मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

सम्विधान पर नमो का राज्यसभा में भाषण

यह भाषण उन्होंने राज्यसभा में दो दिनों की सम्विधान बहस 125 वींजयंती बाबा साहब अम्बेडकर, के उपलक्ष में दिया।
दिनांक 1दिसम्बर 2015
सम्विधान पर पहली सार्वजनिक चर्चा का श्रेय 2008 की महाराष्ट्र कांग्रेस सरकार को है।
इस देश में हर किसी के सकारात्मक योगदान रहे है, तभी तो देश और व्यवस्था चल रही है।

इस मामले में पक्ष-विपक्ष से हटकर #निष्पक्ष भी होना चाहिए।
हमने अम्बेडकर जी के उपहास और निंदा को बहुत देखा है, पर हमें उनके कृतित्व के प्रति नतमस्तक होना चाहिए।
अच्छी बातों का बार बार स्मरण हमारी परम्परा रही है। निरन्तर अभ्यास से पत्थर पर भी रस्सी पर भी निशान पड़ते है।
हमें सम्विधान पर उसकी मूल भावना के अनुरूप पुनः 2 चर्चा करनी चाहिए।
"क्या ये देश चल पाएगा?" यह प्रश्न 1947 में भी आया था।और हमने चलाकर दिखाया।
हम यहाँकानून बनाने आए है, तू तू मै मै करने नहीँ।
हम लगातार सम्विधान के प्रकाश में अपडेट होते रहते है। बहस तो 1947 में भी हुई होगी पर सहमति से यह तय हुआ है।
राज्यसभा आवश्यक है - "न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा:"
गोपालस्वामी अयंगर के शब्द याद रखें और भावावेश में कोई निर्णय न करें। वित्त सम्बन्धी मामलों में लोकसभा ही कुछ अधिकार सम्पन्न है।
राज्यसभा कोई केवल अड़ंगा लगाने के लिए नहीँ है। दोनों सदनों के बीच आपसी सहयोग जरूरी है।
वह सभा नहीँ जिसमें वृद्ध न हों।
वह वृद्ध नहीँ जिसमें तप नहीँ हो।
वह तप नहीँ जिसमें धर्म नहीँ हो।
वह धर्म नहीँ जिसमें सत्य नहीँ हो।

यद्यदाचरति श्रेष्ठ: तत्तदेवेतरोजन:!
स यत् प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते!!

हमारे सभी सदस्य खुलकर बहस करें। मर्यादित रहें। जिम्मेदारी से करें।
ऊँचे पदों पर मौजूदा भरष्टाचार समाप्त करना होगा। भाई भतीजावाद नहीँ चलने देना होगा। यह बात एस राधाकृष्ण जी ने 1947 में कही थी।
हमारा सम्विधान सामाजिक मार्गदर्शक भी है।
जब तक समाज सङ्कल्प नहीँ लेता कि हमें बुराइयों से मुक्त नहीँ होना है, समता के सपने में देरी होगी।
न हिन्दू पतितो भवेत्....यह ध्वनि इस सदन में भी गूंजनी चाहिए। पाप प्रक्षालन होना चाहिए।
बिखरने के बहाने तो बहुत हो सकते है, जुड़ने केअवसर ढूंढने चाहिए।
एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना साकार करना चाहिए। सभी राज्य परस्पर एक दूसरे राज्य की कुछ बातों को साझा करे।
कुछ पर्यटन,उत्सव, भाषा, गीत, भजन आदि का आदान प्रदान करें।
पू डॉ बाबा साहब अम्बेडकर, औद्योगीकरण के पक्षधर थे।
"उच्च उत्पादकता और उद्यम उपलब्ध कराना, राज्य की जिम्मेदारी है। अतिरिक्त श्रमिकों को गैर कृषि कार्यों में  नियोजित करना चाहिए।"
"भारत की भूमि सीमित है।हर दशक के बाद जनसंख्या से सन्तुलन बिगड़ जाता है।"
उक्त दो बातें बाबा साहब अम्बेडकर ने कही।

मैक्समूलर कहते है "पृथ्वी का स्वर्ग भारत है।"
हम उस महान् विरासत के धनी है।
भारत नित्य नूतन चिर पुरातन बना रहे।
(जैसा #kss को समझ आया।)

बुधवार, 18 नवंबर 2015

हिन्दी व्याख्याता कैसे बनें?

