भारतीय समाज एकांगी भावुकता में जीता है।
एकांगी भावुकता पाखण्ड को जन्म देती है।जीवन का अतिशय दोहरापन-तिहरापन ढोने की मजबूरी में पिसता भारतीय समाज जिन्दा भी है, यह दोहरापन, यदि ऐसा पाखण्डी दबाव किसी और समाज पर होता तो वह कब का समाप्त हो जाता।
इसका कारण है...भारतीय जन संयुक्त परिवार में रहता आया है और एक ही व्यक्ति कई सम्बन्धों का निर्वाह करता है।उसे दुहराव तिहराव का अभ्यास जन्म से ही प्राप्त होता है।वह पुत्र और पिता, पति और अपना व्यवसाय का दायित्व बड़े मजे से कर लेता है।
इन अनेक दायित्वों के परिणाम स्वरूप वह मस्तिष्क में कई समानांतर धाराओं पर एक साथ सोचने की क्षमता रखता है।
यह कदाचित् वरदान भी है और बदली विश्व व्यवस्था में अभिशाप भी।
वह सबको हाँ करके अपने मन की कर सकता है।अनेक लोगों को यह अहसास दिला सकता है कि मै आपके साथ हूँ और एन वक्त पाला बदल सकता है। दिन में नारी सम्मान पर भाषण देकर रात्रि में उत्पीड़न की योजना बना सकता है।
बिना हिचक, वह अपनी अंतरात्मा से समझोता कर सकता है।
रात दिन धर्म निरपेक्षता का जाप करता हुआ और सेकुलरों को आश्वस्त करता हुआ भी, पता नहीँ कब उनको लात मार दे...कह नहीँ सकते।
यह निर्मल बाबा को भी पूज सकता है और कभी जँच गई तो पल में पलट सकता है।
उधर, मुस्लिम जगत कुरान के इर्द गिर्द ही रहना चाहता है तो ईसाई समाज अपने सामाजिक अनुशासन से भागने की सोच भी नहीँ सकता।
भयंकर विभेद और कृत्रिम भुखमरी में भी, विचलित न होने वाला भारतीय समाज अब पर्याप्त चेतन हो गया है तो कम से कम वामपंथी और मिशनरीज का चारा तो कदापि नहीँ बनेगा।
अपितु कहीँ कहीँ इसने उन आसुरी विचारधाराओं से पर्याप्त वंचना कर उलटे उन्हीं का शोषण कर चूसने के बाद गुठली की तरह फेंक भी दिया।
सबल हिन्दुत्व के नए दौर में देखना....!
झुण्ड के झुण्ड घर वापसी करेंगे। लुटा पिटा वामपंथ और लँगोटी मात्र शेष इस्लाम भागता नजर आएगा।
अपने पितृ देशों से अकूत धन उमेठकर लाती मिशनरीज... हत भाग्य पीछे हटती नजर आ रही है। और आप देखना जगत् के समस्त त्रस्त मानव प्रबल वेग से हिंदुत्व गंगा का अवगाहन करने को दौड़ते नजर आएंगे।
"क्या होगा, क्या नहीँ होगा" का द्वन्द्व अज्ञान जनित है।बिलकुल वैसे ही जैसे स्वामी विवेकानन्द के मन में शिकांगो भाषण से पहले था।
अभी तो आप विश्वास शायद ही करें...पर और गहराई से सोचिये...आपको भारत का सबकुछ पवित्र लगेगा।यह पाखण्ड और दोहरी भावुकता भी। वर्तमान isis के समान बर्बर मुस्लिम सत्ता के 700वर्ष के कालखण्ड में भी यह समाज अपना बहुत कुछ बचा सका....उसमें भावुकता और पाखण्ड का भी योगदान है।
#kss
बुधवार, 20 मई 2015
भावुकता और पाखण्ड
सदस्यता लें
संदेश (Atom)