भारतीय सेना के जवान।
प्रतिदिन भारतीय सेना के बारे में फेसबुक पर बहुत कुछ लिखा जाता है।
लिखने वाले उनकी जय जय कार कर अपने कर्त्तव्य की इति श्री मान लेते हैं।
एक तरह से यह उनसे तो अच्छा ही है जो कभी सेना को याद ही नहीँ करते।
प्रति दिन कुछ सैनिक देश सुरक्षा में बलि चढ़ रहे हैं।
पक्ष विपक्ष को इसमें भी राजनीति करनी होती है।मेरे मित्र वत्सल त्रिवेदी ने बिलकुल सही कहा है कि आज के समय में कोई पड़ोसी को चाय पत्ती भी नहीँ देता,और एक सैनिक जान दे देता है।
लोग आलू प्याज के भाव जितनी भी गम्भीरता नहीँ देते इस घटना को।
जो सैनिक शहीद होता है,उसका भी परिवार होगा।पत्नी बच्चे,माँ बाप,भाई या बहिन।सभी दुखी होते हैं।पर हम लोगोँ के रुटीन पर कोई फर्क नहीँ पड़ता।
एक तरफ परिवार के परिवार कुर्बान हो रहे हैं और दूसरी तरफ ??
------जिस समाज के लिए सैनिक शहीद हो रहा है उस समाज की क्या स्थिति है?
सभी हत्यारे,व्याभिचारी और घोटालेबाज उसी समाज के ही तो अंग है।
कोई बिज़नेस में बिजी है तो किसी को अपने वोट बैंक के चलते बोलने की मनाही है।
देश की धनाढ्य और अय्यास बिरादरी को तो अपने विलासी जीवन में बिलकुल भी दखल पसन्द नहीँ।
कुछ क्षण के लिए सोचा जाए कि यदि भारतीय सेना नहीँ होती तो?
क्या कोई बगदादी या ओसामा यहाँ नहीँ पनप सकता?
ओसामा और बगदादी,भारत में भी पनप सकते हैं।उनके पनपने का सारा कच्चा माल यहां उपलब्ध है।
बल्कि कुछ ज्यादा ही अनुकूलता है।
एक बड़ी जनसंख्या है।
उनका बचाव करने वाली पूरी राजनीतिक बिरादरी भी है।
लुंज पुंज कानून भी है।
मानवाधिकार वादी और वामपंथी नैतिक समर्थक भी है।
इसी देश के अनेक वकील,उनके केश लड़ने को आतुर है।
"हक़" की चिन्ता करने वाला पूरा मिडिया गिरोह है।
और बगदादी बनकर जिनको "काटा"जाना है,उनकी क्या स्थिति है?
उनके शोकेस में कॉन्डोम,बाँहों में सुंदरियाँ,अलमारियों में गहने, पूजालय में हनुमान चालीसा और एकाध "मरियल"बच्चा है।पर अस्त्र शस्त्र के नाम पर कोट का हैंगर ही है।
क्यों कि वर्षों पहले एक बाबा कह कर गए थे कि तुम्हें अस्त्र से दूर ही रहना है।
तुम्हारी रक्षा के लिए एक किताब है और उसे सम्विधान कहते हैं।
हमारे बगदादी का यह "सम्भावित शिकार" और भले ही कितनी भी उस सम्विधान की धज्जियां उड़ाता हो,पर इस मामले में उसे पूरा विश्वास है कि ये मेरी रक्षा करेगा।
रात दिन,पुलिस और शासन की आँखों में धूल झोंकने के स्वप्न बुनने वाला भी मन में यह पक्का कर बैठा है कि बगदादी के गला काटने से एन पहले,पुलिस आकर बचा लेगी।
मरियल पुत्र की खोपड़ी छिद जाने से पहले ही,नेटवर्क अपना काम करेगा और सेना पहुँच जाएगी।
कमसिन पुत्री की इज्जत लुटने से ठीक पहले पोस्टर फटेगा,हीरो निकलेगा,और सब कुछ वैसा ही होगा,जैसा "मैं हूँ न!" में होता है।
या फिर इनको लगता है कि कॉन्डोम से लगाकर कोठी तक की सारी विलासी सामग्री में अचानक जान आएगी और वे सब यकायक तांडव करने लगेंगे,जिससे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
या ये बड़े बड़े वादे करने वाले नेता ही आकर उबारेंगे।भई कहते तो रहते हैं कि कोई काम हो तो बताना।
एक और तरीका भी है,बचने का।
दलित कहेगा कि भई मैं तो आपका ही हूँ।आप इन सवर्णों को मारिए।या पूंजीवाला कहेगा "देखो!मेरे परिवार को छोड़ दो,मै आपको फेक्ट्री के 20मजदूर देता हूँ।"
या कोई ऊँची जाति वाला कहेगा कि सामने वाले घर में घुस जाओ,वहाँ आदिवासी रहते हैं।
क्या ही अजीब स्थिति है?