व्याख्याता हिन्दी की तैयारी निम्न प्रकार से करें।
कुल छह माह की योजना
प्रति दिन 6घण्टे अध्ययन करने से आप निश्चित व्याख्याता बन सकते है।
प्रथम पेपर सामान्य अध्ययन का है। यह सबके लिए समान होगा। इस पेपर का मॉडल पेपर से स्वयम् का एक टेस्ट लें।
यदि आपको उसमे 50% अंक आते है तो आप इस पोस्ट को पढ़ने के अधिकारी है।इससे कम अंक वालों के लिए राह जरा कठिन है।
यदि आपके आधे प्रश्न सही हो रहे है तो आप प्रतिदिन एक घण्टा इस पेपर की तैयारी करें।
इससे अधिक समय इसमें नहीँ देना है। यद्यपि सभी लोग इसी पेपर का भय दोहन कर विद्यार्थियों को कोचिंग आदि के लिए प्रेरणा देते है किन्तु अनुभव यह है कि घनघोर तैयारी के बावजूद इस पेपर में मुश्किल से 5% ही अंक वृद्धि हो पाती है। जब कि यही परिश्रम द्वितीय पेपर में किया जाय तो आपके प्रतिशत वृद्धि 20% तक पहुंच सकती है जो कि आपको सफलता की ओर ले जाएगी।

अब द्वितीय पेपर की बात करते है।

इसका भी स्वयम् परीक्षण करें। गाइड में उपलब्ध मॉडल पेपर की सहायता से अपने टेस्ट लें।
कम से कम 5टेस्ट लें और उनका प्राप्तांक औसत ज्ञात करें।
यदि आपके
90%=निश्चित चयन
70%-90=अल्प तैयारी से ही चयन।
50%-70=पर्याप्त तैयारी से चयन।
50से कम=घनघोर परिश्रम की आवश्यक्ता है।
यह तो हुई तैयारी पूर्व की बात।
आगे तैयारी की बात की जा रही है। आप चाहे जिस श्रेणी के भी हों, आपको यह पोस्ट पढ़नी ही चाहिए।
सबसे पहले निम्न पुस्तकों का संकलन करें जिनमें से अधिकांश आपको आसानी से मिल जाएँगी या आपके आस पास ही होंगी।
पुस्तक सूची-केसरी सिंह सूर्यवँशी
1 हिंदी साहित्य का इतिहास-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल(नगेन्द्र को हरगिज नहीँ पढ़ें।)
2 हिन्दी net/set गाइड -उपकार प्रकाशन(यहाँ भी लक्ष्य या रॉय अथवा राघव प्रकाशन की गलती नहीँ करें।)
3हिंदी प्रथम श्रेणी गाइड-उपकार या मेरठ प्रकाशन
4हिंदी पाठ्य पुस्तक, कक्षा 6से 12
5हिन्दी साहित्य पाठ्य पुस्तक कक्षा 11व12 अंतरा और अंतराल।
6उक्त क्रम संख्या 4और5 की सन्जीव पास बुक्स
7सन्जीव पास बुक बी ए अनिवार्य हिंदी(जो केवल प्रथम वर्ष में ही चलती है।ये म द स वि वि की होनी चाहिए।)
8बी ए पार्ट 1,2,3की हिंदी सन्जीव पास बुक्स, एमडीएस अजमेर कुल 6 पुस्तकें।
9 ma हिन्दी की सभी 9पास बुक्स, एमडीएस और सन्जीव(पुरानी हो तो ज्यादा अच्छा है।)
10साहित्य दर्पण, संस्कृत से हिंदी अनुवाद सहित।
11rpsc द्वारा रिलीज पुराने हिंदी पेपर्स, चाहे किसी भी परीक्षा के हों।
इस साहित्य को यथा शीघ्र ही स्थापित कर लें।

