मंगलवार, 17 मार्च 2015

धनपशु

किसी को नहीँ पता कि कल क्या होगा?फिर भी प्रलय पर्यन्त भविष्यवाणियो का और उन पर मर मिटने का भूत संवारे भागे जा रहे हैं।
इस बीच भी कुछ समझदार लोग इन सब प्रपंच से विरक्त शांत चित्त और दक्ष मनसा अपने कर्म में संलग्न चुपचाप उन्नति को प्राप्त हुए जा रहे हैं।
श्मशान में भी सञ्चित काष्ठ के दहकते अंगारों की ऊष्मा में उन्हें पीली स्वर्ण मुद्राओं का साक्षात् हो जाता है।
दनदनाती गेंदों पर धन धनाते रन बनाते धूल धूसरित धवल जूते धारी,धोनी के क्रीड़ा रोमांच में भी जिन्हें कड़कड़ाते नोटों की बरसात की आहट हो जाती है।
रंग बिरंगी रौशनी के रँगमञ्च पर रोमांचपूर्ण भंगिमा से नाच करती नर्तकी के नग्न सौंदर्य में आंदोलित भीड़ के कोलाहल में हूटिंग करते हिनहिनाते मानवीय कण्ठों के निनाद से गुंजित आकाश में उठती डी जे की तुमुल ध्वनि में भी रहस्यमयी लक्ष्मी के अलख रूप में निमग्न और उस पागल जनसमूह से भिन्न रूचि वाले यथा कथंचित द्रव्य सञ्चय की उहापोह में देखे जा सकते हैं।
ऐसे एक लक्षीय,नित्य मुद्रा सेवी, सदा चिर धन सञ्चयी, आपात रमणीय सप्त पीढ़ी पर्यन्त कुबेर कलश को भी लजाने वाले अतुल धन आकांक्षी,संसार के क्रंदन को जितने वाले,सदा अपने में ही मस्त उस धनिक की प्रवृत्ति योगियों को भी पीछे छोड़ने वाली है।
संसार के अंतिम व्यक्ति के मरने तक भी उपलब्ध सारा धन मेरे ही कोष में आकर अपना आश्रय बनाये इस प्रकार के सूक्ष्म चिंतन की प्रवृत्ति दार्शनिकों को भी पीछे छोड़ने वाली है।
आवशयकता पड़ने पर राजा से रंक तक सबको क्रय करने की शक्ति से सम्पन्न दृश्यमान ब्रह्माण्ड के समस्त शक्ति स्रोत के मामले में इंद्र को भी पछाड़ने वाले हैं।
अधिक क्या कहूँ?
सृष्टि में ब्रह्मा,पालन में विष्णु और संहार में शिव के समान, स्थिरता में दिगपाल और गतिशीलता में सूर्य के समान, सौंदर्य में कामदेव और ऐश्वर्य में कुबेर के समान,इन नव धनिकों को विश्व का समस्त अप्राप्य,प्राप्य है।इनके दोष भी गुण हैं।
इनकी प्रताड़ना भी शिक्षा है।इनके कुकर्म भी सुकर्म है।इनका चिंतन ही नीति है।इनकी व्यथा ही ग्लोबल प्रॉब्लम है।इनकी आह ही प्रकृति की उथल पुथल है।इनकी करवट बदलना ही भूकम्प और सुनामी है।इन की तनी भृकुटि ही प्रलय का निमन्त्रण है।ये जो सर्दी है वो इनकी ठण्डी आह है।ये जो गर्मी है वो इनका कोप है।ये जो वर्षा है वो इनके आंसुओं की झड़ी है।ये जो तूफान है वो इनका उच्छ्वास है।
इनकी गम्भीरता समुद्र को भी मात देती है।इनके वाक्य ही धर्मग्रन्थ का सार है।इनके उपक्रम ही सृष्टि के नियामक है।इनका दृष्टिकोण ही विश्व के जीवन मूल्य हैं।
ये हंसे तो जग हंसा।ये रोए तो विश्व रोया।ये प्रसन्न तो संसार प्रसन्न है।ये व्यवस्थित तो विश्व व्यवस्थित।ये रुक गए तो सभ्यता रुक जाएगी।ये चले तो जीवन गतिमान हो जाएगा।
इस मिथ्या जगत में इनका अस्तित्व ही सत्य है।
हे धनपशुओं!आपकी जय हो।

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