क्या देश के सैनिक जिनके लिए प्राण गंवा रहे है उसका यह चरित्र होना चाहिए?
बगदादी यहाँ भी पनप सकते हैं।
बल्कि पनप गए हैं।
वे खुलकर नहीं खेल रहे क्यों कि भारतीय सेना का चरित्र अभी तक ठीक है।
उसको केवल एक ही भय है।
क्यों कूल डूड?
तेरी इस कूल्हे से खिसकती जीन्स या फिर क्रिकेट के बैट से बग़दादी नहीँ डरता!!
होठ के नीचे रखे इस गुच्छे से भी नही।
#जय_हिन्द_की_सेना।।
केसरी सिंहसूर्यवंशी।
बुधवार, 18 मार्च 2015
सैनिक
मंगलवार, 17 मार्च 2015
धनपशु
किसी को नहीँ पता कि कल क्या होगा?फिर भी प्रलय पर्यन्त भविष्यवाणियो का और उन पर मर मिटने का भूत संवारे भागे जा रहे हैं।
इस बीच भी कुछ समझदार लोग इन सब प्रपंच से विरक्त शांत चित्त और दक्ष मनसा अपने कर्म में संलग्न चुपचाप उन्नति को प्राप्त हुए जा रहे हैं।
श्मशान में भी सञ्चित काष्ठ के दहकते अंगारों की ऊष्मा में उन्हें पीली स्वर्ण मुद्राओं का साक्षात् हो जाता है।
दनदनाती गेंदों पर धन धनाते रन बनाते धूल धूसरित धवल जूते धारी,धोनी के क्रीड़ा रोमांच में भी जिन्हें कड़कड़ाते नोटों की बरसात की आहट हो जाती है।
रंग बिरंगी रौशनी के रँगमञ्च पर रोमांचपूर्ण भंगिमा से नाच करती नर्तकी के नग्न सौंदर्य में आंदोलित भीड़ के कोलाहल में हूटिंग करते हिनहिनाते मानवीय कण्ठों के निनाद से गुंजित आकाश में उठती डी जे की तुमुल ध्वनि में भी रहस्यमयी लक्ष्मी के अलख रूप में निमग्न और उस पागल जनसमूह से भिन्न रूचि वाले यथा कथंचित द्रव्य सञ्चय की उहापोह में देखे जा सकते हैं।
ऐसे एक लक्षीय,नित्य मुद्रा सेवी, सदा चिर धन सञ्चयी, आपात रमणीय सप्त पीढ़ी पर्यन्त कुबेर कलश को भी लजाने वाले अतुल धन आकांक्षी,संसार के क्रंदन को जितने वाले,सदा अपने में ही मस्त उस धनिक की प्रवृत्ति योगियों को भी पीछे छोड़ने वाली है।
संसार के अंतिम व्यक्ति के मरने तक भी उपलब्ध सारा धन मेरे ही कोष में आकर अपना आश्रय बनाये इस प्रकार के सूक्ष्म चिंतन की प्रवृत्ति दार्शनिकों को भी पीछे छोड़ने वाली है।
आवशयकता पड़ने पर राजा से रंक तक सबको क्रय करने की शक्ति से सम्पन्न दृश्यमान ब्रह्माण्ड के समस्त शक्ति स्रोत के मामले में इंद्र को भी पछाड़ने वाले हैं।
अधिक क्या कहूँ?