परीक्षा का अंक विभाजन निम्न प्रकार से रहेगा।

12वीं लेवल=55प्रश्न
बी ए लेवल=55प्रश्न
MA लेवल=10प्रश्न
मनोविज्ञान=30प्रश्न

तैयारी निम्न प्रकार से करें।
आपको कुल 4 notbook बनानी है।
12वीं लेवल के लिए=120पृष्ठ
BA/MAलेवल के लिए=120पृष्ठ
मनोविज्ञान के लिए=120पृष्ठ
स्मरणावली=96पृष्ठ।

प्रथम चरण
अपना पाठ्यक्रम जो कि 4 प्रकार से विभाजित है,उसका पुनः विभाजन करें।
विभाजन जितना ज्यादा कर सकते है उतना ही ठीक रहेगा।
मैने केवल 12वीं लेवल के ही 60 खण्ड कर रखे है।
उदाहरण के लिए 12वीं की अंतरा और अंतराल को देखते हुए पाठों की संख्या, उनकी विधा,उन लेखकों का परिचय इस प्रकार प्रत्येक पाठ के तीन खण्ड होते है।
गद्य के 10 पाठ और पद्य के10 पाठ।
इनके साथ अंतराल के4पाठ।
इन 24 पाठोंमें से कुछ पाठ ऐसे है जिनका साहित्य से कोई लेना देना नहीँ।उनका साहित्यिक पक्ष यदि कोई ध्यान आता है तो स्वीकार करें अन्यथा त्याग दें।
यही प्रक्रिया आरोह और वितान के सम्बन्ध में अपनाएं।
इस प्रकार आपको कुल लगभग 60 उपभाग मिलेंगे। जिन्हें आप प्रथम notebook के 120 पृष्ठों में पहले से ही शीर्षक के स्थान पर लिख दे।
प्रत्येक के लिए 2पृष्ठ मिलेंगे।
उदाहरण के लिए इस रजिस्टर के पृष्ठ 1पर प्रेमचन्द और 3पर अमरकांत इसी प्रकार
5हरिशंकर परसाई
7रांगेय राघव
9सुधा अरोड़ा(यह पाठ साहित्य का अंग नहीँ है)
....
....
गद्य भाग पूरा होने पर पद्य भाग
फिर अंतराल और उसके पश्चात 12वीं की अंतरा आदि और आगे पुनः 11वीं12वीं की आरोह वितान के शीर्षक अंकित कर दें।
ऐसा ही बी ए एम् ए की नोटबुक में भी पाठ्यक्रम को 60 भागों में बाँटकर अंकित कर दें।
यही विभाजन मनोविज्ञान का भी करके नोटबुक में अंकित कर दें।
इस प्रकार तैयारी का यह प्रथम चरण सम्पन्न होता है।

द्वितीय और महत्त्वपूर्ण चरण
अब आपको अपनी पढ़ाई आरम्भ कर देनी है।
प्रत्येक पुस्तक को नहीँ पढ़ना है।
आपको अपनी पसन्द के टॉपिक पढ़ते जाना है और सम्बंधित नोटबुक के पृष्ठ पर व्यवस्थित रूप से नोट्स रूप में लिखते जाना है।
उदाहरण के लिए
यदि आप अंतरा भाग 1 के पद्य का पाठ..."महादेवी वर्मा" पढ़ रहे है तो प्रथम नोट बुक के पृष्ठ 27 पर उनके बारे में जो जाना है उसे अंकित कर दें।
यहाँ कवयित्री का जीवन परिचय, उनकी कृतियां,पुरस्कार आदि लिखने के बाद उनकी दोनों कविताओं 1जाग तुझको दूर जाना और 2 सब आँखों के..... में व्यक्त छन्द, अलंकार बिम्ब, भाषा शैली, सम्बंधित काव्य विधा, तत्कालीन वाद, समकालीन कवियों से तुलना आदि सभी बातें संक्षिप्त लिख दें।
उसके बाद कक्षा 6से 10 तक की पुस्तकों में यदि उक्त साहित्यकार का अन्य कोई पाठ आया है तो उसको ढूंढ कर पढ़ें।
वहाँ भी यदि कोई विशेष बात लगती है तो उसे भी लिख दें।
यदि कोई ऐसी सामग्री है जिसे कण्ठस्थ करना जरूरी है तो उसे चौथी nootbook में अंकित कर दे।।

