योग-दिवस और हठयोग
हठयोग मुख्यत: ब्राह्मणों व पठन-पाठन-शीलों के लिए है। इसका दूसरा नाम “इन्द्रियसंयमयोग” है। यह शरीर को ज्ञान व ध्यान के योग्य बनाता है।
राजयोग मुख्यत: राजाओं व आभिजात्यों के लिए है। इसका दूसरा नाम “आत्मसंयमयोग” है। यह मन को ज्ञान व ध्यान के योग्य बनाता है।
हठयोग व राजयोग परस्पर सहयोगी होते हैं।
भक्तियोग सबके लिए है जो भावशुद्धि करता है।
कर्मयोग गृहस्थ के लिए है जो आध्यात्मिक उन्नति की कसौटी है। इसके बिना किसी साधक की उन्नति की जाँच नहीं हो सकती।
संन्यासी के लिए सांख्ययोग है जो राजयोग का ही उच्चतर रूप है।
ज्ञान व ध्यान में अनेक वर्ष लगते हैं।
हठयोग दीर्घायु व ऊर्ध्वरेता बनाता है जिससे ज्ञान व ध्यान पूर्ण होने की शक्यता बढ़ जाती है। कामविकृत ध्यानी नहीं बन सकता। ऊर्ध्वरेता होने से कामविकृतियों का जन्म नहीं हो पाता क्योंकि ऊर्ध्वरेता में इच्छाशुक्रस्खलन का सामर्थ्य होता है। शीघ्रस्खलन वाले ही कामविकृत हुआ करते हैं। हठयोग की कसौटी आसन नहीं हैं। जो ऊर्ध्वरेता नहीं है वह हठयोगी नहीं है। कोई ऊर्ध्वरेता है अथवा नहीं उसके क्रमश: ३ परीक्षण हैं – जलपरीक्षा, दुग्धपरीक्षा, घृतपरीक्षा। मूलबन्ध लगाकर शिश्न से उपर्युक्त पदार्थों को खींच लेना ही कसौटी है।
मूलबन्ध की सहायक क्रियाएँ हैं –
अश्विनी, शक्तिचालिनी, मूत्रबन्ध आदि।
शौच के उपरान्त घुटनों पर हथेलियाँ टिकाकर कुछ झुककर खड़े हों और गुदा को सिकोड़े, मन में ३ तक गिनें फिर छोड़ दें। यह अश्विनी है। २० बार करें।
अश्विनी की मुद्रा में खड़े हों किन्तु गुदा को नहीं प्रत्युत शिश्न को सिकोड़ें फिर छोड़ दें। यह शक्तिचालिनी है। ४० बार करें। अश्विनी के ठीक बाद करें।
जब भी मूत्र त्यागें मध्य में झटके से मूत्र को रोक लें। शिश्न व पेट को सिकोड़ कर रखें। मन में २० तक गिनें और शेष मूत्र त्याग दें। यह मूत्रबन्ध है। सदैव करें पर शौचवेग हो तब न करें।
चेतावनी »
कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचार: स उच्यते॥
(गीता ३-६)
अर्थात् योगासन करते रहें और अश्लीलता भी देखते-सोचते रहें। ऐसा न करें!
अन्यथा योग पागल कर देगा! मार डालेगा!
अन्तिम चेतावनी »
हठयोग में प्रवेश करें पर गुरु के साथ!
(कमेण्ट में दी गई लिंकें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं हैं)
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