सृष्टि में ब्रह्मा,पालन में विष्णु और संहार में शिव के समान, स्थिरता में दिगपाल और गतिशीलता में सूर्य के समान, सौंदर्य में कामदेव और ऐश्वर्य में कुबेर के समान,इन नव धनिकों को विश्व का समस्त अप्राप्य,प्राप्य है।इनके दोष भी गुण हैं।
इनकी प्रताड़ना भी शिक्षा है।इनके कुकर्म भी सुकर्म है।इनका चिंतन ही नीति है।इनकी व्यथा ही ग्लोबल प्रॉब्लम है।इनकी आह ही प्रकृति की उथल पुथल है।इनकी करवट बदलना ही भूकम्प और सुनामी है।इन की तनी भृकुटि ही प्रलय का निमन्त्रण है।ये जो सर्दी है वो इनकी ठण्डी आह है।ये जो गर्मी है वो इनका कोप है।ये जो वर्षा है वो इनके आंसुओं की झड़ी है।ये जो तूफान है वो इनका उच्छ्वास है।
इनकी गम्भीरता समुद्र को भी मात देती है।इनके वाक्य ही धर्मग्रन्थ का सार है।इनके उपक्रम ही सृष्टि के नियामक है।इनका दृष्टिकोण ही विश्व के जीवन मूल्य हैं।
ये हंसे तो जग हंसा।ये रोए तो विश्व रोया।ये प्रसन्न तो संसार प्रसन्न है।ये व्यवस्थित तो विश्व व्यवस्थित।ये रुक गए तो सभ्यता रुक जाएगी।ये चले तो जीवन गतिमान हो जाएगा।
इस मिथ्या जगत में इनका अस्तित्व ही सत्य है।
हे धनपशुओं!आपकी जय हो।
रविवार, 15 मार्च 2015
वेदार्थ5
अणोरणीयान महतोमहीयान।
चन्द्र पृथ्वी के चक्कर लगाता है।
पृथ्वी सूर्य के और सूर्य आकाश गंगा के केंद्र के चक्कर लगाता है।इस हमारी अकाशगंगा में 10खरब सूर्य और है।उन सबके अपने अपने सौर मण्डल है।ग्रह उपग्रह है।
इस प्रकार की अरबों अकाशगंगायें ब्रह्माण्ड के केंद्र के चक्कर लगाती है।यह तो बात हुई हमारे ब्रह्माण्ड की।
ऐसे असंख्य ब्रह्माण्ड इस सृष्टि में मौजूद है।ये सारे ब्रह्माण्ड भी एक चीज के चक्कर लगाते है,उसे स्वयम्भू कहते है।यहाँ तक प्रकृति का विस्तार है।उस प्रकृति से आगे पुरुष है।वही ब्रह्म है।उस ब्रह्म से प्रति क्षण नित्य निरन्तर रूप से ,बुलबुलों के समान अनंत कोटि ब्रह्माण्ड बन रहे है और उसमें समा रहे है।
यह ब्रह्म ही इस सृष्टि का मूल है।ब्रह्म की ऊर्जा स्वयम्भू में और स्वयम्भू की परमेष्ठी में प्रवाहित होती है।वही ऊर्जा परमेष्ठि से सूर्य द्वारा होते हुए हम तक पहुंचती है।
उक्त सात लोक भू भुवः स्वः मह जनः तपः सत्यम् से निर्मित तीन त्रिलोकी क्रमश:- संयति रोदसी क्रंदसि का वर्णन पहले किया जा चुका है।
भू और चन्द्रमा दो पिंड है।इनके मध्य बहुत सा रिक्त स्थान है।पर भू लोक और चन्द्र लोक का विस्तार इन पिंडों से बहुत अधिक है।यही स्थिति सूर्य लोक और अकाशगंगा के मामले में है।
इस रिक्त स्थान में एक और लोक विद्यमान है।
यह चौथा लोक है।जिसे आपो लोक कहा गया है।
इस प्रकार प्रत्येक त्रिलोकी में एक चतुर्थ आपो लोक भी होता है।
जिस प्रकार यह परिक्रमण है वैसा ही कुछ नीचे भी चल रहा है।
पृथ्वी बनी है परमाणुओं से।प्रत्येक परमाणु में एक नाभिक होता है।उसके चारों और इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते है।नाभिक में दो और पिंड रहते है।न्यूट्रॉन और प्रोटोन।इलेक्ट्रॉन नाभिक के बाहर ठीक वैसे ही चक्कर लगाते है जैसे पृथ्वी सूर्य के लगा रही है या सूर्य परमेष्ठि के।
नाभिक में यद्यपि परमाणु का लगभग सारा द्रव्यमान स्थित रहता है तो भी नाभिक सम्पूर्ण परमाणु के आकार की तुलना में बहुत छोटा होता है।यदि सम्पूर्ण परमाणु का क्षेत्रफल एक फुटबॉल मैदान मान लिया जाय तो नाभिक उसमें बैठी किसी मक्खी सदृश होता है।
इससे हम अनुमान लगा सकते है कि इलेक्ट्रॉन की गति क्या होती होगी?