इस प्रकार यदि विषय कठिन लग रहा है और स्पष्ट नहीँ हो रहा है तो अन्य पुस्तकों और पास बुक्स का सहारा लें।
इस प्रकार प्रतिदिन अध्ययन करने से आप बोर भी नहीँ होंगे और तैयारी भी होती रहेगी।
जिन पाठ्यांशों को रटना जरूरी है उन्हें चौथी नोटबुक में लिखते जाएं। जहाँ लिख रखा है वहाँ संक्षिप्त में प्रकरण और किस ग्रन्थ लेखक की रचना है वह भी लिखते जाएं।
मात्र तीन ही माह में 80%पाठ्यक्रम पूरा हो जाएगा और तब आपको केवल कठिन अंशों को ही पढ़ना होगा।
काव्यशास्त्र पर ध्यान देना शुरू करें और स्मरणावली नामक चतुर्थ नोटबुक का नित्य परायण करते रहें।
रोज पारायण करने से सहजता से बहुत सी काव्यात्मक बातें कण्ठस्थ हो जाएँगी और अतिरिक्त दबाव भी नहीँ पड़ेगा।
इस सारे अध्ययन के केंद्र में शुक्ल की पुस्तक को ही रखें।उसी क्रम का अनुसरण करें।
गाइडों का उपयोग केवल पैटर्न देखने अथवा स्वयं का परीक्षण करने के लिए करें।
गाइड और पास बुक्स को कभी भी अंतिम सत्य नहीँ मानें।
न ही किसी से प्रभावित हों। नकारात्मक वातावरण से दूर रहें।
पर्याप्त नींद लें।
टीवी कम से कम देखें और कभी भी अध्ययन के समय अपने पास फोन नहीँ रखेँ।
काव्यमय जीवन बनाएं।
सभी कार्यों की एक नियमित दिनचर्या बना दें।
दूषित विचार और दूषित लोगों की संगति से सर्वथा दूर रहें।
पतंजलि की मेधावटी,ब्राह्मी और बादाम का प्रयोग करें।
गो दुग्ध का उपयोग करें।
जब कार्य शुरू हो जाए और कोई कठिनाई हो तो यहाँ ब्लॉग में कमेंट में लिख कर पूछ सकते है।
जब पाठ्यक्रम के सभी भाग पूरे हो जाएं तो अंतिम छठे माह में प्रतिदिन स्वमूल्यांकन करें।
पता करें कि कहाँ कमी रह रही है?
उसे ठीक करें।
अंतिम दिनों में इत्मीनान से कठिन अंशों का पुनः परिशीलन करें।
हाँ स्मरणावली का नित्य पाठ करते रहें।
उसे बढ़ाते जाएं।
प्रतिनिधि लेखकों और उनकी रचनाओं को पढ़ने का भी आनन्द लें।
और
अंततः आप नियत दिन परीक्षा देने जाएं।
आप पाएंगे कि आप 90% पार कर गए हो और यहाँ आपको हिंदी व्याख्याता बनने से कोई रोकने वाला नहीँ।
नौकरी का आनन्द लीजिये और परोपकार भाव से दूसरों की भी सेवा कीजिए।
केसरी सिंह सूर्यवँशी।
(टिप्पणी जरूर दें कोई जिज्ञासा हो तो भी पूछ सकते है।)

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

सोम

कहा तो था....
गांव में
#सोम बोलने पर सुख मिलेगा।
और
#स्वान बोलने पर दुःख।

कई दिन
रटते रहे सभी
सोम सोम सोम।
हाँ
सोम सोम सोम।

और सुख ही सुख था।
चारों ओर।
ननकू सुखी।
हीरा माँ भी सुखी।
अमरा सूरा निर्जरा भी सुखी।
गोकुल के ग्वालन के गोप भी सुखी।

एक दिन #जीके वाले सर आए।
कहा याद करो #सबकुछ।
रोज पांच सवाल याद किया करो।
और ननकू तू पूछेगा भी।

