी।किसी दूरस्थ एकाकी कोने में नियुक्त होने से हर समय दूसरों से तुलना करने वाली और अपनी प्रतिभा का उपयोग न होने से असन्तुष्ट।
लड़के ने अपनी अभिजात्य व्यवहार की समस्त प्रतिभा का उपयोग करते हुए आखिर मेम को बातचीत के लिए मना ही लिया।और बातचीत की गाड़ी ज्यों ही सेकण्ड गियर में आई, खुद का परिचय एक बड़े लेखक के रूप में दिया।
बस फिर क्या था....गाड़ी सीधे टॉप गियर में आ गई। अविश्वास का कोई कारण नहीँ था क्यों कि छोरा कई सनकी लेखकों की बड़ी सूक्ष्म परिचर्या कर चुका था और एक्टिंग में नम्बर वन था।
दो घण्टे मजे में बीत गए और जब कुछ जलपान की स्थिति बनी तो दोनों ही हिचक गए।  थोड़ी सी बहानेबाजी कर इधर उधर हो लिए।
खा पीकर वापस बैठे तब दोनों ही कुछ उधेड़बुन में व्यस्त थे।पहले लड़के वाली कल्पना सुनिए
बात जान पहचान, प्यार, शादी और बच्चों की संख्या तक पहुंच गईं थी पर जब नींव की कमजोरी का भान हुआ तो वह ठिठक गया। कल्पना के घोड़े को लगाम दे, बीच में उस सीन को फिट करने की कोशिश में लग गया जब मेम को "सब कुछ सच" बताकर भला मानुस बनेगा और पछतावे के आंसू बहायेगा।
अभी...? अरे नहीँ! अभी तो काफी टाइम पास करना है। एक सप्ताह बाद?  या फिर एक माह या फिर जब तक जैसे चले वैसे ही...?
ओह....अब मै क्या करूँ? मुझे शुरू में ही सच बोलना था।.....वगैरह2
उधर मेम की कल्पना बड़ी सपाट थी।
एक किताब लिखना।छपवाना। विमोचन। भूमिका में ही लेखक महोदय का आभार जताएगी। साथी प्रोफेसरों में मान बढ़ेगा। लड़कियों को भी पता चलेगा मै क्या हूँ....!  और एक तुम लोग हो कि कुछ सीखना ही नहीँ चाहती....! ढीठ कहीँ की...सबकी सब...अरे यही तो उम्र है टेलेंट पहचानो...देखो कि तुम्हें किसका सानिध्य मिल रहा है?
पहचान बढ़ेगी तो काम भी आएगा।
मै तो फ़िल्म स्टोरी लिखूँगी।
लिखूंगी....क्या..जो लिखी हुई पड़ी है वो सब बिक जाएगी। वो...#चिंचणी वाली स्टोरी...! क्या गजब कथानक है? जो भी निर्माता लेगा मालामाल होगा। जयप्रकाश की समीक्षा छपेगी.... प्रोड्यूसर पूछेगा "मेम! धारवी का रोल किसको दूँ...?"
धारवी का रोल जो भी करेगी...सुपर डुपर स्टार होगी। हो सकता है सम्वाद भी मै ही लिखूँ.....! डबल ट्रिपल कमाई। पति पूछेगा.....अरे....तो इनके पति देव भी है।
बेचारा लेखक?
गाड़ी अब उस गुफा में प्रवेश कर गई है जहाँ आगे the end आ गया है और मुड़ने की जगह नहीँ।
रिवर्स गियर....लगाओ।
लव स्टोरी समाप्त।
यात्रा भी समाप्त।
#kss

रविवार, 5 जुलाई 2015

वृद्ध

"जब तक यह दिव्य पुरुष जिन्दा है....अश्वत्थ वृक्ष हरा रहेगा। झरना बहता रहेगा। वर्षा होती रहेगी.......!"
इस आकाशवाणी को सुनकर  श्री "र" नाम के व्यक्ति ने सोचा.....ओह! यद्यपि समय कम है और दिव्य पुरुष मृत प्राय है, तथापि इसे बचाने के प्रयत्न करने चाहिए।
श्री "र" लग गए।अपनी समस्त शक्ति के साथ। रात-दिन एक करके, भूख प्यास पर विजय पाकर, सुख निद्रा को तिलांजलि दे, परिवार की अवहेलना कर, शीत-ग्रीष्म की गणना से विरक्त, समस्त सुविधाओं से परांमुख हो, दूसरों के उपहास सहन कर, सज्जनों की निष्क्रियता से आहत हुए बिना, विरोधियों के व्यंग्य प्रहार से विचलित न होते हुए......सचमुच....ब्रह्मा के सृष्टि निर्माण पश्चात् यह अद्भुत परिश्रम का अनुष्ठान...प्रथम बार हो रहा था।
और चार पांच गिद्ध, उनमने से अश्वत्थ की डाली पर बैठे दिव्य पुरुष की अंतड़ियोँ का इंतजार कर रहे थे।
झरने की पहाड़ी के शिखर पर कुछ भेड़ियों की आँखों में चमक थी।
बिलों में बैठे नाग अपने विषदंत तीखे कर रहे थे।
यहाँ तक कि मृत भक्षी रेंगने वाले कीडों को भी दिव्य पुरुष से "आशा" थी।
और तो और......
श्री "र" की परिचर्या से कुछ कुछ स्पंदित होते और चेतन होते, दिव्य पुरुष के अंग भी इस गुमान में थे कि यह चेतना मेरी कोशिश का परिणाम है।
हाथ का दावा था कि समस्त उत्थान का भूत भविष्य मेरा है तो सिर कुछ और ही सेटिंग में व्यस्त था।
पेट ने खराब होने का ढोँग रच रखा था तो पैर अपने को जननेन्द्रिय वाली जगह फिट करने की जुगत में लगे थे।
बड़ी अजीब सी स्थिति।
कमजोर परिवार की कलह के समान सारे अंग, एक दूसरे को ही ऊँचा नीचा बताने की जुगत में थे।
यह देखकर  "गिद्ध से कीड़ों" पर्यन्त समस्त वर्ग को ख़ुशी हुई।
श्री "र" फिर भी लगे है। अचेतावस्था के बहाने कभी हाथ का झापड़, तो कभी पैर की लात भी लगती। नाक से झरता कफ श्लेष्मा भी साफ करना पड़ता तो हर घण्टे डायपर बदलना पड़ता।
कभी मालिश हो रही है तो कभी केश संवारे जा रहे है।
और....श्री "र" की हालत.....? निद्रा, अपमान,थकान, पीड़ा, घात,आघात, सहित इस घोर कर्म से जब थकते तो एक क्षण को ऊपर की ओर ताकते.....!
डाल पर बैठा गिद्ध संकेत करता...."क्यों फालतू मथाफोड़ी कर रहे हो? आखिर तो मुझे ही देना पड़ेगा।"
#kss (6-7-15)