और यह भी कि परमाणु में भी अधिकांश भाग जो पिंड से पृथक है वह रिक्त है।वास्तव में वह रिक्त नहीँ, चतुर्थ आपो लोक यहाँ भी विद्यमान है।
इस प्रकार सभी पिंड गतिमान है।चाहे वह परमाणु हो या हमारी पृथ्वी।इन सबकी एक निश्चित चाल है।पथ है।परिक्रमण काल है।और इनमें पिंड व रिक्त स्थान के मध्य एक निश्चित अनुपात भी है।परमाणु में भी एक सृष्टि है।उसमें भी ऊर्जा है।परमाणु एक सूक्ष्म ब्रह्माण्ड की भांति व्यवहार करता है।इसलिए कहा गया है
यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे।।
चतुर्थ आपो लोक का श्रुति प्रमाण
ॐ द्यौ शांति।
अंतरिक्ष'' शांति।
पृथिवी शांति।
आप: शांति।
यहाँ तीन लोकों के साथ चतुर्थ आप लोक का स्पष्ट वर्णन है।
(कृपया पूर्व त्रिलोकी वाली पोस्ट से जोड़कर पढ़ें।)
#kss
वेदार्थ5
अणोरणीयान महतोमहीयान।
चन्द्र पृथ्वी के चक्कर लगाता है।
पृथ्वी सूर्य के और सूर्य आकाश गंगा के केंद्र के चक्कर लगाता है।इस हमारी अकाशगंगा में 10खरब सूर्य और है।उन सबके अपने अपने सौर मण्डल है।ग्रह उपग्रह है।
इस प्रकार की अरबों अकाशगंगायें ब्रह्माण्ड के केंद्र के चक्कर लगाती है।यह तो बात हुई हमारे ब्रह्माण्ड की।
ऐसे असंख्य ब्रह्माण्ड इस सृष्टि में मौजूद है।ये सारे ब्रह्माण्ड भी एक चीज के चक्कर लगाते है,उसे स्वयम्भू कहते है।यहाँ तक प्रकृति का विस्तार है।उस प्रकृति से आगे पुरुष है।वही ब्रह्म है।उस ब्रह्म से प्रति क्षण नित्य निरन्तर रूप से ,बुलबुलों के समान अनंत कोटि ब्रह्माण्ड बन रहे है और उसमें समा रहे है।
यह ब्रह्म ही इस सृष्टि का मूल है।ब्रह्म की ऊर्जा स्वयम्भू में और स्वयम्भू की परमेष्ठी में प्रवाहित होती है।वही ऊर्जा परमेष्ठि से सूर्य द्वारा होते हुए हम तक पहुंचती है।
उक्त सात लोक भू भुवः स्वः मह जनः तपः सत्यम् से निर्मित तीन त्रिलोकी क्रमश:- संयति रोदसी क्रंदसि का वर्णन पहले किया जा चुका है।
भू और चन्द्रमा दो पिंड है।इनके मध्य बहुत सा रिक्त स्थान है।पर भू लोक और चन्द्र लोक का विस्तार इन पिंडों से बहुत अधिक है।यही स्थिति सूर्य लोक और अकाशगंगा के मामले में है।
इस रिक्त स्थान में एक और लोक विद्यमान है।
यह चौथा लोक है।जिसे आपो लोक कहा गया है।
इस प्रकार प्रत्येक त्रिलोकी में एक चतुर्थ आपो लोक भी होता है।
जिस प्रकार यह परिक्रमण है वैसा ही कुछ नीचे भी चल रहा है।
पृथ्वी बनी है परमाणुओं से।प्रत्येक परमाणु में एक नाभिक होता है।उसके चारों और इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते है।नाभिक में दो और पिंड रहते है।न्यूट्रॉन और प्रोटोन।इलेक्ट्रॉन नाभिक के बाहर ठीक वैसे ही चक्कर लगाते है जैसे पृथ्वी सूर्य के लगा रही है या सूर्य परमेष्ठि के।
नाभिक में यद्यपि परमाणु का लगभग सारा द्रव्यमान स्थित रहता है तो भी नाभिक सम्पूर्ण परमाणु के आकार की तुलना में बहुत छोटा होता है।यदि सम्पूर्ण परमाणु का क्षेत्रफल एक फुटबॉल मैदान मान लिया जाय तो नाभिक उसमें बैठी किसी मक्खी सदृश होता है।
इससे हम अनुमान लगा सकते है कि इलेक्ट्रॉन की गति क्या होती होगी?