"क्या बोलने से सुख और क्या बोलने से दुःख?"
यह पांचवा प्रश्न था।

उत्तर
सोम बोलने से सुख और स्वान बोलने से दुःख।

क्या....?
स्वान बोलने से दुःख?
नहीँ बोलेंगे स्वान।
ननकू! अब स्वान मत बोलना।
हीरा माँ!! स्वान कभी मत बोलना।
अरे बेटा... ऊँचा सुनती हूँ....क्या कह रहा है?
बुढ़िया!! स्वान मत बोलना।
गत बिगड़ेगी।
ओह! नहीँ बोलूंगी स्वान।

सुनो सुनो सुनो!!  स्वान मत बोलना।
अरे ये कौन चिल्ला रहा है...?  "स्वान स्वान"
अजरा बोला -"सूरा कह रहा है, स्वान!"
सूरा- मैने कब कहा स्वान?
तो निर्जरा ने कहा होगा स्वान!!

स्वान मत बोलो....
ऐसा कानून बनाओ।
स्वान बोलना निषिद्ध है।
दुकानों पर पट्ट लगा है "हमारे यहाँ स्वान नहीँ बोला जाता।"

बैंक की दीवार पर लिखा है "हमें ख़ुशी होगी, यदि आप स्वान नहीँ बोलेंगे तो।"
मेले में भोंपू पर बीच बीच में उद्घोषणा होने लगी
"कृपया स्वान नहीँ बोलें।"

स्टेशन पर "यात्री गण कृपया ध्यान दें---कोई भी स्वान नहीँ बोलेगा।"
एक बच्चा चिल्लाया "मम्मी!  क्या नहीँ बोलना!"
आंटी ने समझाया "बेटे स्वान"

प्रेमी बोला "मेरी जिंदगी का वो आखिरी दिन होगा जब मै स्वान बोलूंगा।"

स्वान नहीँ बोलने पर परिचर्चाएं हो रही है।
टीवी में स्वान।
मस्जिद के तब्सरे में स्वान।
अख़बार में स्वान।
चाट खाते हुए कागज के टुकड़े पर स्वान।

मन्दिर में स्वान बोलने से होने वाली हानि पर प्रवचन चल रहे है।
स्कूल की प्रार्थना सभा में भी स्वान पर निर्देश दिए जाते।

विपक्ष के नेता मिले,
सरकार स्वान विषयक मामले गम्भीरता से नहीँ ले रही।
यू एन ओ ने स्वान निषेध दिवस घोषित किया।

छिपे केमरों से स्वान बोलने वालोँ के स्टिंग होने लगे।
trp में स्वान नम्बर एक हो गया है।

बस में एक ताऊ कह रहे थे "ये जो सभी लोग दुःखी है न, इसका कारण यही है कि स्वान बोला जा रहा है।"
अचानक बस ने हिचकोला खाया...!

और सभी यात्री फुसफुसाए "सोम!....सोम!!"
#kss

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2015

महादेव

परिवार और जगत से परेशान एक लड़का दर दर की ठोकरें खा रहा था।
वह गायक था पर उसका कोई लोहा नहीँ मान रहा था।
रँगमञ्च की राजनीति और अंदरुनी गुटबाजी की दुरभि सन्धि टूट नहीँ पा रही थी।
भटकाव, फाके, उत्पीड़न और अकेलेपन ने उसके भीतर के संगीत को और सम्वेदनशील और सूक्ष्म बना दिया।

उन्हीं दिनों सादड़ी के पास, #परशुराम_महादेव मन्दिर में हर वर्ष होने वाली भजन-प्रतियोगिता के बारे में सुना, जिसमें विशाल जन समूह के सामने अपनी कला प्रदर्शन के साथ साथ एक बड़ी पुरस्कार-राशि भी दी जाती थी।

अत्यंत दैन्यवस्था में , ढलती रात की नीरवता और अपने जीवन के अंधकार से एकाकार हो उसने एक भजन लिखा, जो भावी कार्यक्रम में गाया जाना था।
#जोगीड़ा_जोगीड़ा_रमता_जोगी____नगर_में_जोगी_आया।
और उसे राग #शिवरंजनी में कम्पोज भी कर लिया।

नियत दिन जैसे तैसे एंट्री करवा वह भजन गाने बैठा।
प्रथम आलाप में ही जन समूह ने उसका भव्य उत्साह वर्धन किया!!
और जब गायन शुरू हुआ तो जैसे समां बन्ध गया!!
क्या आयोजक.....क्या भक्त??
क्या निर्णायक.....और क्या तो अन्य कलाकार......जैसे सभी शिव नाद से सम्मोहित हो गए हों।

ठण्डी होती ढलती रात के साथ, दीपक राग के कारुणिक आलाप....अरावली के पर्वतों को बींधते हुए फिजां में गूंजने लगे।
कृष्ण के शिशु रूप दर्शन हेतु आए भोलेनाथ के योगी रूप के इस कथानक के गायन में उसने अपनी पूरी प्रतिभा झोंक दी!!

