शनिवार, 25 अप्रैल 2015

क्षात्रतेज

हमें राष्ट्र को क्षात्र तेज से भर देना होगा।
बहुत हो चुकी मिमियागिरी!!
अन्याय और अत्याचार के लिए उठे बाहु काटने होंगे। इस पवित्र भू और संस्कृति को कुदृष्टि से देखने वाली ऑंखें फोड़ देनी होगी। किसी अबला या निर्बल का पीछा कर रही टाँगें भग्न करनी होगी। शेर की खाल ओढ़ छिपी भेड़ों को भगाने हेतु दहाड़ना होगा। मुफ्तखोर मारिचों को मुखोद्घाटित कर दूर अरण्य में क्षिप्त करना होगा जहां जीने के लिए श्रम अनिवार्य हो। परकीय श्रम पर मौज करने वाले तुंदिल महाजनों की तोंद में छिद्र करना होगा। मिथ्या भेद के सहारे दुकानें चलाने वाले ठग सियारों के गण्डस्थल पर वज्रमुष्टि प्रहार करना होगा।
वंचित शोषित और असहाय को यथोचित सम्मान देकर उसका भाग्योदय करना होगा। सृजन के सामर्थ्यशाली शिल्पवर्ग को अभय प्रदान कर, उनकी कला को प्रोत्साहन देकर निर्माण से जोड़ना होगा।कृषक और वनवासी को पूर्ण सम्मान सहित स्थापित करना होगा।
इन कार्यों की क्रियान्विति हेतु शक्ति चाहिए।
बाह्य शक्ति नहीँ, आंतरिक चरित्र और सङ्कल्प की शक्ति अपेक्षित है।
शक्ति को साधना पड़ता है।उस भाव में जीना पड़ता है।प्रामाणिक जीवन जीना पड़ता है।नित्य साधना करनी पड़ती है।मन सहित एकादश इन्द्रिय समूह को वश में करना पड़ता है। असफलता को पचाने की पाचनशक्ति से लैस होना पड़ता है। अपने से उच्च भी एक वर्ग है जो सर्वथा सांसारिकता से पार होकर भी "सर्वभूतहितेरताः" में संलग्न है, का विश्वास अर्जित करना पड़ता है।
और तब जो व्यवस्था करने में समर्थ है उस प्रबन्धक का नाम क्षत्रिय है।
उस महिम्न शक्ति का नाम क्षात्र तेज है।
इस हेतु नित्यसाधना अपेक्षित है।
नित्य सङ्घ साधना ही वह पद्धति है जो आप में उस शक्ति और सामर्थ्य का संचार करती है।
यह सरल और क्षणिक तो कदापि नहीँ।
योग पथ, भक्ति और सन्यासव्रत के सर्वोच्च शिखर का नाम ही क्षात्र तेज है।
फ़क़ीरी और मस्ती की उस अलौकिक श्रद्धापूरित अग्नि में निरन्तर जलने का नाम क्षात्र तेज है।यह होगा तो सामर्थ्य होगी।
यह किया तो सब सधेगा।
यह समझा तो सब समझ गए।
ऐसा, कोई कोई बिरला ही होगा पर वही हमारा सर्वोच्च अभीष्ट है।
क्या आप समझ रहे है?
#kss