और यह भी कि परमाणु में भी अधिकांश भाग जो पिंड से पृथक है वह रिक्त है।वास्तव में वह रिक्त नहीँ, चतुर्थ आपो लोक यहाँ भी विद्यमान है।
इस प्रकार सभी पिंड गतिमान है।चाहे वह परमाणु हो या हमारी पृथ्वी।इन सबकी एक निश्चित चाल है।पथ है।परिक्रमण काल है।और इनमें पिंड व रिक्त स्थान के मध्य एक निश्चित अनुपात भी है।परमाणु में भी एक सृष्टि है।उसमें भी ऊर्जा है।परमाणु एक सूक्ष्म ब्रह्माण्ड की भांति व्यवहार करता है।इसलिए कहा गया है
यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे।।
चतुर्थ आपो लोक का श्रुति प्रमाण
ॐ द्यौ शांति।
अंतरिक्ष'' शांति।
पृथिवी शांति।
आप: शांति।
यहाँ तीन लोकों के साथ चतुर्थ आप लोक का स्पष्ट वर्णन है।
(कृपया पूर्व त्रिलोकी वाली पोस्ट से जोड़कर पढ़ें।)
#kss
गुरुवार, 12 मार्च 2015
कूल डूड
कद कोई खास बड़ा नहीँ,पर जो है वो भी मुड़ा तुड़ा।
बाल लम्बे और वशेष तरीके की लटें।
एक कान में बाली।
भौंहें नुचवाई हुई।
गाल पुरे "कलम" से ढके है।
होठ के नीचे बालों का त्रिभुजाकार गुच्छा है।
मूँछ की जगह कुछ कांटे उगे है।
गले में स्टार नुमा लॉकेट (20₹वाला)
बिना कालर का टी शर्ट पहने।
किसी किसी के "जादू" टाइप टोपी ओढ़ी हुई है।
टी शर्ट से झांकती डेढ़ पसली के पेट पर "रूठी"हुई नाभि है।
तीन इंच चौड़ा बेल्ट है पर खुला है।
कूल्होंकी जगह सपाट है।
जीन्स काफी नीचे सरक आई है।
"बीच" की दरार झाँक रही है।
पेंट के पायचो का जॉइंट घुटनों के मध्य पहुंच गया है।
लुखी लुखी टांगे और विधवा जैसी सूनी कलाइयां।
अंगुलियों की एक एक हड्डी दिख रही है।
ओपन चप्पल पहने हुए।
स्प्रे की "बदबू" आ रही है।
आँखों के गड्ढे धँस चुके है।
येहै हमारा आज का '"कूल ड्यूड"
कूल माने बिलकुल ठण्डा।
निर्वीर्य, निस्तेज, बलहीन।
जिसे कभी गुस्सा नहीँ आता।
कोई चाहेँ तो आराम से उसकी गर्लफ्रेंड या बहिन को भी उसके सामने छेड़े,
पर ये तो कूल है।इसे गुस्सा नहीँ आता।
ठण्डा ठण्डा।
कूल कूल।
आज की शीतला सप्तमी इन्हीं को समर्पित है।
मुबारक हो शीतला वाहनों!!