और .............वातावरण तथा प्रतिक्रिया देखकर वह समझ तो गया कि मै ही जीत रहा हूँ। एक लाख के नगद पुरस्कार से साजो सामान और अपनी मण्डली तो खड़ी कर ही सकता हूँ।

सफलता केइन चरम क्षणों में उसे अचानक स्वयं का घर से निकाला जाना, मित्रों का तिरस्कार, वरिष्ठ कलाकारों द्वारा किया गया अपमान....गत दिनों की भीषण यंत्रणाएं, #आत्महत्या का विचार, और गत तीन वर्षों के भटकाव के एक पीड़ादायी गोले ने आकर कण्ठ को रुद्ध कर दिया!!
वाद्य बज रहे थे!!
रिदम और तेज हो गई थी!!
भीड़ की सांसें जैसे अटक गई थी।
सबके नैत्र चौड़े हो गए।
तबले की थाप से कुम्भलगढ़ हिलने सा लगा!!
पर राग......वह निकल नहीँ रही थी।

कालिमा भरे आकाश में शिव की कल्पना कर उसने ऊपर देखा।

उसकी आँखों से अश्रुधारा बह चली।
कण्ठ का दुखद गोला पिघल कर आँखों के रास्ते बह निकला!!!
अत्यंत भव्य और दिव्य स्वर में,  #तार_सप्तक से उसने अंतिम अंतरा पूरा किया!!

अंतिम आलाप शुरू !
महादे ssss .,......!!
भीड़ रो रही थी।
कलाकार भी रो रहे थे।
निर्णायक रो रहे थे।
वह खुद रो रहा था।
#शिवरंजनी रो रही थी।
ढोलक पेटी तबला और वीणा रो रही थी!!
शिव हंस रहे थे।
क्या आपने अनुमान लगाया......#वह...कौन था?
#kss

