रविवार, 15 मार्च 2015

वेदार्थ5

अणोरणीयान महतोमहीयान।
चन्द्र पृथ्वी के चक्कर लगाता है।
पृथ्वी सूर्य के और सूर्य आकाश गंगा के केंद्र के चक्कर लगाता है।इस हमारी अकाशगंगा में 10खरब सूर्य और है।उन सबके अपने अपने सौर मण्डल है।ग्रह उपग्रह है।
इस प्रकार की अरबों अकाशगंगायें ब्रह्माण्ड के केंद्र के चक्कर लगाती है।यह तो बात हुई हमारे ब्रह्माण्ड की।
ऐसे असंख्य ब्रह्माण्ड इस सृष्टि में मौजूद है।ये सारे ब्रह्माण्ड भी एक चीज के चक्कर लगाते है,उसे स्वयम्भू कहते है।यहाँ तक प्रकृति का विस्तार है।उस प्रकृति से आगे पुरुष है।वही ब्रह्म है।उस ब्रह्म से प्रति क्षण नित्य निरन्तर रूप से ,बुलबुलों के समान अनंत कोटि ब्रह्माण्ड बन रहे है और उसमें समा रहे है।
यह ब्रह्म ही इस सृष्टि का मूल है।ब्रह्म की ऊर्जा स्वयम्भू में और स्वयम्भू की परमेष्ठी में प्रवाहित होती है।वही ऊर्जा परमेष्ठि से सूर्य द्वारा होते हुए हम तक पहुंचती है।
उक्त सात लोक भू भुवः स्वः मह जनः तपः सत्यम् से निर्मित तीन त्रिलोकी क्रमश:- संयति रोदसी क्रंदसि का वर्णन पहले किया जा चुका है।
भू और चन्द्रमा दो पिंड है।इनके मध्य बहुत सा रिक्त स्थान है।पर भू लोक और चन्द्र लोक का विस्तार इन पिंडों से बहुत अधिक है।यही स्थिति सूर्य लोक और अकाशगंगा के मामले में है।
इस रिक्त स्थान में एक और लोक विद्यमान है।
यह चौथा लोक है।जिसे आपो लोक कहा गया है।
इस प्रकार प्रत्येक त्रिलोकी में एक चतुर्थ आपो लोक भी होता है।
जिस प्रकार यह परिक्रमण है वैसा ही कुछ नीचे भी चल रहा है।
पृथ्वी बनी है परमाणुओं से।प्रत्येक परमाणु में एक नाभिक होता है।उसके चारों और इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते है।नाभिक में दो और पिंड रहते है।न्यूट्रॉन और प्रोटोन।इलेक्ट्रॉन नाभिक के बाहर ठीक वैसे ही चक्कर लगाते है जैसे पृथ्वी सूर्य के लगा रही है या सूर्य परमेष्ठि के।
नाभिक में यद्यपि परमाणु का लगभग सारा द्रव्यमान स्थित रहता है तो भी नाभिक सम्पूर्ण परमाणु के आकार की तुलना में बहुत छोटा होता है।यदि सम्पूर्ण परमाणु का क्षेत्रफल एक फुटबॉल मैदान मान लिया जाय तो नाभिक उसमें बैठी किसी मक्खी सदृश होता है।
इससे हम अनुमान लगा सकते है कि इलेक्ट्रॉन की गति क्या होती होगी?
और यह भी कि परमाणु में भी अधिकांश भाग जो पिंड से पृथक है वह रिक्त है।वास्तव में वह रिक्त नहीँ, चतुर्थ आपो लोक यहाँ भी विद्यमान है।
इस प्रकार सभी पिंड गतिमान है।चाहे वह परमाणु हो या हमारी पृथ्वी।इन सबकी एक निश्चित चाल है।पथ है।परिक्रमण काल है।और इनमें पिंड व रिक्त स्थान के मध्य एक निश्चित अनुपात भी है।परमाणु में भी एक सृष्टि है।उसमें भी ऊर्जा है।परमाणु एक सूक्ष्म ब्रह्माण्ड की भांति व्यवहार करता है।इसलिए कहा गया है
यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे।।
चतुर्थ आपो लोक का श्रुति प्रमाण
ॐ द्यौ शांति।
अंतरिक्ष'' शांति।
पृथिवी शांति।
आप: शांति।
यहाँ तीन लोकों के साथ चतुर्थ आप लोक का स्पष्ट वर्णन है।
(कृपया पूर्व त्रिलोकी वाली पोस्ट से जोड़कर पढ़ें।)
#kss

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