रविवार, 30 जुलाई 2017

प्रश्न पत्र

एक बडी परीक्षा का प्रश्नपत्र बनाने की कार्यशाला थी।
मैं भी गया था।
हालांकि यह काफी गोपनीय और जिम्मेदारी का कार्य है और उसे सार्वजनिक नहीँ किया जा सकता।
कार्यशाला के संयोजक की बहुत सारी विशेषताएं थीं।
वे मंत्रीजी के खास थे। एक बड़े नेता के कुटुंब से भी थे। स्थापित बुद्धिजीवी, लेखक प्रोफेसर, शिक्षाविद वगैर वगैर तो थे ही,,,, कठोर अनुशासन के लिए भी प्रसिद्ध थे, सत्तापक्ष के चहेते भी थे!!
ज्यादातर सम्भागी भी नये थे। नई सत्ता के अनुरूप "कुछ कर गुजरने"की उमंग और आशा से भरे हुए।

"उन्होंने जैसी मनमानी की वैसी तो नहीं करेंगे पर जो #कानूनन सही है और सत्य है वह तो कर ही सकते हैं।"   इस आशय की बातचीत हो रही थी।

कुछ प्रोफेशनल और #अनुभवी बुजुर्गों के चेहरे बता रहे थे कि वे रीत का रायता निपटाने आए हैं और जरूरत पड़ी तो विरोध भी करेंगे!!

एक प्रभाग का प्रभारी मुझे बनाया गया। दिन भर अपनी कमेटी के मेम्बर्स को समझने और समझाने में बीता!!

सभी जन इस बात पर सहमत थे कि हम ऐसा कुछ करें कि काम की प्रशंसा भी हो और हमें इस तरह बार बार बुलाया भी जाता रहे!!

मैंने उनकी समीक्षा बुद्धि की टोह ली। कुछ ट्रिक समझाए कि एक ही टॉपिक पर वामपंथियों और हमारे द्वारा बनाए प्रश्नों में किस प्रकार की भिन्नता होगी।

हमें उद्देश्यों की पूर्ति करने के साथ साथ यह भी ध्यान रखना है कि हम ऐसा पेपर सेट करें कि कम्पीटिशन में वामपंथी साहित्य को छात्र कम से कम पढें।

हमारे प्रश्नों की धार ऐसी हो कि विवश होकर प्रतियोगी वही पढें जो हम पढ़ाना चाहते हैं,,,, बिलकुल वास्तविक और भारतीयता के अनुकूल।

हमारे पेपर बनाने भर की देर है। बाद में प्रश्नों का #जायका समझकर ही सारे कोचिंग संस्थान, क्रोनोलॉजी, कम्पीटिशन साहित्य आदि अपनी दिशा बदल देंगे।

हमें अपनी तरफ से नया कुछ भी नहीं थोपना है, मौजूदा सिलेबस में ही वे सारे तत्व, तथ्य और परिभाषाएं विद्यमान है जिन्हें हम उभारना चाहते हैं। अभी इतना जिंदा तो है ही भारत!!

बस जरूरत है हमारे दृष्टिकोण की,,,, और #उनके छल,छद्म, टोटकों के पहचान की!!
इसके लिए हमें कॉपी पेस्ट से बचना होगा, परिश्रम करना होगा। अपने #ट्रिक्स एक दूसरे से साझा करने होंगे और तथ्यों को गहराई से समझने की दिशा में और आगे बढ़ना होगा।

ऐसा करके हम न केवल भारतीय मेधा का रुख मोड़ सकते हैं, बल्कि उन सभी देशद्रोही, jnu छाप लाल लँगूरों के मुँह पर तमाचा मार सकते हैं जो अपनी विकृत मानसिकता को देश की नौकरशाही में रोप कर खूब बड़ी गिरोहबंदी में लीन हैं।

पर सावधान,,,,, बहुत सूक्ष्मता से,,, बहुत ही महीन कारीगरी से,,,,, एक एक बात सोच समझकर,,,,, उनसे भी बड़ी समझ और रणनीति से हमें यह सब करना है, जिससे कल को कोई कोर्ट कचहरी या मिडियाबाजी का #झंझट नहीं रहे!!