रविवार, 13 सितंबर 2015

भडेली वाले भेरजी

#असांजी_सिंधड़ी

1838 में अंग्रेजों ने सिंध विजय के बाद असिंचित मरुभूमि पर भी लगान लगा दी।
इस हिन्दू बाहुल्य अन उपजाऊ क्षेत्र का ठेका एक दुष्ट ने लिया जिसका नाम मुहम्मद अली था।
क्रूर और अत्याचारी मुहम्मद अली से त्रस्त जनता ने तत्कालीन #भडेली ठाकुर रतन सिंह राणा से गुहार की।
राणा रतन सिंह ने पहले तो अली को समझाया पर लगा कि ये नहीँ मानने वाला तो उसके वध का निश्चय किया। हालाँकि इसके परिणाम का उन्हें पता था और मुहम्मद अली को मारना इतना सरल भी नहीँ था।
भडेली एक छोटा सा स्थान था और राणा के पास कोई खास संसाधन भी नहीँ थे। वे एक सामान्य राजपूत का जीवन जी रहे थे।
खैर....एक दिन वे घोड़े पर सवार हो गए और मुहम्मद अली को घेर कर मार दिया।
क्रुद्ध और अपमानित अंग्रेजों ने राणा को पकड़कर फांसी दे दी।
भरी जवानी में परहित के लिए मृत्यु का वरण करने वाले राणा अमर हो गए और आज भी लोकगीतों में जब गाये जाते है तो क्या हिन्दू क्या मुस्लिम, सबके कण्ठ भर आते है और ऑंखें गीली हो जाती है।(ks)
भडेली में सदावर्त चलता रहता था।
रतनसिंह के जीवराज सिंह और जीवराज सिंह के भेरजी हुए।
सभी एक से बढ़कर एक। पराक्रमी, दाता और विद्वान्।
इन्हींभेरजी के समय की एक घटना है। एक व्यक्ति ने चोरी की और मुकर गया। लोगों ने कहा कि यदि यह भेरजी के सामने भी बोल गया तो मान लेंगे कि निर्दोष है। जब वह भेरजी की कोटड़ी आया उस समय वे अपनी सभा में चारपाई पर विराजमान थे। वहाँ तो रोज ऐसा घटनाक्रम चलता रहता था।
भेरजी स्वयं ताड़ गए कि यह व्यक्ति झूठा है। उन्होंने गरजकर उस आदमी को दूर रहने की चेतावनी दी...!
आस पास वालों को कहा कि इस आदमी को मेरी आँखों से दूर ले जाया जाये।
पर इस सबके बावजूद उसने भेरजी की चारपाई को छू ही लिया...!
"यह ठीक नहीँ हुआ...!" भेरजी ने खिन्न मन से कहा। और उसी रात उस झूठे व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
सच्चरित्र और तपस्वी की झूठी साक्षी भर किसी की मौत के लिए पर्याप्त होती थी।
राजपूत सिर विहीन भी लड़ते थे। इसी सत्वके कारण। इष्ट पालन के कारण।
इस सत्य घटना का प्रत्यक्षदर्शी तो हमारा परिवार ही था।
भेरजी के सोहन जी और उनके सवाई सिंह हुए।जो हिन्दुस्थान आये। सवाईसिंह जी के पुत्र स्वरूप सिंह, जोधपुर में प्रसिद्ध वकील थे जिनका स्वर्गवास कुछ समय पहले हुआ।
आपने और मैने भी, कई लोग ऐसे देखे होंगे जो अचानक अज्ञात मानसिक रोग के शिकार हो जाते है जो कभी समझ नहीँ आते।
अच्छे भले लोग अचानक ऐसे गिर जाते है कि कभी ठीक नहीँ होते।
उसका रहस्य बताता हूँ।
वे सब अनिष्ट आहार से ऐसे होते है। विशेष कर वह परिवार जिनमें सात्विक आचरण पर विशेष बल दिया जाता है....कभी किसी अज्ञात जगह धोखे से ऐसा आहार कर जाते है कि उनका इष्ट उसकी अनुमति नहीँ देता।
मेरा एक ड्राईवर मित्र मुम्बई गया। वहाँ हाईवे के किनारे किसी होटल में भोजन किया। होटल किसी गैर की थी।उसने धोखे से गोमांस वाले चम्मच से परोसा और उसी दिन से ऐसा बीमार पड़ा कि अंततः एक दिन आत्महत्या कर ली।
प्राण देकर भी इष्ट रक्षा करने वाले राजपूतों में इतना तेज होता था कि उनके सामने आने मात्र से  व्यक्ति मर जाता था।
उसकी घिग्गी बन्ध जाती थी।अन्याय की तो कल्पना भी नहीँ की जा सकती।
मेरे पिताजी अक्सर #भडेली_वाले_भैरजी की बात सुनाते थे।
राणा रतनको तो धाट के घर घर में सुना जाता है।
धन्य है सुरताण सोढा, जिनके कुल में भेरजी जन्मे।
#ks

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

सेवा धर्मो परम् गहनो.....

कुछ यादें ऐसी भी
जब पहली पोस्टिंग हुई तब काफी दूर और नए लगने वाले स्थान पर लगाया गया था।

