स्तरहीन, घटिया मानसिकता वाले गिरे हुए लोगों को देखना है है तो भारतीय मिडिया में बैठे लोगों से बढ़कर आपको कोई न मिलेगा।
न जाने, अपने को किस लोक का प्राणी मान ये लोग जी रहे है?
जी क्या रहे है...लगभग रेंग रहे है। अपने ही माँस को उधेड़ कर बेच रहे है। अपनीबुद्धि के दिवालिये का डिंडिम घोष कर रहे है।
लगभग एक हजार शब्दों की डिक्शनरी को ही बार बार पारायण कर तज्ञ विज्ञ होने की नोटँकी कर रहे है।
जैसे किसी बदनाम बस्ती की औरतेँ दिन को मिलने के समय शराफत का आवरण पहन कुछ भारी शब्दों की परस्पर जुगाली करती है ताकि रात्रि जनित पापकर्म की कुंठा कुन्द हो सके, वैसे ही ये भारतीय जनता के एक बड़े वर्ग की नजर में स्वयम् को जैसे तैसे निर्दोष होने की स्थापना की स्थापना में है।
जैसे किसी कुटिल मदारी के सामने पालतू बन्दरिया, कुछ रूटीन के करतब निपटाती है वैसे ही ये अपने चैनल मालिकों के हन्टर से त्रस्त, दिन भर कुछ न कुछ निरर्थक में व्यस्त रहते है।
जैसे कोई नोसिखिये गायक, कहीं से भी दाद न मिलने पर परस्पर अहो रूपम् अहो ध्वनि का मुशायरा सजाते है वैसे ही ये लोग एक दूसरे की बासी उल्टी को परम् ज्ञानामृतं मान अवलेह करते रहते है।
जैसे कुछ टपोरी नित्य पिटने के बाद भी आपस में डींगें हाँकते है वैसे ही ये हर समय सशंकित हो भीत हिरणी बने अपनी ही बड़ाई में व्यस्त रहते है।
जैसे कुछ अंधे, किसी नव पाखण्डी के धूर्त प्रलाप को ब्रह्मज्ञान समझ, निरन्तर उससे बलात्कार को आतुर रहते है वैसे ही ये राष्ट्रद्रोह को ही राजनीति मान उनके गुणगान में रत रहते है।
जैसे तड़पते जीव की अंतिम श्वांस के प्रेक्षक गिद्ध की दृष्टि चमक जाती है, वैसे ही किसी भी दुर्घटना पर इनके कैमरे एक्स रे में बदल जाते है।
प्रस्तुत है इसका अंतिम समाधान
जैसे कोई विशाल अजगर, नाना जीवों के भक्षण से अपने ही स्थूल आकार से श्लथ हो, वार्धक्य जनित मांसपेशी बल से वियुक्त, तंद्रिल हो मृत्यु की प्रतीक्षा में रहता है और किसी दिन पेट में मौजूद आंतरिक परजीवियों के सबलन से रुग्ण होने पर जंगली चींटियों के अचानक आक्रमण से एक एक अंग के छिलते जाने से क्रमशः मृत्यु का इंतजार करता है और अत्यंत दैन्यवस्था को प्राप्त हो शनेः शनेः इस संसार को उसी सन्सरण अवस्था में छोड़ प्रयाण कर जाता है वैसे ही शोशल मीडिया के उदीयमान होने पर घर के तपड़ बेच, समापन की ओर बढ़ रहा है।
#kss
रविवार, 26 जुलाई 2015
मिडिया अजगर
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