हमारी योजना इतनी ठोस और निरापद थी कि इस कल्पना से ही हम रोमांचित हो गये।

हममें सपने सच करने की उमंग और उत्साह ऐसा था कि हमने आस पास वाले दूसरे ग्रुप्स में भी यह चर्चा चलाई। जिस जिस को यह समझ आया वह पूर्णतः हमसे सहमत था।
दो दिन इसमें बीत गए, तीसरे दिन कार्य आरम्भ करना था। इन दो दिन-रात्रियों में हमने पूरी लायब्रेरी छान डाली। नोट्स और सन्दर्भ से डायरियां भर गईं। पन्ने पर पन्ने लिखे जाने लगे। परस्पर सलाह कर प्रश्न की धार की तीक्ष्णता और दिशा के सारे जोड़ घटा माप लिए।
हर वह प्रश्न जो वामपंथी-विकृत सोच के निहित स्वार्थों का पोषक था, हमने चीर फाड़ कर उसकी चिन्दी चिन्दी की और उसी सामग्री से एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया।
जैसे,,,,
प्रश्न यदि वनवासियों के असंतोष का था तो हमने उसे उनकी प्रकृति पूजा की परम्परा में बदल दिया।
प्रश्न यदि हिंदी गद्य में उर्दू के योगदान का था तो हमने अदालती शब्दों में उर्दू के दुराग्रह के आंदोलन की बात छेड़ी।
प्रश्न यदि पंचशील के सिद्धांत का था तो हमने वहाँ चीन के विस्तारवाद को पूछा।
हम अब सिद्धहस्त हो चुके थे।
वामपंथ का एक किला जड़ से ढहने वाला था।
हमने अपनी कार्ययोजना और रूपरेखा "संयोजकमहोदय" को समझाई और उनसे हरी झंडी चाही।

प्रश्न पढ़ते ही वे #फक्क से अरुचि से भर उठे।
"इतनी जल्दी नहीं,,,,!" वे असहाय से घबराने लगे।
मैं उन्हें समझाने लगा कि "सर कुछ नहीं होगा,,,,!"
पर वे अत्यंत आतंकित दिखने लगे।
हवा का रुख देख कुछ बुजुर्ग भी आगे आये। वे आश्वस्त करने लगे कि बहुत पक्का काम हुआ है। जो वास्तविकता है, वैसा हुआ है और नये सदस्यों ने बहुत परिश्रम करके असत के विरुद्ध पहली बार कोई स्थाई कार्य किया है। कोर्ट इत्यादि के झंझट का सवाल ही नहीं!!
पर वे क्रमशः कठोर होते गए। रिस्क शब्द उनकी डिक्शनरी में ही नहीं था।
जो चल रहा है, चलने दो!!
मैं,,,,, जो अब तक उन्हें बहुत जिम्मेदार, ज्ञानी, कूटनीतिज्ञ और न जाने क्या क्या समझ रहा था,,,, कुछ क्षण के लिए सदमे में आ गया।
समझ गया कि यह लड़ाई इतनी #सरल नहीँ!!
फिर से कुंआ खोदूँगा।
ताजा पानी पीऊंगा।।
#kss