वहाँ बकरी पालन मुख्य व्यवसाय होता था। जरा जरा सी बात पर बकरा काटा जाता था। खूब प्रचलन था। उनके लिए मांसाहार आलू शब्जी से भी सस्ता था। हालाँकि मै मांसाहार नहीँ करता था पर घुलने मिलने के लिए हर उत्सव में शामिल होता था।
शादी ब्याव में खास कर बाहर से आने वाले मेहमानों का अध्ययन करने पर पता चला..... बाहरी लोग मांसाहार के लिए मरे मरे जाते थे।
यूँ भी दारू मांस और बीयर कितना भी लाओ, शॉर्टेज बनी ही रहती है।
पता नहीँ क्या रखा है इस हड्डी वाले भोजन में, कितना भी परोसो, थाली भरी पड़ी हो तो भी खाने वाले का मन नहीँ भरता।
परोसने वाले को बड़ी हसरत भरी नजर से देखा जाता है....!!
एक और बात नोट की कि अधिक दारू और माँस सेवी वाले लोग स्वभाव से आलसी, कायर, कामोपभोग के इच्छुक और शेखी बघारने वाले थे।
आजकल तो सम्पर्क में नहीँ हूँ, पर उन दिनों इसका सेवन करने वाले ज्यादातर लोग केवल इसलिए ज्यादा खाते थे कि इसके सेवन से #वो पावर बढ़े। अपनी भी शोध दृष्टि रही है। कुछ पीछा करने पर पता चला कि इनका पारिवारिक जीवन सन्तुलित तो कत्तई नहीँ।
साहब कहीँ और मुँह मारते है तो मैडम कहीँ ओर...!
फिर कुंआरे और बच्चे भी मरे जाते थे.....खैर...आसुरी आहार है ही ऐसा।
दूसरी याद अफीम के बारे में है। उधर खूब प्रचलन था। मिलिट्री एरिया था।  कई फौजी भी छुट्टी जाते समय थोड़ा अफीम घर ले जाने की डिमांड करते रहते थे। थोड़ा बहुत ले भी जाते थे।
अफीम की लत वाले लोग लाख तर्क दें......इनका भी मामला उस टाइप का ही रहा होगा।
स्कूल में दो तीन टीचर sc वर्ग के थे। वे अपना पीना पिलाना स्कूल में ही निपटाते।
उन दिनों जब 31मार्च को दारू ठेके बन्द होने वाले होते और शराब सस्ती होती थी तो मुझे याद है उन्होंने अपनी सेलेरी से खरीदकर एक कमरा ही भर दिया था दारू के कार्टन से।
ये बन्धु कहीँ बाहर से अप डाउन करते थे। मै वहीँ क्वार्टर में रहता था। एक बार एक टीचर ने अपने घर पर इतनी ज्यादा पी ली कि देहरी लांघते समय गिर गया और  दोनों पैरों की  हड्डियां टूट गई। एक महीने cl pl और ml से चला फिर तय हुआ कि वे मेरे पास क्वार्टर में रहेंगे।
मै भी आदत से मजबूर, उनकी बहुत सेवा करता था। सबसे कठिन मामला था उनका टॉयलेट जाना। उसके लिए एक कुर्सी में छेद करके शौचालय में फिट किया गया।
वे शौच जाकर बाहर आते तब मै उन्हें बैशाखी पकड़ाता। फिर पानी आदि डालने का स्वच्छता कार्य मुझे ही करना पड़ता। बाल्टी भरना, स्नान कराना आदि सभी कार्य बहुत श्रद्धा भाव से करता क्यों कि वे मुझसे सीनियर थे।
पर कुछ दिन बाद मैने नोट किया कि शौचालय में गन्दगी का बिखराव ज्यादा ज्यादा होने लगा।
हालाँकि अपुन गांधी बा को पढ़े थे और निर्लिप्त निर्विकार भाव से सेवा कर दिया करते। फिर तो बिखराव दिनों दिन बढ़ता गया।
एक बार वे छुट्टी में घर गए। वहाँ वैसी सेवा नहीँ होने पर उन्होंने अपने जवान लड़के की कलाई पर बैशाखी दे मारी और उसका हाथ फैक्चर हो गया।
लंगड़ी हालत में भी वे महफ़िल सजाना नहीँ भूले। क्वार्टर पर ही दो तीन मिलकर पार्टी मनाने लगे।
एक बार पीकर टुन्न होने के बाद उन्होंने अपने साथियों पर एक रहस्य खोला।
"ये लड़का मेरी खूब सेवा करता है। टॉयलेट साफ करता है। अब राजपूत कोई और मेरा टॉयलेट साफ करे इससे ज्यादा मजा क्या आता होगा? मेरा तो जीवन ही सफल हो गया। आजकल मै जान बूझकर कुर्सी से हिल डुल कर ज्यादा गन्दगी बिखेरता हूँ, ताकि ज्यादा मजा आ सके।"
बात मैने सुन ली।
सेवा करने का मेरा नशा उतर गया। और उसका तो खैर उतरना ही था।
#kss