बुधवार, 19 जुलाई 2017

वर्जित विषय, पर जरूरी

सर मोटो सपूत, काया मोटी कपूत।
कृपया महिलाएं और बच्चे पोस्ट से दूर रहें।
ऐसा है कि एक शास्त्र है #सामुद्रिक शास्त्र।
इसका समुद्र से कोई लेना देना नहीँ है।
स + मुद्रा, अर्थात शारीरिक अंगों के लक्षणों का वर्णन है। जिसे पर्सनल्टी का फर्स्ट इम्प्रेशन कहते हैं न, कुछ कुछ वैसा।
इस शास्त्र को पढ़कर ही कवियों ने नख शिख वर्णन करने सीखे और इसी आधार पर ज्योतिषियों ने हस्तरेखा आदि के लिए कुछ घोषणाएं कीं।
नाक, कान, बाहु, जंघाएँ, पेट, गर्दन आदि की आनुपातिक संरचना के आधार पर यह निर्णय लिए गये कि क्या सुंदर और क्या कुरूप होता है।
ज्ञानी के लक्षण क्या हैं, यौद्धा कैसा होता है, शिल्पी, दूत, प्रहरी, आदि किसे बनाना चाहिए,,,,, इत्यादि।
पुराने समय में छोटे बच्चे कच्छा नहीँ पहनते थे।
12-13 वर्ष तक के लड़के नँगे घूमते रहते थे।
तब आज जैसी "चेतना" भी नहीं थी।
ज्यादा हुआ तो ऊपर एक शर्ट जैसा कुछ गले में डाल दिया जाता था, शेष भाग हवा लगने को खुला छोड़ दिया जाता था।
बिना कोई समस्या के, लड़के लड़कियां खेलते रहते थे,,,, इत्यादि।
अक्सर, चौपाल पर बैठे दादाजी की गोद में खेलते खेलते पोता भी पहुंच जाता था।
लोग बाग, सामुद्रिक शास्त्र की एक बात कहा करते थे,,,, "सिर बड़ा सपूत का, पैर बड़ा कपूत का।"
यह तो ठीक है, एक और बात कहते थे,,, "काया बड़ी कपूत की,,,"
यहां, काया से तात्पर्य, बच्चे के लिंग की साइज थी।
जिनका जननांग बड़ा होता था वे अच्छी नजर से नहीँ देखे जाते थे। वे इसके लिए गधे और सिंह का उदाहरण देते थे।
मेरी पोस्ट पढ़कर, अभी यहीं कई लोग गधे के गुणगान करना शुरू नहीं करें,,,,, गधा विशाल "काया" धारी होते हुए भी, कभी भी जंगल का राजा नहीं कहलायेगा। और बड़े शक्तिशाली जेबरों के शरीर को सिंहों द्वारा फाड़ दिया जाता है, यह एक सर्वविदित बात है।
"साइज डज मैटर" का नारा देने वाली तीनों सभ्यतायें,,,,  1.अरब, 2.यूरोप, 3.मार्क्स के चिंतन का बहुत बड़ा आधार "जननांग" ही है। खतना आदि प्रथाएं, विज्ञापन-उपभोग, बाह्य सौंदर्य, मुक्त यौन जीवन, से इसे समझ सकते हैं।
जहाँ भी नर-मादा मिले नहीँ कि इसी के इर्द गिर्द चित्रण शुरू हो जाता है।
लिंग बड़ा करने वाले विज्ञापनों पर नजर डालिए,,,,, इन सबका आधार क्या है?
यहाँ किस #सन्तुष्टि की बात हो रही है?
बड़े लिंग वालों ने कहाँ क्या #पराक्रम किया इसका कहीं उदाहरण है?
वे किसी अंडरवियर के प्रचार अथवा कहीं पोर्न फिल्म में नजर आएंगे।
कभी अपने शास्त्रों पर भी भरोसा करना चाहिए।
एकेनापि सुपुत्रेण,
सिंही स्वपिति निर्भयम्।
सहैव दशभिः पुत्रै:
भारम् वहति गर्दभी।।
एक ही पुत्र को जन्म देकर, शेरनी निर्भय होकर सोती है।
जबकि दश पुत्रों की माँ, #गधी अपने पुत्रों सहित बोझा ढोती रहती है।
#kss